दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण रोकने को लेकर सरकारें अपनी जिम्मेदारी का ठीकरा जिस तरह से एक -दूसरे के सिर फोड़ने पर जुटी हैं, वह उनकी बेशरमी तो उजागर करता ही है, साथ ही ये भी बताता है कि आम इंसान की जिंदगी को लेकर उनका नज़रिया किस हद तक लापरवाही भरा है. लेकिन केंद्र से लेकर दिल्ली और पड़ोसी राज्यों की सरकारें शायद ये समझने को तैयार नहीं हैं कि प्रदूषण की मार सिर्फ आम लोगों पर ही नहीं पड़ रही है, इसका शिकार वे खुद भी तो हो रहे हैं, जिनके जिम्मे सरकार की नीतियां बनाकर उन्हें लागू
करवाना है.


लिहाज़ा, ऐसे गंभीर मसले पर नीति-निर्माताओं की लापरवाही भरी कोताही देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट उन्हें फटकार न लगाये, तो भला और क्या करे? क्या वह लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करने वाली इन सरकारों की आरती उतारे? इस मामले पर आज हुई सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना की खंडपीठ ने जो सख्ती दिखाई है, उसकी तारीफ इसलिये भी की जानी चाहिये कि सरकारों की तुलना में देश की शीर्ष अदालत को लोगों के स्वास्थ्य की चिंता अधिक है, क्योंकि उन्हें अहसास है कि ये जहरीली हवा सिर्फ आम दिल्लीवासी को नहीं बल्कि उन्हें व उनके परिवारों को भी उतना ही प्रभावित कर रही है. लेकिन सरकारें चलाने वालों को ये मोटी बात या तो समझ नहीं आ रही या फिर वे इसे समझना ही नहीं चाहते कि प्रदूषण भी कोरोना महामारी की तरह गरीब-अमीर का या फिर आम और खास में फर्क नहीं देखता. 


देश की राजधानी और पड़ोसी शहरों के गंभीर हालात को देखने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और दिल्ली समेत हरियाणा, पंजाब व यूपी की सरकारों को चेतावनी दी कि वे कल शाम तक कुछ ठोस उपाय करें. लेकिन इस सुनवाई के दौरान दिल्ली की केजरीवाल सरकार को कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है, जो अपने कामों का ढिंढोरा पीटने के लिए विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाती है. दिल्ली सरकार के जवाब से नाराज़ जजों की बेंच ने उसे फटकार लगाते हुए कहा कि दिल्ली सरकार की कोशिश सिर्फ दूसरों पर ठीकरा फोड़ने की है. जबकि वह खुद अपनी वाहवाही के प्रचार में लगी है.


बेंच के सदस्य जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "आप सिर्फ किसानों पर प्रदूषण का ठीकरा फोड़ना चाहते हैं. दिल्ली सरकार प्रदूषण के स्थानीय कारणों पर चर्चा नहीं कर रही है." जजों को सख़्त लहजे में ये कहना पड़ा कि हमें इसके लिए मजबूर न किया जाए कि आपकी कमाई और ख़र्चों का ऑडिट कराना पड़े. 


दिल्ली सरकार तो 'विज्ञापनवीर' है ही, लेकिन केन्द्र भी कोई कम उस्ताद नहीं है, इसका अहसास भी आज कोर्ट को हो गया और जजों को अपनी नाराजगी जतानी पड़ी. दरअसल, शनिवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए बनाए गए आयोग की आपातकालीन बैठक बुलाए. इस बैठक में स्थिति में तुरंत सुधार के लिए कदम उठाने पर बात हो. लेकिन आज चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने जब सुनवाई शुरू की, तो वह आयोग की तरफ से दाखिल की गई रिपोर्ट पढ़कर हैरान रह गई और कोर्ट ने उस पर गहरा असंतोष जताया. जजों ने कहा कि इस रिपोर्ट में तमाम तरह के आंकड़े गिनाए गए हैं. पहले से तय प्रदूषण नियंत्रण उपायों को दोहराया गया है. लेकिन कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है.  


दरअसल, नई रिपोर्ट में फसल अवशेष यानी पराली जलाने से होने वाले धुंए का प्रदूषण में योगदान सिर्फ 10 प्रतिशत बताया गया है. सड़क से उड़ने वाली धूल, निर्माण कार्य, गाड़ियों के धुएं और औद्योगिक प्रदूषण को 75 प्रतिशत से भी ज्यादा प्रदूषण की वजह बताया गया है. जजों ने कहा कि अब तक पूरे एनसीआर में गैरजरूरी निर्माण कार्य को रोकने, सरकारी कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम के लिए कहने, स्कूलों को बंद करने, सड़क से गाड़ियों को हटाने जैसे मुद्दों पर निर्णय ले लिया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.


लिहाज़ा, कोर्ट को निर्देश देना पड़ा कि केंद्र सरकार कल आयोग की आपातकालीन बैठक बुलाए जिसमें चारों राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल हों. जजों ने नाराजगी जताते हुए कहा, "कोर्ट से यह उम्मीद की जा रही है कि वह सरकारों का भी काम करे. कोर्ट को यह समझाना पड़ रहा है कि किन मुद्दों पर निर्णय लिया जाना चाहिए."


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