भारत इस साल शंघाई सहयोग संगठन यानी SCO की अध्यक्षता कर रहा है. इसी के तहत 4 और 5 मई को गोवा में एससीओ समूह में शामिल देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई. ये बैठक भारत के लिहाज से ही नहीं बल्कि मौजूदा जियो पॉलिटिकल हालात को देखते हुए पूरी दुनिया के लिए भी काफी महत्वपूर्ण था.


सवाल उठता है कि इस बैठक से भारत ने क्या हासिल किया. जिस अंदाज में भारत ने इस बैठक में आकंतवाद को लेकर अपना रुख जाहिर किया, उससे वैश्विक पटल पर भारत की ताकत का एहसास होता है.


एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक ऐसे वक्त में हुई है, जब पूरी दुनिया पर मंदी की आंशका है. रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो रही है. भारत के नजरिए से देखें तो इस बैठक की अहमियत और भी ज्यादा थी. एससीओ के सदस्य देशों में भारत के दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान भी शामिल हैं और मौजूदा वक्त में इन दोनों देशों के साथ भारत का संबंध एक तरह अपने सबसे खराब दौर में है.


इन हालातों के बीच भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एससीओ के इस बैठक में भारत के पक्ष को पुरजोर तरीके से रखा. पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी और चीन, रूस, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के अपने समकक्षों की मौजूदगी में एस जयशंकर ने स्पष्ट कर दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, भारत आतंकवाद  के मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर ही चलेगा.


बैठक के उद्घाटन भाषण में ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सदस्य देशों को याद दिलाया कि आतंकवाद के खतरे से मुकाबला करना एससीओ के मुख्य कार्यों में शामिल है. भारत ने जता दिया कि किसी भी तरह से आतंकवाद के किसी भी रूप का समर्थन करना पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है.


एस जयशंकर ने पुरजोर तरीके से कहा कि अगर आतंकवाद की अनदेखी की गई तो ये  समूह के सुरक्षा हितों के लिए नुकसानदायक होगा. उन्होंने कहा कि भारत का दृढ़ विश्वास है कि आतंकवाद को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता है. सीमापार आतंकवाद समेत इसके सभी स्वरूपों का खात्मा किया जाना चाहिए और आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग के चैनल को बिना किसी भेदभाव के जब्त और अवरुद्ध किया जाना चाहिए. जब एस जयशंकर ये बात कह रहे थे तो ये स्पष्ट तौर से वहां मौजूद पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के लिए एक संदेश था. इसके जरिए एस जयशंकर ये बताना चाह रहे थे कि पाकिस्तान के साथ भारत किसी भी तरह की बातचीत तब तक नहीं कर सकता है, जब तक पड़ोसी देश आतंकवाद को प्रश्रय देना बंद नहीं कर देता है.


पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद कितनी बड़ी चुनौती है, इसको भी भारत ने बड़े ही साफ़-गोई तरीके से एससीओ देशों के सामने रखा. एस जयशंकर ने कहा कि जब दुनिया कोविड-19 महामारी और उसके प्रभावों से निपटने में लगी थी, तब भी आतंकवाद की समस्या ज्यों की त्यों बनी रही. ये एक तरह से भारत की तरफ से दुनिया के लिए मैसेज था कि आतंकी गतिविधियों को रोकना कितना कठिन काम है और अगर इस मामले पर पूरा विश्व एकजुट नहीं हुआ तो फिर भविष्य में इससे निपटना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगा.


