''मैं क्रिकेट संचालन समिति की तरफ से मुख्य कोच की जिम्मेदारी पर बने रहने के प्रस्ताव से सम्मानित महसूस कर रहा हूं. पिछले एक साल की कामयाबी का श्रेय कप्तान, पूरी टीम, कोचिंग और सपोर्ट स्टाफ को जाता है.


इस सूचना के बाद, कल मुझे पहली बार बीसीसीआई की तरफ से सूचित किया गया कि कप्तान को मेरी कोचिंग के तरीकों और मुख्य कोच पर बने रहने को लेकर संदेह है. मेरे लिए ये हैरानी वाली बात है क्योंकि मैंने कोच और कप्तान के बीच की सीमाओं का हमेशा ध्यान रखा है. बीसीसीआई ने मेरे और कप्तान के बीच गलतफहमी को दूर करने की कोशिश भी की लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर ये समझ आ रहा है कि ये साझेदारी अब अस्थिर ही रहेगी. लिहाजा मैंने ये जिम्मेदारी छोड़ने का फैसला किया है.     

पेशेवर अंदाज, अनुशासन, समर्पण, ईमानदारी और अतिरिक्त दक्षताओं, अलग अलग विचार वो दक्षताएं हैं जो मैंने सभी के सामने रखीं. प्रभावशाली साझेदारी के लिए इन बातों की कद्र की जानी चाहिए. मैं कोच के रोल को टीम के हित में स्वयं में सुधार करने वाला मानता हूं.  

इस तरह के संदेहों के बीच मुझे ये बेहतर लगता है कि मैं इस जिम्मेदारी को उस व्यक्ति को सौंप दूं जिसे क्रिकेट संचालन समिति और बीसीसीआई बेहतर समझती है.

मैं ये भी कहना चाहूंगा कि पिछले एक साल तक टीम की कोचिंग करने का सौभाग्य मुझे मिला जिसके लिए मैं सीएसी, बीसीसीआई और सीओए और सभी का धन्यवाद करता हूं. मैं भारतीय टीम के प्रशंसकों से मिली हौसलाअफजाई का भी शुक्रगुजार हूं. मैं अपने देश की महान क्रिकेट परंपरा का आगे भी हितैषी रहूंगा''.

प्रिय विराट कोहली,

आप समझ ही गए होंगे कि ये अनिल कुंबले के उस खत का अनुवाद है जो उन्होंने कोच की जिम्मेदारी को छोड़ने के बाद लिखा. इसे ध्यान से पढ़िए. इस खत में उन्होंने अपने दिल की बात लिखी है. जिसमें उनकी सोच, उनका मिजाज, उनकी पीड़ा और विवाद से दूर रहने की कोशिश...सब कुछ बहुत साफ साफ नजर आता है. समझ भी आता है. इसमें चूंकि आपके रोल का जिक्र है इसलिए आप भी सबकुछ समझ गए होंगे.

विराट, आपको पता ही है कि ये वो अनिल कुंबले हैं जिन्हें इसी बीसीसीआई ने उस वक्त कोचिंग की जिम्मेदारी सौंपी थी जब उनके पास कोचिंग का कोई तजुर्बा नहीं था. ये वो अनिल कुंबले हैं जिनके नाम पर सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण ने सहमति दी थी. उस वक्त आपने भी अपनी हामी जरूर दी होगी. ये वो अनिल कुंबले हैं जो कोच के तौर पर भी खुद को चैंपियन साबित करने की सोच के साथ टीम से जुड़े थे. ये वो अनिल कुंबले हैं जिन्होंने पिछले एक साल में अच्छे नतीजे दिए थे.

फाइल फोटो

यूं तो अब तक हजारों दफे इस घटना का जिक्र हो चुका है लेकिन आज एक बार फिर आपको याद दिला रहा हूं कि ये वही कुंबले हैं जिन्होंने टूटे जबड़े से वेस्टइंडीज के खिलाफ गेंदबाजी की थी. ये वही कुंबले हैं जो मंकीगेट प्रकरण के बाद ऑस्ट्रेलिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस में बतौर कप्तान कहकर आए थे कि ‘आई थिंक ऑनली वन टीम हैज प्लेयड इन द राइट स्पिरिट ऑफ द गेम’ (मुझे लगता है कि सिर्फ एक ही टीम ने खेल भावना के साथ खेला है) और ये वही कुंबले हैं जिन्हें सौरव गांगुली अपनी टीम का सबसे बड़ा मैच विनर खिलाड़ी मानते थे.

