रुस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग का आज 27 वां दिन है लेकिन इसमें शुक्रवार यानी 25 मार्च की तारीख बेहद अहम है, जो ये तय करेगी कि ये युद्ध रुकेगा या फिर अपनी भयानक शक्ल लेते हुए दुनिया को तीसरा विश्व युद्ध झेलने पर मजबूर कर देगा? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन 25 तारीख को यूक्रेन से सटे देश यूक्रेन जा रहे हैं,जो रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के गुस्से को सातवें आसमान पर ले जाने के लिए सिर्फ काफी ही नहीं बल्कि पानी सिर के ऊपर से गुजरने की माफ़िक हैदरअसल, बाइडन नाटो देशों के साथ मिलकर रुस की जबरदस्त घेराबंदी करने की तैयारी में हैं.


सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि हालांकि अमेरिका ने अभी तक इस जंग में सीधे कूदने से खुद को बचाये रखा था लेकिन बाइडन की इस पोलैंड यात्रा को सीधे तौर पर रुस के खिलाफ नाटो देशों को लामबंद करने की सबसे कारगर कोशिश के रुप में देखा जा रहा है. अगर आसान भाषा में कहें, तो बाइडन ने यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्स्की की वो मुराद पूरी कर दी है, जिसके लिए वे इतने दिनों से अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से आगे आकर मदद करने की गुहार लगा रहे थे. उनके मुताबिक अब इसके दो ही अंजाम देखने को मिल सकते हैं.पहला ये कि अमेरिका व नाटो देशों की इस एकजुट ताकत और मुंहतोड़ जवाब देने को भांपते हुए पुतिन युद्ध को रोक दें, जिसकी संभावना न के बराबर है.और दूसरा,ये कि ऐसी एकजुट ताकत को देखकर पुतिन कहीं इतना न भड़क जाएं कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने में देरी करने से अब जरा भी न झिझकें.


वैसे बाइडन के बयान से रुस का पारा कितना बढ़ चुका है, इसका अंदाज़ तो सोमवार को ही लग गया था,जब रुस ने अमेरिकी राजदूत को तलब करके बेहद तीखी भाषा में नाराज़गी जताते हुए अपने मंसूबों को पूरा करने का इशारा भी जाहिर कर दिया. हालांकि रूस ने दोनों देशों के रिश्तों को बिगाड़ने की पहल करने के लिए सारा दोष अमेरिका पर ही डाला है.


हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति की इस पोलैंड यात्रा के दौरान नाटो के सदस्य देशों में जर्मनी का क्या रुख रहेगा, ये फिलहाल कोई भी नहीं जानता. इसलिये कि नाटो के तमाम बड़े यूरोपीय देशों द्वारा रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाने के बावजूद जर्मनी ने अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है. वह रुस से मिलने वाली प्राकृतिक गैस को लेकर अपना फायदा पहले देख रहा है क्योंकि प्रतिबंध लगाते ही रूस नार्ड स्ट्रीम 2 पाइप लाइन की परियोजना को फौरन रोक देगा.


इसलिये अन्तराष्ट्रीय सामरिक विशेषज्ञ ये सवाल उठा रहे हैं कि क्या बाइडन जर्मनी को इसके लिए तैयार कर पाएंगे या फ़िर वह नाटो का ऐसा इकलौता ऐसा देश बन जायेगा, जो यूक्रेन की सैन्य मदद करने की बजाय परोक्ष रुप से रूस का साथ देगा? हालांकि नाटो का सदस्य होने के नाते उसके लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं है लेकिन जर्मनी अभी तक अपने इसी रुख पर अड़ा हुआ है कि वो किसी भी तरह के युद्ध का पक्षधर नहीं है और यूक्रेन को हथियारों की मदद करने से जंग की ये ज्वाला और भड़केगी.


लेकिन यूरोपीय देशों का बाइडन का ये दौरा रुस के साथ ही चीन के लिए लिए भी चिंता का बड़ा सबब बन चुका है क्योंकि बाइडन पोलैण्ड से पहले बेल्जियम पहुंचेंगे, जहां वे जी-7 के अलावा यूरोपीय यूनियन के नेताओं के साथ मिलकर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे.  व्हाइट हाउस के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति 25 मार्च को पोलैंड की राजधानी वारसॉ की यात्रा करेंगे, जहां वह पोलैंड के राष्ट्रपति के साथ एक द्विपक्षीय बैठक करेंगे.बैठक के दौरान चर्चा करेंगे कि कैसे यूक्रेन पर रूस के अनुचित और अकारण युद्ध के समय अमेरिका, अन्य सहयोगियों और भागीदारों के साथ, इस मानवीय संकट का जवाब दे रहा है.बता दें कि पोलैंड में यूक्रेन से पलायन करने वाले करीब 20 लाख लोगों ने शरण ले रखी है.


इस बीच वक़्त की नाजुकता को भांपते हुए अमेरिका में चीन के राजदूत किन गैंग ने सफाई देते हुए कहा है कि उनके देश ने यूक्रेन में इस्तेमाल के लिए रूस को हथियार नहीं भेजे हैं. हालांकि साथ ही उन्होंने ये भी कह दिया कि चीन भविष्य में ऐसा नहीं करेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. गौरतलब है कि बीते शुक्रवार को ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई फोन वार्ता में बाइडन ने जिनपिंग को आगाह किया था कि वे रुस की सैन्य मदद न करें,अन्यथा उन्हें इसके गंभीर अंजाम भुगतने होंगे.


अमेरिका में तैनात चीनी राजदूत ने ये भी कहा कि, यह एक गलत सूचना है कि चीन रूस को सैन्य मदद दे रहा है. हम इसे खारिज करते हैं. उनका दावा है कि इसके बजाय चीन खाना, दवाईयां, सोने के लिए बिस्तर, बच्चों के खाने का सामान जैसी वस्तुएं भेज रहा है, किसी भी पार्टी को हथियार और बारूद नहीं भेज रहा है.


अंतराष्ट्रीय बिरादरी जानती है कि इस युद्ध में चीन पर्दे की पीछे से रुस के साथ ही खड़ा हुआ है और इसीलिये उसने अभी तक यूक्रेन पर हमले के लिए रूसी आलोचना से बचने की कोशिश की है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे कई देशों ने चीन से ऐसा करने की अपील भी की थी, जिसे उसने अनसुना कर दिया. इसलिये सामरिक विशेषज्ञ ये मान रहे हैं कि 25 मार्च के बाइडन के दौरे का नतीजा देखने के बाद चीन खुलकर रुस के साथ खड़ा हो सकता है,जो दुनिया को एक बड़े विनाश की तरफ धकेल देगा.



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)