आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजय दशमी के मौके पर मंगलवार को नागपुर से वार्षिक संबोधन के दौरान देश के कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए. उन्होंने कहा कि देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता की बहुत जरूरत है. मणिपुर में काफी लंबे समय से जारी हिंसा पर उन्होंने कहा कि इसमें विदेशी ताकतों का इसमें हाथ है. इसके साथ ही, देश में बढ़ते कट्टरपंथ पर भी अपने विचार जाहिर किए. 


विजय दशमी के इस खास मौके पर आरएसएस सरसंघचालक ने केन्द्र की सत्ताधारी मोदी सरकार और जी-20 के आयोजन की भी तारीफ की. उन्होंने कहा कि संघ लगातार मुसलमानों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है, वो एक बड़ा संदेश है. भागवत ने कहा कि एक ही देश में रहने वाले लोग पराए तो नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों से हमारी मुलाकातें हो रही हैं, बातें हो रही हैं.  


भागवत का स्वयंसेवकों को संदेश  


भागवत ने कहा कि मुझे लगता है स्वयं सेवकों ने काफी सवाल उठाएं हैं. इसकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अविवेक और असंतुलन नहीं होना चाहिए. अपना दिमाग ठंडा रखकर और सबको अपना मानकर हमें चलना पड़ेगा. ये आरएसएस प्रमुख की तरफ से बहुत बड़ा संदेश है, क्योंकि आमतौर पर स्वयं सेवक संघ के जो अलग-अलग ग्रुप हैं, उनमें बार-बार यही कहा जा रहा है कि एक असहिष्णुता दिख रही है. खासकर अल्पसंख्यकों, मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष तौर पर. उसमें जिस प्रकार की बातें हो रही है, उसकी तरफ मोहन भागवत का पूरा इशारा है. 



आरएसएस चीफ ने ये भी कहा कि पांच राज्यों में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है, उसमें हमें बहुत सोच समझकर  बात करनी पड़ेगी और सोच समझकर वोट करना पड़ेगा. जो बेहतर है उसे ही वोट करना होगा. अब ये आपको सोचना है कि बेहतर कौन है और कौन नहीं है.


भागवत ने किसी पार्टी का नाम नहीं लिया, हालांकि आप अगर देखें तो आरएसएस प्रमुख ने जिस प्रकार से सभी पार्टियों का जिक्र किया, जिस तरह से उन्होंने मोदी सरकार की एक तरह से तारीफ की है, और जिस तरह से उनके अच्छे संबंध पीएम मोदी से हैं, ऐसे में मुझे लगता है कि उनका इशारा निश्चित रुप से भारतीय जनता पार्टी की तरफ है. क्योंकि नरेन्द्र मोदी खुद स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता रहे हैं और आरएसएस प्रमुख खुद भी स्वयं सेवक हैं.


दोनों में अगर अच्छा तालमेल रहता है तो पूरा संगठन बेहतर काम करेगा. ये हकीकत है कि बीजेपी के जितने भी लोग हैं, अधिकतर संघ से जुड़े हुए लोग हैं. संघ के जो लोग हैं वे भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करते हैं. विश्व हिन्दू परिषद हो या फिर कोई अन्य संगठन हो सभी में वहीं लोग होते हैं तो अपने-अपने दायित्व के हिसाब से काम करते हैं.



मोदी सरकार की तारीफ के मायने


इस तरह से हम अगर देखें तो मोहन भागवत ने जो संदेश दिया उसका अर्थ यही है कि देश में एक अच्छा माहौल बनना चाहिए. मुसलमानों के साथ एक अच्छा व्यवहार होना चाहिए. उनको स्वीकार किया जाना चाहिए और उन्होंने साफ तो नहीं किया लेकिन जो राष्ट्रीय मुस्लिम मंच है, जो इंद्रेश कुमार के मार्ग दर्शन में चल रहा है, वो सारे काम जो हो रहे हैं, उनको देखते हुए उन्होंने निश्चित रुप से मुसलमानों के जिस तरह से जोड़ने की कोशिशें की जा रही हैं, उसकी तरफ भागवत का इशारा है.


लेकिन, ये चीजें सारे स्वयं सेवकों को पूरी तरह से स्वीकार्य नहीं हो पा रहा है, इसलिए भागवत को इसी ओर एक तरह से इशारा है. आरएसएस चीफ ने ये भी कहा कि कट्टरपंथ किसी प्रकार से नहीं होना चाहिए. लोगों की भावनाओं को नहीं भड़काया जाना चाहिए. 


मणिपुर में जो घटनाएं हो रही हैं, उसकी अगर हम बात करें तो भागवत ने ये कहा कि मणिपुर की जो घटनाएं हो रही हैं, उस पर उन्होंने चिंता तो जाहिर कीं लेकिन उन्होंने कहा कि ये विदेशियों का कराया हुआ है. इसमें संघ ने शुरू से ही एक स्टैंड लिया है कि मैतेई समुदाय के साथ (जो हिन्दू माना जाता है, जिन्हें संघ ने पूरा साथ दिया है). उसेक बावजूद जिस तरह से मणिपुर का मामला नहीं सुलझ पाया है, उस पर भागवत ने चिंता जाहिर की है.


मणिपुर हिंसा में विदेशी ताकत


भागवत ने वसुधैव कुटुंबकम की बात भी की है. इस तरह से आरएसएस प्रमुख ने रैली के दौरान सामाजिक, राजनीतिक संदेश दिया है. इसमें अगर फिर से देखें तो बात यही है कि मुसलमान के साथ संघ या बीजेपी अगर तालमेल बिठाने की कोशिश कर रही है तो संघ के बाकी स्वयं सेवक भी उसे स्वीकार करें और उसे दूसरी तरह से न लें.


साथ में, मणिपुर की जो घटनाएं घटी हैं, इस पर उन्होंने ये मानने से इनकार कर दिया कि ये देश के लोग नहीं करवा रहे हैं, बल्कि बाहरी तत्व वहां पर आकर करवा रहे हैं. इसका मतलब ये है कि बॉर्डर का वो क्षेत्र है, और वहां पर बाहर से आकर लोग जिस तरह से चीजें कर रहे हैं, वो अपने आप में बड़ा संदेश देता है कि संघ इसको देश के हित में तरजीह नहीं दे रहा है. इन सारी चीजों को अगर हम देखें तो भागवत ने जो कुछ कहा है उसका अर्थ यही है कि आने वाले चुनाव में बहुत सोच समझकर वोट कीजिए और एक ऐसी सरकार बनाइये जो निश्चित रुप से हमारे अनुकूल हो और सभी लोग उसको मानें. 


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]