बावजूद इसके आखिर कुछ दिनों में ऐसा क्या हुआ जो तल्खियां बढ़ गई? कुछ स्वाभाविक से सवाल मन में आ रहे हैं. क्या ये आप दोनों के बीच टीम पर अधिकार की लड़ाई है? क्या ये टीम के फैसलों में दखलअंदाजी की लड़ाई है? क्या ये कद की लड़ाई है या फिर ये अनुशासन की लड़ाई है?  दो पीढ़ियों की सोच की लड़ाई है? आपने जब टेस्ट क्रिकेट खेलना शुरू किया तब तक वो ड्रेसिंग रूम छोड़कर जा चुके थे. कहीं ये मेहनत, मेहनत और सिर्फ मेहनत की लड़ाई तो नहीं है?

मुझे लगता है कि दरअसल ये ‘स्टारडम’ की लड़ाई है. ये कुछ कुछ वैसी ही लड़ाई है जैसी ग्रेग चैपल के समय में हुई थी. आपको भी याद होगी. जो एक शानदार खिलाड़ी रहे लेकिन बतौर कोच फेल हो गए थे. अब बड़ा फर्क ये है कि ग्रेग चैपल पर टीम के खिलाफ साजिश का आरोप खिलाड़ियों ने लगाया था, कुंबले के खिलाफ कोई ऊंगली भी नहीं उठा सकता है. समानता ये है कि अनिल कुंबले भी चाहते थे कि खिलाड़ी और पेशेवर बनें, अभ्यास के लिए समय से जाएं, टीम हित सर्वोपरि हो, फिटनेस के लिए जी जान लगाएं. आप भी मानेंगे कि इन बातों में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को शायद इतनी टोकाटोकी पसंद नहीं आती है.

फाइल फोटो

आप जब कभी कभार अखबार पढ़ते होंगे तो देखते होंगे कि इस बात पर पिछले काफी समय से बहस चल रही है कि आखिर टीम इंडिया को कैसा कोच चाहिए? इसी से जुड़ा दूसरा सवाल ये है कि क्या टीम इंडिया को कोच चाहिए भी या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि टीम इंडिया को कोच नहीं बल्कि एक मैनेजर की जरूरत है? ऐसा मैनेजर जो सिर्फ इन बातों का ध्यान रखे

•    टीम के खिलाड़ियों की बस प्रैक्टिस के लिए पहले से एसी चलाकर तैयार रहनी चाहिए
•    टीम के खिलाड़ी किस क्रम में बल्लेबाजी का अभ्यास करेंगे ये कप्तान से तय करे
•    टीम के खिलाड़ियों को होटल में मनपसंद कमरे मिल जाएं
•    जो कुछ खिलाड़ी एक ‘फ्लोर’ पर रूकना चाहते हैं उनके लिए इसकी व्यवस्था की जाए
•    अगर कोई खिलाड़ी शॉपिंग के लिए जाना चाहता है तो उसके लिए बंदोबस्त कर दिए जाएं
•    सफर के वक्त खिलाड़ियों के ‘लगेज’ को सही तरीके से बस/फ्लाइट में ‘अरेंज’ करा दिया जाए

विराट, आप इन बातों को पढ़कर सोच रहे होंगे कि ये सारे काम तो ‘लॉजिस्टिक मैनेजर’ के होते हैं. जी हां होते तो हैं लेकिन अगर ‘लॉजिस्टिक मैनेजर’ के इन कामों को ‘हेड कोच’ की निगरानी में किया जाए तो शायद इन कामों की गुणवत्ता और बेहतर हो जाएगी. रही मैदान में क्रिकेट के स्तर और गुणवत्ता की बात तो उसके लिए तो खिलाड़ी खुद ही परिपक्व हैं. इस बात का फैसला अब आपको ही करना होगा विराट कि अगर कुंबले के कद का कोई खिलाड़ी टीम के साथ बतौर कोच जुड़ेगा तो वो क्या करेगा? जितने दिल-दिमाग से आप बल्लेबाजी करते हैं, कप्तानी करते हैं अगर उतने ही दिल दिमाग से वो कोचिंग करेगा तो आप उसके खिलाफ भी तो नहीं हो जाएंगे.

इस सवाल के जवाब में आपका और भारतीय क्रिकेट का भविष्य छिपा हुआ है. उम्मीद है कि आप सही फैसला करेंगे क्योंकि आप खुद भी एक बेहतरीन खिलाड़ी और भारतीय क्रिकेट के शुभचिंतक हैं.