आगामी लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे जिन नौ राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, उसकी शुरुआत पूर्वोत्तर के तीन राज्यों से हो रही है. त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में अगले महीने विधानसभा के चुनाव हैं. त्रिपुरा में वाममोर्चा के 25 साल पुराने गढ़ को तोड़कर पांच साल पहले बीजेपी ने पहली बार वहां पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. जबकि नागालैंड और मेघालय में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन वाली सरकार में बीजेपी भागीदार है. पूर्वोत्तर के इन तीनों किले को बचाने के लिए इस बार बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. त्रिपुरा में साल 2018 के प्रदर्शन को और ज्यादा बेहतर बनाने के साथ ही मेघालय और नागालैंड में भी इस बार बीजेपी और ज्यादा सीटें जीतने की रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है.


पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों की विधानसभा में 60-60 सीटें हैं और इनका कार्यकाल मार्च में समाप्त हो रहा है. त्रिपुरा में 16 फरवरी को वोट डाले जाएंगे, जबकि मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को मतदान होगा. तीनों राज्यों में मतगणना 2 मार्च को होगी. बेशक तीनों ही छोटे राज्य हैं, लेकिन वे बीजेपी के लिए इसलिए अहम हैं कि एक दशक पहले तक वहां पार्टी का कोई नामलेवा नहीं था लेकिन पांच साल पहले पीएम मोदी और अमित शाह की बनाई रणनीति ने वहां भगवा को एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित कर दिखाया. वैसे भी ये तीनों राज्य सिर्फ राजनीतिक लिहाज से ही नहीं, बल्कि भौगोलिक व सामरिक दृष्टि से भी केंद्र के लिए अहम हैं. हालांकि पिछले चुनाव-नतीजों पर गौर करें तो बीजेपी और उसके सहयोगी दल मजबूत स्थिति में हैं लेकिन बीजेपी कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती, इसीलिए उसने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे अति आत्मविश्वास दिखाने से परहेज करते हुए सारा फोकस हर सीट जीतने की जमीनी रणनीति को अंजाम देने पर ही रखें.


नागालैंड की बात करें तो साल 2018 में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (NDPP) और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और बीजेपी ने अप्रत्याशित रुप से 12 सीटों पर विजय हासिल करके सबको हैरान कर दिया था. इस बार भी दोनों के बीच चुनाव पूर्व हुए समझौता के मुताबिक बीजेपी 20 सीटों पर जबकि NDPP 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि एक वक्त राज्य की सत्ता में रह चुकी नागा पीपुल्स फ्रंट NPF ने एलान कर दिया है कि वह पिछली बार की तरह इस बार भी गठबंधन के खिलाफ अकेले ही चुनाव लड़ेगी. हालांकि 2018 के चुनाव में उसने सबसे अधिक 38.78% वोट लेकर 26 सीटें जीती थीं. जबकि NDPP को 17 और बीजेपी को 12 सीटें मिली थीं लेकिन अन्य छोटे दलों व एक निर्दलीय के समर्थन से गठबंधन की सरकार बन गई थी.


हालांकि मेघालय में तस्वीर कुछ अलग है क्योंकि मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा की अगुवाई वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी NPP और बीजेपी में कुछ दरार पड़ती दिख रही है. पिछली बार उसे बीजेपी व अन्य क्षेत्रीय दलों ने समर्थन दिया था लेकिन उसने 60 में से 53 सीटों पर अकेले ही चुना लड़ा था. बीजेपी को कम सीटें देने की एक वजह ये थी कि राज्य में ऐसा माहौल बना दिया गया था कि बीजेपी ईसाई विरोधी है, लेकिन फिर भी बीजेपी ने 2 सीटें जीत ली थीं.  इस बार वहां NPP, बीजेपी और कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने के लिए ममता बनर्जी की टीएमसी पूरी ताकत से मैदान में है. इसकी बड़ी वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री और छह बार के विधायक रहे मुकुल संगमा ने नवंबर 2021 में कांग्रेस में दो फाड़ कर दिया था. कांग्रेस के 17 में से 12 विधायकों को तोड़कर उन्होंने टीएमसी का दामन थाम लिया था. संगमा लोकप्रिय नेता हैं और जिस गारो हिल्स से उनका नाता है, अकेले उसी क्षेत्र में 60 में से 24 सीटें हैं, इसलिये उन्हें टीएमसी की एक बड़ी ताकत रूप में देखा जा रहा है.


त्रिपुरा की बात करें, तो वहां पिछली बार बीजेपी ने 35 सीटें जीतकर अपने दम पर ही सरकार बनाई थी. पर, अपनी सहयोगी IPFT को साथ रखा. लेकिन पिछले साल मई में बिप्लव देब को हटाकर जिस तरह से माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया गया, उससे लगता है कि बीजेपी को कहीं न कहीं एंटी इंकंबेंसी का खतरा सता रहा है. इसके अलावा साल 2021 में आदिवासियों द्वारा बनाई गई TIPRA Motha party भी इस चुनाव में एक ताकत बनकर उभरी है जो बीजेपी और उसकी सहयोगी IPFT के आदिवासी वोट काटकर उसे नुकसान पहुंचा सकती है.


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