जब से तालिबान का अफगानिस्तान के शासन पर कब्जा हुआ है, ये कहा जा रहा था कि भारत का क्या रुख रहेगा. एससीओ के मंच से इस मसले पर भी भारत ने अपना रुख स्पष्ट किया, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान में उभरती स्थिति हमारे ध्यान के केंद्र में है. उन्होंने ये भी बता दिया कि अफगानिस्तान के प्रति एससीओ के सदस्य देशों की क्या भूमिका होनी चाहिए. एस जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान के प्रति हमारी तात्कालिक प्राथमिकताएं हैं और इनमें मानवीय सहायता पहुंचाना, आतंकवाद से मुकाबला करना और महिलाओं, बच्चों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकार संरक्षित करना शामिल हैं. जो सबसे ख़ास बात एस जयशंकर ने अफगानिस्तान को लेकर कहा, वो ये था कि अफगानिस्तान में वास्तव में एक ऐसी सरकार बने प्रतिनिधि सरकार (representative government) हो  और जो समावेशी भी हो. इसके जरिए भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वो अफगानिस्तान में किस तरह की सरकार चाहता है और ये भी बता दिया कि इसमें एससीओ के बाकी सदस्यों की भी जिम्मेदारी बनती है. जब भारत कहता है कि अफगानिस्तान में  महिलाओं, बच्चों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित होने चाहिए, तो ये भारत के मानवीय पक्ष को उजागर करता है.


ऐसा नहीं है कि एससीओ के मंच पर भारत ने सिर्फ़ आतंकवाद को लेकर ही अपना रवैया स्पष्ट किया. इसके अलावा भारत ने दुनिया के सामने मौजूद दूसरी चुनौतियों का भी जिक्र किया. भारत ने ग्लोबल सप्लाई चेन के मसले से जुड़ी समस्याओं के प्रति भी सदस्य देशों का ध्यान आकर्षित किया. एस जयशंकर ने कहा कि कोविड-19 महामारी और जियो पॉलिटिकल उथल-पुथल की वजह से दुनिया आज कई चुनौतियों का सामना कर रही है. इन घटनाओं ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया है, जिससे ऊर्जा, खाद्य और उर्वरकों की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ा है. एस जयशंकर ने कहा कि इसका सबसे ज्यादा प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ा है.


इन संकटों ने वैश्विक संस्थानों की समयबद्ध और कुशल तरीके से चुनौतियों का प्रबंधन करने की क्षमता में विश्वसनीयता और भरोसे की कमी को भी उजागर किया है. भारत ने ये भी माना कि एससीओ के सदस्य देशों के लिए ये चुनौतियां सामूहिक रूप से सहयोग करने और उन्हें निपटने का अवसर भी हैं. भारत का कहना है कि  एससीओ के भीतर दुनिया की 40% से अधिक आबादी रहती है और इस वजह से एससीओ के सामूहिक फैसलों का निश्चित रूप से वैश्विक प्रभाव होगा.


इन बातों के जरिए भारत ने जता दिया कि उसकी चिंता सिर्फ खुद तक ही सीमित नहीं है. वो ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा जैसे मसलों पर उन देशों की भी आवाज है, जिनको अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दुनिया के बड़े और आर्थिक तौर से ताकतवर मुल्क ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं.


इस बैठक में भारत ने एक और महत्वपूर्ण मसले की ओर सदस्य देशों का ध्यान दिलाया. वो मुद्दा में बदलती परिस्थितियों के हिसाब से  शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) में सुधार से जुड़ा है. इसी बात को रेखांकित करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट तरीके से कहा कि एससीओ अपने अस्तित्व के तीसरे दशक में है और  तेजी से बदलती दुनिया में संगठन को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इसमें सुधार और आधुनिकीकरण का ये सही समय है. उन्होंने सदस्य देशों को भरोसा दिया कि भारत इस प्रक्रिया के लिए अपना रचनात्मक और सक्रिय समर्थन देगा.


