बिहार में बहार है नीतीशे सरकार है. ऐसा कहने वाली सरकार पुल बनाती है. 2015 की जगह 2020 में पुल बनकर तैयार होता है लेकिन उस पुल का हिस्सा एक महीने भी नहीं टिकता और पहली बारिश में ही भरभराकर गिर जाता है. नतीजा ये होता है कि सुशासन में लोग अपने इलाके में ही बंधक बन जाते हैं.


एक तो लॉकडाउन है ऊपर से इस कुशासन ने इलाके के लोगों के आने-जाने पर पाबंदी ही लगा दी है तो क्या नीतीश का सुशासन ढह रहा है? सफाई में सरकार पुल पुलिया का फर्क बता रही है कह रही हैं कि ये सत्तर घाट पुल नही टूटा बल्कि पहुंच पथ कटा है.

बात बिल्कुल सच है लेकिन सच तो ये भी है ना कि ये पहुंच पथ भी इसी सत्तर घाट पुल के साथ बन कर ही तैयार हुआ था. 264 करोड़ की पुल की लागत में ही ये पहुंच पथ बन कर तैयार हुआ और महज़ 29 दिन में ही ढह गया. राज्य के पीडब्लूडी मंत्री नंद किशोर यादव जिनके विभाग के अनतर्गत पुल का निर्माण हुआ वो कह रहे है ये प्राकृतिक आपदा है. पानी के तेज़ बहाव में ऐसा होता ही रहता है.

वहीं विपक्ष पुल के ढहने की वजह भ्रष्टाचार बता रहा है, तेजस्वी यादव निशाना साध रहे है कह रहे है कि साईकिल पर चलने वाले मंत्री रेंज रोवर में चलने लगे है. कुल मिलाकार पुल पर जबरदस्त सियासी घमासान है.

आज कि इस चर्चा के बाद मेरी राय- जनता की उम्मीदें टूटी हैं. पुल-पुलिया टूटने के नाम पर जनता को मत उलझाए. सुशासन का वादा है इसलिए जवाबदेही तय हो.

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