सचिन पायलट को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कई जगह हम पढ़ रहे हैं कि 11 जून को वह नयी पार्टी का ऐलान कर सकते हैं, कुछ बड़ा कर सकते हैं, तो ये सारी कयासबाजी है. वह कुछ नया तो करेंगे, अपना रोडमैप भी शेयर करेंगे यह भी तय है, लेकिन क्या वह कांग्रेस छोड़ नई पार्टी बनाएंगे, यह कहना बहुत जल्दी होगी. अखबारों की खबर में तो दो साल से उनकी पार्टी का टेंटेटिव नाम और बहुत कुछ भी चल रहा है, लेकिन सचिन पायलट से जब भी बात होती है तो वह कहते हैं कि पार्टी छोड़कर वह कहीं नहीं जाएंगे.


11 जून को हरेक साल सचिन पायलट अपने पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर दौसा में एक बड़ा कार्यक्रम करते हैं, हरेक साल ही सारे अनुमान लगाए जाते हैं, आने-जानेवालों की गिनती की जाती है, लेकिन कुल मिलाकर अटकलों का ही बाजार है. जहां तक सचिन पायलट का सवाल है, वह पिछली बार भी कह चुके हैं कि उन्होंने अपनी बात आलाकमान तक पहुंचा दी है और अब उनको इंतजार है कि वे क्या फैसला करते हैं. 


राजस्थान में ईगो की लड़ाई


राजस्थान में जो क्लैश है, वह दो बड़े ईगोज की लड़ाई है. कांग्रेस के दो बड़े नेता एक-दूसरे पर मौका मिलते ही कटाक्ष करते हैं. अब ये कहानी जो यूनाइटेड कलर्स ऑफ राजस्थान से शुरू हुई थी, वह अब डिवाइडेड हाउस ऑफ राजस्थान तक आ गयी है. सचिन पायलट के सामने दो-तीन बड़े विकल्प हैं. आलाकमान उनको दिल्ली लाना चाह रहा है. वह राजस्थान से किसी तरह सचिन पायलट को दूर करना चाह रहे हैं और अशोक गहलोत को एक मौका देना चाह रहे हैं, तो इसीलिए पायलट के सामने विकल्प है कि वह केंद्र में कोई बड़ा पद महासचिव वगैरह का लेकर चले जाएं.


गहलोत ने बहुत ही महत्वाकांक्षी नंबर रखा है, दूसरा तरीका ये हो सकता है कि राजस्थान में ही उनको स्थापित किया जाए. अभी राजस्थान में सभी चीजों पर अशोक गहलोत का ही कब्जा है. सारी चीजों पर उनका ही कब्जा है. कांग्रेस का संगठन भी शिथिल पड़ा है, तो सचिन गुट का कहना है कि पावर का विकेंद्रीकरण हो. आलाकमान इस तरह का सिग्नल दे कि युवाओं के लिए एक मौका भी है.


अंदरखाने एक तीसरी बात यह है कि पायलट को चुनाव समिति की बागडोर दी जाए या फिर सीपीसी यानी प्रदेश कांग्रेस कमिटी में ही फिर से वापस लाया जाए, अध्यक्ष बनाकर. हालांकि, इस पर अशोक गहलोत राजी नहीं होंगे, वह चुनावी साल में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे कि एक वैसे व्यक्ति के हाथ में सीपीसी की कमान दी जाए, जिसके साथ उनकी वेवलेंग्थ नहीं मिलती.



सचिन हैं कैलकुलेटिव राजनेता  


सचिन पायलट के लिए बहुत कम समय बच गया है कि वह नया राजनीतिक दल बनाएं और उसे पूरे राजस्थान में फैला सकें. फिर भी, अगर मान लिया जाए, वैसे इसकी संभावना है नहीं लेकिन अगर उन्होंने नया दल बना लिया तो नुकसान उस हाल में कांग्रेस का ही होगा, वह पूर्वी राजस्थान में काफी डेंट लगा सकते हैं. वहां से 45 सीटेंं आती हैं और वह पूरी की पूरी सीटें पिछली बार एकतरफा तरीके से कांग्रेस के पास गयी थीं.


वहां सचिन की जाति का प्रभुत्व है, पायलट की साख है औऱ वहां कांग्रेस की हानि काफी होगी. सचिन पायलट एक कैलकुलेटिव नेता हैं और वह ऐसी गलती नहीं करेंगे. उन्होंने जब कांग्रेस के साथ शुरुआत की थी, तो भी कांग्रेस का ग्राफ काफी नीचे था. एक राष्ट्रीय पार्टी को जहां तक उन्होंने पांच साल में पहुंचाया, एक नयी पार्टी और नए सिंबल के साथ वहीं पहुंचाने में बहुत समय लगेगा और सचिन जैसे नेता शायद ही हड़बड़ी में कोई काम करें. 


दोनों नेताओं के बीच खाई बहुत गहरी


कल ही एक साक्षात्कार में अशोक गहलोत ने कहा था कि उन्होंने तो फॉरगिव एंड फॉरगेट की बात तभी कह दी थी. सचिन पायलट और अशोक गहलोत ने हालांकि अलग-अलग ही बातचीत की है. कांग्रेस आलाकमान भी यह बात जानती है कि ये दोनों लोग एक प्लेटफॉर्म पर साथ नहीं आ सकते. हालांकि, अशोक गहलोत ने अपनी बातें काफी नरम की हैं, लेकिन ये सब बयानबाजी ही है और दोनों के बीच की खाई बहुत गहरी हो गयी है. दोनों के बीच ईगो इतना बढ़ गया है कि दोनों बस एक-दूसरे को नीचा दिखाना चाहते हैं. अशोक जी ने अपना रुख भी साफ कर दिया है. वह कई इंटरव्यू और रैली में सचिन पायलट के मसलों का जवाब दे चुके हैं. सचिन पायलट भी बार-बार दिखाते हैं कि जिन मसलों को मैंने उठाया था, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. 


राजस्थान की एक खासियत है कि पांच साल के बाद सत्ता का चक्र घूम जाता है. बीजेपी 163 सीटों पर थी और कांग्रेस केवल 21 सीटों पर थी, फिर भी  मैंडेट बदल गया था. तो, कांग्रेस आलाकमान यह भी सोच रहा होगा कि भविष्य में भाजपा से लड़ने के लिए एक पैन-राजस्थान नेता की जरूरत होगी, तो वो सचिन पायलट ही होंगे. कहें तो यह अब कांग्रेस हाईकमान के मैनेजमेंट का टेस्ट है. ये द्वंद्व तो 4 साल से चल ही रहा था और किसी ने आज तक हस्तक्षेप नहीं किया है, और अब हालात काबू से बाहर हो गए हैं. 


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