Russia invading Ukraine: यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस को लेकर लोग भावुक हो रहे हैं कि, रूस ने हमेशा हमारी मदद की है, इसलिए रूस का पक्ष लेना जरूरी है. यूक्रेन कब हमारा था, जो हम उसके हित की बात करें. लेकिन लोग भूल जाते हैं कि भारत और रूस के संबंध की बुनियाद भारत और सोवियत संघ का संबंध रहा है. तब यूक्रेन भी सोवियत संघ का ही हिस्सा था. दुनिया को बेहतर या बदतर बनाने में सोवियत संघ के नाते दोनों की बराबर भूमिका थी. ये सही है कि सोवियत संघ के टूटने के बाद भी रूस से भारत के रिश्ते बेहतर रहे. लेकिन ये भी सही है कि उस रिश्ते में पहली वाली बात नहीं रही क्योंकि भारत भी समाजवाद के रास्ते से हटकर नवउदारवादी अर्थव्यवस्था की गली में पहुंच गया. 


कोई कैसे परमाणु युद्ध की बात कर सकता है?
नरसिम्हा राव के समय में अमेरिका से बेहतर रिश्तों का जो आधार रखा गया, वो तब हाथ मिलाने से लेकर अब गले लगने और गले पड़ने तक पहुंच गया. दूसरी तरफ देखें तो रूस की तरफ से यूक्रेन पर हमला एक देश का दूसरे देश पर किया गया हमला कम है, एक नेता के पागलपन का मामला ज्यादा है. जब दुनिया दूसरे विश्वयुद्ध में परमाणु युद्ध की विभीषिका को झेल चुकी है तो फिर आज कोई देश परमाणु युद्ध की बात कैसे कर सकता है? और अगर करता है तो वो मानवता के प्रति अपराधी है. इसलिए भी पुतिन को रूस से जोड़कर नहीं बल्कि एक नेता की अतृप्त महत्वाकांक्षा से जोड़कर देखा जाना चाहिए. वो नेता जो फिर से लिंकन और स्टालिन बनना चाहता है. जिसके राज में रूस का हाल ये हुआ कि रूस के सिर्फ 10 फीसदी लोगों के पास ही देश की 87 फीसदी संपत्ति है. इन सबसे आगे अहम सवाल ये भी है कि क्या पुरानी दोस्ती के नाम पर किसी के अन्याय का समर्थन किया जा सकता है?


बचपन में मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी पढ़ी थी- पंच परमेश्वर. मेरी सबसे पसंदीदा कहानियों में एक है. उसमें एक अलगू चौधरी होते हैं और एक होते हैं उनके जिगरी यार जुम्मन मियां. एक होती हैं जुम्मन मियां की खाला (मौसी) जो नावल्द होने के कारण अपनी संपत्ति जुम्मन मियां को लिख देती हैं. लेकिन जुम्मन मियां धीरे-धीरे बूढ़ी खाला का ध्यान रखना बंद कर देते हैं. बूढ़ी महिला की दुर्गति हुई तो उसने पंचायत बुलाने की धमकी दी. जुम्मन ने खाला की धमकी को हवा में उड़ा दिया. खाला जुम्मन के दोस्त अलगू चौधरी के पास पहुंचीं और पंच बनने के लिए कहा. अलगू ने बेबसी जतायी कि खाला, जुम्मन मेरा दोस्त है, मैं उससे बिगाड़ कैसे कर सकता हूं. इस पर खाला ने जो कहा, मेरी समझ से वही बात कहानी का सार है. खाला ने कहा- बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कहोगे?


वो कहानी एक पारिवारिक पंचायत पर आधारित थी. लेकिन ईमान की बात तो सार्वभौमिक सत्य है. ये बात सही है कि रूस के साथ भारत के बहुत अच्छे संबंध रहे हैं. ये भी सही है कि समय-समय पर रूस से हमारा बेहतर लेनदेन चलता रहा है और रूस से हमें मदद मिली है. ये भी सही है कि सोवियत संघ के बिखराव के बाद यूक्रेन अमेरिकी पाले में चला गया था और कई मुद्दों पर उसने भारत का विरोध किया. जब 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो संयुक्त राष्ट्र में पेश निंदा प्रस्ताव का समर्थन और उसके पक्ष में मतदान यूक्रेन ने भी किया था. वैसे ही हथियारों के मामले में भी उसने एक बार हमारे ऊपर पाकिस्तान को प्रश्रय दिया था.


भारत के लिए दुविधा की स्थिति
तो ऐसी स्थिति भारत के सामने दुविधा हो सकती है. पुराने अनुभव कहते हैं कि रूस के साथ जाओ. लेकिन ईमान कहता है कि नहीं, आज समूची दुनिया को यूक्रेन के साथ खड़ा होना चाहिए. किसी देश पर किसी दूसरे देश का हमला सिर्फ दो देशों का मुद्दा नहीं है. यह हमारी सभ्यता को सीमित करने वाला, हमारी मनुष्यता और उसकी संवेदना को तोड़ने वाला कदम है. युद्ध और हमला मानवता को अपमानित और पराजित करने वाली प्रवृति है. हमारा विरोध किसी देश से हो सकता है लेकिन किसी कमजोर देश पर हमला हो तो उसका विरोध कसकर होना चाहिए. नहीं तो आज एक कर रहा है, कल दूसरा करेगा, परसों तीसरा करेगा. फिर ये दुनिया कबीलाई दौर में लौटती जाएगी जहां भैंस उसी की होगी, जिसके हाथों में लाठी होगी. कहीं ये प्रवृति अमेरिका दिखाता है, कहीं चीन तो कहीं रूस. ये तीनों देश आज दुनिया के लिए नासूर बन चुके हैं, जो ईमान की बात ना तो करते हैं, ना सुनते हैं. ये तीनों देश सभ्य दुनिया को कुपित दृष्टि से देखते हैं और इसीलिए इनके विरूद्ध ईमान की आवाज पर दुनिया को एकजुट होना होगा. होंगे तो बचेंगे. नहीं होंगे तो देर-सबेर सामूहिक संहार होगा.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)