जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने चार साल बाद पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले के बारे में एक बयान दिया. सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर सत्यपाल मलिक के पास इस तरह की चिंता थी, तो वे उस समय चुप क्यों रहे? अगर उस समय चुप रहे, तो अभी क्यों बोल रहे हैं?


मुझे तो इस पूरे प्रकरण में ही बड़ा झोल नजर आ रहा है. वह उस समय गवर्नर के तौर पर काम कर रहे थे. सरकार थे. तो उस समय उनको बोलना चाहिए था. 40 लोगों की मौत हुई थी, तो अगर उनकी अंतरात्मा थी तो उनको जोर-शोर से जांच की मांग करनी चाहिए थी. ये जो टाइमिंग है उनकी, यह तो मेरे ख्याल से गलत है और निंदनीय भी.


जहां तक सीबीआई के समन की बात है तो वह मामला को इंश्योरेंस फ्रॉड से जुड़ा है और उस पर तो कई बार उनको समन भेजे जा चुके हैं. 22 अप्रैल को भी उनको आर के पुरम थाने में बिठाया गया था, जहां तक मेरी जानकारी है, उनको गिरफ्तार नहीं किया गया था. ये नाखून कटाकर शहीद बनने की बात है.


पक्ष हो या विपक्ष, अपने हित का ध्यान सबको


ये तय है कि टाइमिंग पर सबको शक होगा. हालांकि राजनीति में कोई नियम और वक्त पहले से तय नहीं होते हैं. अगर आप सरकार पर हमलावर हैं, तो सरकार भी अपनी रक्षा करेगी, सरकार भी हमला करेगी ही. यह तो पूरा देश जानता है कि उस समय सीआरपीएफ ने एक विमान की मांग की थी. अब उस समय की क्या स्थितियां थीं, उन्हें क्यों नहीं दिया गया, सरकार की क्या मजबूरी थी, पॉलिसी थी, यह तो सरकार ही जाने. गवर्नमेंट के पास कोई कारण तो होगा ही.


सबसे बड़ी बात कि अगर सत्यपाल मलिक को बिल्कुल पता था, वह एकदम कॉन्फिडेंट थे, तो उनको तो जोर-शोर से जांच की मांग करनी चाहिए थी. अभी भी बहुत देर नहीं हुई है. अगर वह तयशुदा तौर पर मानते हैं कि गृह मंत्रालय का ही इसमें हाथ है तो उनको अभी भी जांच की मांग करनी चाहिए. कोर्ट के माध्यम से उनको अपनी मांग रखनी चाहिए. मैं इस बात पर एकदम कायम हूं कि अगर उनकी बात में दम है, तो उनको अड़े रहना चाहिए कि जांच हो. बाकी, उस समय सरकार ने क्या किया तो ये हुआ और वो हुआ, ये सारी बातें राजनीति ही है.


जहां तक विपक्षी नेताओं के इस आरोप की बात है कि सीबीआई और ईडी के जरिए उनको चुप कराया जा रहा है, सत्ता पक्ष उन पर शिकंजा कस रहा है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो बड़े जोर से कहा है कि जो भी नेता करप्शन में लिप्त पाए जाएंगे, वे चाहे कितने भी बड़े नेता हैं, उनको नहीं बख्शा जाएंगे. जितने भी नेता हल्ला कर रहे हैं, आप जानते हैं कि उनमें से कोई भी क्लीन नहीं है. सवाल तो वही है. या हम पीएम पर भरोसा करें या इन नेताओं पर भरोसा करें. एक चीज जो लोगों को परेशान करती है, वह ये जरूर है कि सारी कार्रवाई जो हो रही है, वह विपक्ष के खिलाफ होती है? क्या रूलिंग पार्टी में कोई करप्ट नहीं है, क्या सत्ताधारी वर्ग में भ्रष्टाचार बिल्कुल नहीं है? अगर है तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं, ऐसे में तो जनता को यही लगता है कि चुन-चुन कर आप विपक्ष को निशाना बना रहे हैं. ये बातें तो लोगों को परेशान करती हैं.


सत्यपाल मलिक तो कभी बीजेपी के थे ही नहीं


सत्यपाल मलिक कांग्रेसी थे. सरकार उनको तब उठाकर लाई और मोस्ट डिफिकल्ट स्टेट का मुखिया बना दिया. उस समय जाहिर है कि सरकार को उन पर पूरा भरोसा था. खासकर, तब जब सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाया था. यूपीए की सरकार के समय भी ईडी-सीबीआई का इस्तेमाल होता था. यहां तक कि उन्होंने तो रॉ और आईबी का भी इस्तेमाल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ किया. जिस काम के लिए वे बनी थीं, उसके बदले विपक्षी नेताओं की उन्होंने मॉनिटरिंग करवाई. ये तो हरेक पार्टी करती आई है. यहां तक कि विदेशों में भी ये होता है. अमेरिका में भी, यूके में भी ये काम किया जाता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण कि सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप लग रहे हैं. वैसे, कहा तो जाता है कि पावर करप्ट्स एंड अब्सोल्यूट पावर करप्ट्स अब्सोल्यूटली. लाजिमी है कि इन संस्थानों को स्वायत्त बनाया जाए. जो भी पार्टी सत्ता में आए, उसका प्रभाव इन संस्थानों पर न पड़े. सत्यपाल मलिक सक्रिय राजनीति में आएंगे या नहीं, ये तो पॉलिटिकल सवाल है, पॉलिटिकल स्पेक्यूलेशन है. हालांकि इतना तो तय है कि वे कुछ चाह रहे होंगे, तभी तो ऐसा कुछ कर रहे हैं.


सरकार कश्मीर नीति पर करे पुनर्विचार


जब तक पाकिस्तान है और पाकिस्तान को मौका मिलेगा, वह हर प्रकार की बदमाशी करेगा. वह फंडिंग करेगा, मोरल सपोर्ट देगा, लोकल लेवल पर अगर सपोर्ट मिला तो पाकिस्तान इनफिल्टरेट जरूर करेगा. जी20 का भी मामला है. पाकिस्तान जाहिर तौर पर दिखाना चाहेगा कि मई में जब विदेश से तमाम डेलीगेट्स जमा हों तो ऐसी घटना हो जो दिखा सके कि सब कुछ भारत के नियंत्रण में नहीं है, भारत जैसा कह रहा है, हालात उतने सामान्य नहीं हैं. चुनौती बनी हुई है. फिर, आप हर इंच को कवर कर लें, ऐसा भी नहीं हो सकता है. कश्मीर में कई जगहें, कई इलाके हैं जहां से आसानी से घुसपैठ हो सकती है. इजरायल की इतनी छोटी सीमा है, सात चक्रों का सुरक्षा घेरा है, फिर भी फलस्तीनी घुस आते हैं. आप की तो बहुत बड़ी बाउंड्री लाइन है. कैसे रोकेंगे?


वैसे भी, जो पहली गोली चलाता है, पहली जीत तो उसकी दर्ज होगी ही. हां, चुनाव हैं तो सरकार जरूर इसका फायदा उठाएगी. सरकार की ओर हमेशा नरेंद्र मोदी को मजबूत और दृढ़ नेता की छवि के तौर पर ही पेश किया जाएगा. पाकिस्तान को पनिश तो जरूर करेंगे, लेकिन कब और कैसे, यह अभी तय नहीं है.


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)