चुनावी बांड को रद्द करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का चुनाव की पूर्व संध्या पर राजनीतिक दलों के वित्त पोषण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. अदालत ने बांड जारी करने वाले भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को आदेश दिया कि वह चुनावी बांड पाने वाले राजनीतिक दलों का विवरण 6 मार्च तक भारतीय चुनाव आयोग (ईसी) को सौंपे. 13 मार्च तक आधिकारिक ईसी साइट पर यह जानकारी प्रकाशित करना और उसके बाद खरीददारों को बांड राशि वापस कर दी जाए. संक्षेप में सारी धनराशि वापस करना है.


न्यायालय ने चुनावी बांड को अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देने वाले मौलिक अधिकारों के साथ-साथ इसकी गुमनाम प्रकृति के कारण सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना. याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स था. चुनाव आयोग की ऑडिटेड पार्टी खातों की समीक्षा के मुताबिक, बीजेपी को चुनावी बॉन्ड से 54 फीसदी कमाई हुई है.


 इसका असर उन छोटी पार्टियों पर अधिक पड़ सकता है जो कांग्रेस समेत थोड़े से पैसों पर टिकी रहती हैं. बड़ी पार्टियां केवल एक ही स्रोत से अस्तित्व में नहीं रहतीं. उनके पास अपने मामलों तक पहुंचने और प्रबंधन करने के लिए कई फंड हैं, जिसमें विभिन्न विधायिकाओं के सदस्यों का प्रबंधन भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द करते हुए यह भी कहा कि धन विधेयक के माध्यम से बांड की शुरूआत वैध नहीं थी. यह चर्चा करने की राज्यसभा की शक्तियों को सीमित करता है.


चुनावी बांड को वित्त अधिनियम 2017 द्वारा यह घोषणा करते हुए पेश किया गया था कि इसे चुनावी फंडिंग के उद्देश्य से किसी भी अनुसूचित बैंक द्वारा जारी किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिकाओं में वित्त अधिनियम 2017 के माध्यम से विभिन्न कानूनों में पांच संशोधनों को चुनौती दी गई. प्रमुख संशोधन आरबीआई अधिनियम, आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में थे.



सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बांड ने राजनीतिक दलों के लिए असीमित, अनियंत्रित फंडिंग के दरवाजे खोल दिए हैं. जिन बांडों पर बार-बार यह आरोप लगाया गया था कि वे सत्तारूढ़ दल का अधिक समर्थन करते हैं और अधिकांश धन सत्तारूढ़ दल की झोली में डाला जाता है.बीजेपी के ऑडिट अकाउंट की समीक्षा से पता चलता है कि 2020-21 में 1294.14 रुपये यानी उसकी कुल आय का 54 फीसदी हिस्सा चुनावी बॉन्ड से आया. 2021-22 में यह बढ़कर 1917 करोड़ रुपये और 2022-23 में 2361 रुपये, कुल 5572.14 करोड़ रुपये हो गया.


भाजपा के चुनाव खर्च में अन्य बातों के अलावा, विज्ञापनों पर खर्च किए गए 432.14 करोड़ रुपये और विमान और हेलीकॉप्टर किराए पर लेने पर 78.22 करोड़ रुपये खर्च किए गए. उम्मीदवारों को वित्तीय सहायता के रूप में 75.05 करोड़ रुपये दिए गए, जबकि प्रेस कॉन्फ्रेंस की लागत 71.60 लाख रुपये थी.


पार्टी को दान (चुनावी बांड सहित) से ₹2,120.06 करोड़ मिले, जबकि बैंक ब्याज से आय ₹237.3 करोड़ थी, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यह ₹133.3 करोड़ थी. पार्टी ने चुनाव में ₹1,092.15 करोड़ खर्च किए, जो कांग्रेस के खर्च से पांच गुना ज्यादा है. 2021-22 में बीजेपी ने ₹645.85 करोड़ खर्च किए थे.


दूसरी ओर, कांग्रेस की कुल प्राप्तियां 2021-22 में घटकर 541.27 करोड़ रुपये रह गईं. इसने चुनावों पर 192.55 करोड़ रुपये और 2022-23 में राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर "भारत जोड़ो यात्रा" के लिए 71.83 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि चुनावी बांड के माध्यम से इसका दान पिछले वर्ष के 236.09 करोड़ रुपये से 171.02 करोड़ रुपये कम हो गया.


कांग्रेस ने बीजेपी को सभी पार्टियों से तीन गुना ज्यादा फंड मिलने पर सवाल उठाया था. अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने 2021-22 में चुनावी बांड के माध्यम से ₹3.2 करोड़ कमाए. 2022-23 में, मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी को इन बांडों से कोई योगदान नहीं मिला.


तेलुगु देशम पार्टी,  जो एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी भी है, ने 2022-23 में चुनावी बांड के माध्यम से ₹34 करोड़ कमाए, जो पिछले वित्तीय वर्ष में प्राप्त राशि से 10 गुना अधिक है.



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