Salman Rushdie Attacked: कितना अजीब संयोग है कि दो दिन बाद देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाएगा लेकिन उससे ऐन पहले 75 बरस पूरे करने वाले भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) पर जानलेवा हमला करके ये संदेश दिया जाता है कि दुनिया के हर कोने में आतंकवाद (Terrorism) अब भी जिंदा है. एक लेखक को सच लिखने की क्या सजा दी जा सकती है, इसका नजारा शुक्रवार को दुनिया ने बेहद हैरानी के साथ देखा लेकिन इसके जरिये जो खौफजदा माहौल बना दिया गया है, उसे खत्म करना अब अमेरिका (America) समेत दुनिया के कई मुल्कों के लिए परेशानी का सबसे बड़ा सबब बनता हुआ दिखाई दे रहा है.


इसलिये कि इस्लामिक आतंकवाद किस हद तक खूंखार बनता जा रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वे 34 साल पहले जारी किये गए एक फतवे को भी अंजाम में बदलना नहीं भूलते. मुंबई शहर में जन्मे और बाद में ब्रिटेन की नागरिकता हासिल करने वाले अंग्रेजी के मशहूर लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयार्क में हुआ हमला पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद के पैराकारों की तरफ से एक खतरनाक संदेश है.


दुनिया के मशहूर मुस्लिम लेखक पर जानलेवा हमला करके इस्लामिक चरमपंथियों ने ये पैगाम देने की कोशिश की है कि ईशनिंदा करने वाले से वे बरसों बाद भी बदला लेने की ताकत रखते हैं लेकिन सबसे ज्यादा हैरान-परेशान करने वाली बात ये है कि यह हमला उस न्यूयॉर्क शहर में हुआ, जिसने दुनिया की सबसे बड़ी आतंकी त्रासदी को झेला है और जहां सुरक्षा के इतने चाक-चौबंद इंतजाम हैं कि ऐसे हमले के बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.


इतिहास गवाह है कि सच बोलने या लिखने वालों का अक्सर विवादों से ही नाता रहा है. देश को आजादी मिलने से महज दो महीने पहले मुंबई के एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार में जन्मे अहमद सलमान रुश्दी ने वैसे तो कई किताबें लिखीं लेकिन सबसे चर्चित और सबसे विवादास्पद पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेज' (The Satanic Verses) ने उनकी जिंदगी को 34 बरस पहले ऐसे खतरे में डाल दिया, जिसका अंजाम आखिरकार उन्हें शुक्रवार को भुगतना ही पड़ा. रुश्दी मुंबई में ही पले-बढ़े और उन्होंने दक्षिण बॉम्बे के फोर्ट इलाके स्थित कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल में पढ़ाई की. भारत से इंग्लैंड जाने के  बाद वारविकशायर में रग्बी स्कूल और फिर किंग्स कॉलेज, कैम्ब्रिज से ग्रेजुएशन किया.


बता दें कि रुश्दी की विवादित पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ ईरान में 1988 से ही प्रतिबंधित है. कई मुसलमानों का मानना है कि रुश्दी ने इस पुस्तक के जरिये ईशनिंदा की है. इसे लेकर ईरान के तत्कालीन सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने रुश्दी को मौत की सजा दिए जाने का फतवा जारी किया था. साथ ही रुश्दी की हत्या करने वाले को 30 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक का इनाम देने की भी पेशकश की गई थी.


बताते हैं कि जान से मारे जाने की धमकियों की वजह से सलमान रुश्दी लगातार नौ साल तक छिपे रहे. हालांकि, धमकियों के बावजूद, सलमान रुश्दी ने 1990 के दशक में कई उपन्यास लिखे. साल 2007 में, उन्हें साहित्य की सेवाओं के लिए इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा 'सर' की उपाधि से भी नवाजा गया था लेकिन साल 2002 में वे अमेरिका जाकर बस गए और पिछले 20 साल से वहीं रह रहे हैं.


वैसे तो रुश्दी पिछले चार दशक से भी ज्यादा वक्त से उपन्यास लिख रहे हैं लेकिन 1981 में छपे 'मिडनाइट चिल्ड्रन' के साथ उन्हें शोहरत मिली. बताते हैं कि अकेले ब्रिटेन में ही इसकी दस लाख से अधिक प्रतियां बिकीं. यह उपन्यास आधुनकि भारत के बारे में है. 


साल 1988 में रुश्दी की चौथी किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' प्रकाशित हुई. इस उपन्यास से कुछ मुसलमानों में आक्रोश फैल गया, उन्होंने इसकी सामग्री को ईशनिंदा करार दिया. पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन होने लगे और इस किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग होने लगी. वहीं सेंसरशिप और किताब जलाने के विरोध में भी कई विरोध प्रदर्शन हुए. पुस्तक के प्रकाशन के एक साल बाद, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी किया. फतवा जारी होने के बाद सारी चीजें एक अलग ही स्तर पर चली गईं. खुमैनी के बयान के बाद दुनिया में कूटनीतिक संकट पैदा हो गया. इस किताब के प्रकाशन के बाद हुए विरोध प्रदर्शन में पूरी दुनिया में 59 लोग मारे गए. मरने वालों में इस उपन्यास के कुछ अनुवादक भी थे, जिन्हें कट्टरपंथी तत्वों ने मौत के घाट उतार दिया.


इस पुस्तक के समीक्षकों के मुताबिक, यह कोई धार्मिक विमर्श वाला उपन्यास नहीं है. मुंबइया फिल्मों में हिंदू धार्मिक चरित्र निभाने वाला सुपरस्टार जिबरील फरिश्ता और अपनी देसी पहचान से बचने वाला वॉयसओवर आर्टिस्ट सलादीन चमचा मुंबई से लंदन के रास्ते पर है. बीच में जहाज में विस्फोट हो जाता है. दोनों जिंदा बच जाते हैं पर उनकी जिंदगियां बदल जाती हैं. मुहम्मद साहब के जीवन से जुड़े कुछ प्रसंग पागलपन की ओर जा रहे जिबरील के सपनों में आते हैं लेकिन मुस्लिम धर्माचार्यों ने कुछ ऐसा माहौल बनाया, मानो रुश्दी इस्लाम को नष्ट करने के लिए लगाए गए पश्चिमी देशों के एजेंट हों. उनके मुताबिक, पीछे मुड़कर देखें तो सैटेनिक वर्सेज एक लाजवाब फिक्शन है.


सलमान रुश्दी के लेक्चर देने से ठीक पहले हुए हमले के बाद न्यूयॉर्क स्टेट पुलिस ने अपने बयान में यह भी बताया है कि हमलावर ने लेखक का इंटरव्यू ले रहे शख्स पर भी हमला किया था. पुलिस के अनुसार, इंटरव्यू लेने वाले के सिर में मामूली चोट लगी है. इस कार्यक्रम के ब्यौरे के अनुसार, सलमान रुश्दी का इंटरव्यू लेने वाले शख्स हेनरी रीज हैं. वह पिट्सबर्ग की एक एनजीओ 'सिटी ऑफ एसाइलम' के सह-संस्थापक और अध्यक्ष हैं. इस संस्था की स्थापना 2004 में हुई थी और संस्था का काम 'जान के खतरे से जूझ रहे लेखकों को पीट्सबर्ग में संरक्षण देना है. संस्था की वेबसाइट पर बताया गया है कि सलमान रुश्दी को 1997 में सुनने के बाद इसे शुरू किया गया था.


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