यूक्रेन में छिड़ी जंग को अगले हफ़्ते एक साल पूरा हो जायेगा लेकिन लगता नहीं कि रूस इसे खत्म करने के मूड में है. सवाल उठ रहा है कि इस युद्ध को रोकने और शांति बहाली के प्रयासों में कोई तेजी क्यों नहीं दिखाई दे रही है? हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी. जाहिर है कि उन्होंने पुतिन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यही संदेश दोहराया होगा कि जंग रोककर वार्ता के जरिए समस्या का समाधान निकाला जाए, लेकिन सवाल है कि पुतिन अपनी जिद पर अड़े रहकर मोदी समेत दुनिया के अन्य नेताओं के अनुरोध को अनसुना आखिर क्यों कर रहे हैं?


पिछले साल 24 फरवरी को रूसी सेना ने यूक्रेन पर आक्रमण करके एक छोटे व खूबसूरत देश को तबाही के खंडहर में बदल देने की शुरुआत की थी. तब दुनिया को यही लगा था कि ये जंग चंद दिनों में खत्म हो जायेगी, लेकिन रूस के तेवरों को देखने के बाद आखिरकार अमेरिका समेत नाटो देशों को यूक्रेन के बचाव में कूदना पड़ा लेकिन रूस ने उनकी भी कोई परवाह नहीं कि और आज साल भर बाद भी वे उसी जिद पर अड़े हुए हैं.संयुक्त राष्ट्र को भी इसका अहसास हो चुका है औऱ शायद इसीलिये 6 फरवरी को UN की महासभा में महासचिव Antonio Guterres  ने साफ कहा कि दोनों देशों के बीच युद्ध ख़त्म होने की संभावना बेहद कम है बल्कि आने वाले दिनों में ये खून खराबा और भी बढ़ सकता है. उन्होंने कहा कि हमें डर है कि अब ये स्थिति व्यापक युध्द होने की तरफ़ आगे बढ़ रही है.


अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी देशों के गठबंधन ने भी यही आशंका जताई है कि आने वाले दिनों में रूस कुछ और बड़े हमले कर सकता है. यूक्रेन भी इसलिये डरा हुआ है कि आक्रमण का एक साल पूरा होते ही रूस कुछ और घातक हमलों को अंजाम देने से बाज नहीं आने वाला है. कोई भी जंग होती तो देशों की सेनाओं के बीच ही है लेकिन उसमें हजारों बेगुनाह नागरिक भी मारे जाते हैं लेकिन रूस को इसकी कोई परवाह नहीं है. संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार विभाग ऐसे हताहतों के आधिकारिक आंकड़े जुटाता है.  उसके उच्चायुक्त के मुताबिक पिछले साल 24 फरवरी से लेकर इस साल  बीती 12 तारीख़ तक यूक्रेन में 7,199 लोग मारे गए हैं, जबकि 18,955 नागरिक जख्मी हुए हैं, जिनमें महिलाएं और छोटे बच्चे भी शामिल हैं.इस एक साल में 75 लाख से भी ज्यादा लोगों को अपना घर-बार छोड़कर कहीं और शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा है.


गुरुवार को ही रूस ने यूक्रेन पर 32 मिसाइल दागी हैं. हालांकि यूक्रेनी सेना ने इनमें से 16 को मार गिराया है. युद्ध शुरू होने के बाद से रूस का ये 15 वां हमला था. हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका समेत नाटो देशों ने यूक्रेन को सैन्य साजो-सामान की भरपूर मदद दे रखी है लेकिन रूस के हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने की सारी कमान अमेरिका के3 हाथ में ही है.अमेरिका ने यूक्रेन को अब तक 50 बिलियन डॉलर की मदद उपलब्ध कराई है.इसलिये रूस को लगता है कि यूक्रेन को आगे रखकर अमेरिका ही उसके साथ छद्म युद्ध लड़ रहा है लेकिन रूस के लिये यह उसके अस्तित्व को बचाने की लड़ाई है. इस जंग को लेकर भारत ने अभी तक संतुलित रुख ही अपनाया हुआ है लेकिन उसने रूस की निंदा भी नहीं की है.कूटनीतिक, रणनीतिक और व्यापार के लिहाज़ से भारत के लिए रूस, अमेरिका और यूरोप,तीनों ही बेहद अहम हैं लेकिन इन तीनों के लिये भी भारत का विशेष महत्व है क्योंकि वह रक्षा सामानों का सबसे बड़ा खरीददार है.जी-20 की अध्यक्षता मिलने के बाद भारत की कोशिश यही है कि दिल्ली में होने वाली शिखर बैठक से पहले ही वह इस जंग को खत्म करवाने में अपनी अहम भूमिका निभाए.इसी मकसद से पीएम मोदी का संदेश लेकर डोभाल ने पुतिन से मुलाकात की थी.अब देखना ये है कि पुतिन भारत के अनुरोध को कितनी गंभीरता से लेते हैं.


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