भारत चाहता है कि इंग्लिश भी शंघाई सहयोग संगठन का ऑफिसियल लैंग्वेज यानी आधिकारिक भाषा बन जाए. फिलहाल एससीओ की दो आधिकारिक भाषा है और वो रशियन और चाइनीज है. इसी बात को मंच पर उठाते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत लंबे समय से ये मांग कर रहा है कि इंग्लिश को एससीओ की तीसरी आधिकारिक भाषा बना दी जाए और वे चाहते हैं कि सभी सदस्य देश इस मांग का समर्थन करें. भारत का इसके पीछे तर्क है कि ऐसा होने से एससीओ के अंग्रेजी बोलने वाले सदस्य देशों के बीच जुड़ाव बढ़ेगा. साथ ही एससीओ समूह के काम के बारे में दुनिया के बाकी देशों के लोग भी बेहतर तरीके से जान पाएंगे.


शंघाई सहयोग संगठन क्षेत्रफल और जनसंख्या के नजरिए से दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है. यह संगठन यूरेशिया यानी एशिया और यूरोप के करीब 60 फीसदी हिस्से को कवर करता है. एससीओ के सदस्य देशों का वैश्विक जीडीपी में करीब 30 फीसदी का योगदान है. दुनिया की 40 प्रतिशत जनसंख्या एससीओ देशों में ही रहती है. फिलहाल इसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान 8 पूर्ण सदस्य हैं. भारत के साथ पाकिस्तान 2017 में एससीओ का पूर्ण सदस्य बना था. अब जल्द ही इसमें दो नए सदस्य जुड़ने वाले हैं, ये देश ईरान और बेलारूस हैं. इस बात को भी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सदस्य देशों के साथ साझा किया. उन्होंने कहा कि एससीओ के पूर्ण सदस्य के रूप में ईरान और बेलारूस के प्रवेश के लिए चल रही प्रक्रिया में प्रगति हुई है.


इनके अलावा गोवा की बैठक में ही इस समूह के साथ 4 नए डायलॉग पार्टनर भी जुड़े हैं. ये देश हैं कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), म्यांमार और मालदीव. भारत की अध्यक्षता में एससीओ का सालाना शिखर बैठक 3 और 4 जुलाई को नई दिल्ली में होनी है. इसमें सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुख या सरकारी प्रमुख हिस्सा लेने दिल्ली आएंगे. इसी बैठक में पूरी संभावना है कि ईरान को औपचारिक तौर से एससीओ का पूर्ण सदस्य बना दिया जाएगा. भारत सितंबर 2022 में इस समूह का अध्यक्ष बना था और ये वैश्विक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है कि उसकी अध्यक्षता में ईरान इस समूह का पूर्ण सदस्य बनने जा रहा है. ये भी मायने रखता है कि भारत की अध्यक्षता में ही  कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, म्यांमार और मालदीव  इसके डायलॉग पार्टनर बने हैं. इन पहलुओं से जाहिर है कि भारत की अध्यक्षता में एससीओ समूह से बाकी देशों का जुड़ाव बढ़ा है और ये हमारे डिप्लोमेसी के नजरिए से भी बहुत मायने रखता है.भारत सितंबर 2023 तक इसका अध्यक्ष है.


भारत एससीओ देशों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के साथ एक-दूसरे को पारगमन (transit) का पूरा अधिकार देने की दिशा में भी काम कर रहा है. अध्यक्ष के तौर पर भारत की कोशिश है कि अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC)समेत दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच निर्बाध व्यापार हो और ट्रांजिट सिस्टम बन सके. इसके लिए भारत एससीओ देशों के साथ लगातार बातचीत कर रहा है.


पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और चीन के विदेश मंत्री छिन कांग ऐसे तो एससीओ की बैठक के लिए गोवा आए थे, लेकिन भारत ने इस मौके का उपयोग ये भी बताने के लिए किया कि वो अंतरराष्ट्रीय और  क्षेत्रीय संगठन की जिम्मेदारियों से कभी पीछे नहीं हटेगा, लेकिन साथ ही एक और बात इस मंच के जरिए भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वो राष्ट्रीय हितों और देश की संप्रभुता और अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा.


पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कूटनीतिक फायदे के लिए आतंकवाद को हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं करने का आह्वान  करते हुए भारत को घेरने की कोशिश की. हालांकि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान की इस मंसूबे पर तत्काल ही पानी फेर दिया. एससीओ मीटिंग से इतर मीडिया से रूबरू होते हुए एस जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर बिलावल के बयान से अनजाने में एक मानसिकता का खुलासा हुआ है. पाकिस्तान से बातचीत पर उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद के शिकार लोग आतंकवाद पर चर्चा करने के लिए आतंकवाद के अपराधियों के साथ नहीं बैठते हैं. ये एक तरह से पाकिस्तान के लिए चेतावनी भी थी कि जब तक उसका रवैया नहीं सुधरता है, तब तक भारत उसके साथ बातचीत कर ही नहीं सकता है. एस जयशंकर ने दो टूक कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद उद्योग का प्रवर्तक और बिलावल भुट्टो  उसे उचित ठहराने वाला और प्रवक्ता तक कह डाला. उन्होंने कहा कि आतंकवाद पर पाकिस्तान की विश्वसनीयता, उसके विदेशी मुद्रा भंडार से भी तेज गति से गिर रही है.


इन बातों से एक बात स्पष्ट है कि भारत ने सामूहिक जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए भी पाकिस्तान को बता दिया कि अब भारत उसके किसी भी झांसे में आने वाला नहीं है और आतंकवाद के खिलाफ बिना ठोस कार्रवाई के पाकिस्तान पर कभी भी भरोसा नहीं करेगा. ये एक तरह से रूस, चीन और एससीओ के बाकी देशों के विदेश मंत्रियों की भारत में मौजूदगी के वक्त पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश था.


इस बैठक से एक बात और हुई कि चीन को भी ये कहना पड़ा कि एससीओ के सदस्यों को आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद, मादक पदार्थों की तस्करी और अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराधों पर संयुक्त रूप से कार्रवाई जारी रखना चाहिए. ये एक तरह से भारत की बातों का ही विस्तार है.


वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बने तनाव के बीच चीन के विदेश मंत्री का भारत दौरा भी काफी मायने रखता है. हालांकि चीन के विदेश मंत्री छिन कांग के भारत में रहने के दौरान ही एस जयशंकर ने स्पष्ट तौर से कहा कि भारत-चीन संबंध सामान्य नहीं हैं और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति भंग होने पर सामान्य कभी नहीं हो सकते. उन्होंने दो टूक कहा कि सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया को आगे ले जाने की जरूरत है. एस जयशंकर ने ये भी कहा कि चीन के विदेश मंत्री के साथ बैठक के बाद भी इस मसले पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. उससे पहले चीन के विदेश मंत्री छिन कांग ने कहा था भारत-चीन सीमा पर स्थिति सामान्यतः: स्थिर है और दोनों पक्षों को मौजूदा प्रयासों को मजबूत करना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा था कि सीमा पर स्थिति को शांत और सहज करने  के साथ ही वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास स्थायी शांति के लिए संयुक्त रूप से कार्रवाई करनी चाहिए. एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री ने 4 मई को एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक से इतर द्विपक्षीय वार्ता की थी.


चीन ने भले ही अपने रुख से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की हो, लेकिन एससीओ की बैठक के जरिए भारत ने ये दिखा दिया कि वो इस मसले पर भी अब झुकने को कतई तैयार नहीं है और चीन सीमा पर 2020 के पहले जैसी स्थिति को मेंटेन करे. पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ लगती एलएसी के कुछ हिस्सों में जारी गतिरोध चौथे साल में प्रवेश कर गया है. उस नजरिए से भारत का रुख बेहद ही संतुलित रहा.


कुल मिलाकर एससीओ की इस बैठक के जरिए भारत ने आतंकवाद से लेकर ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, अफगानिस्तान जैसे मुद्दों पर जिस तरह का रवैया दिखाया, ये वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत का परिचय था.


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)