ऋषभ पंत अभी 21 साल के हैं. अंतर्राष्ट्रीय करियर की शुरूआत हुए अभी सिर्फ 4 महीने बीते हैं. वो मौजूदा समय में उन चंद खिलाड़ियों में शुमार हैं जिन्हें टेस्ट, वनडे और टी-20 तीनों फॉर्मेट में खेलने का मौका मिला है. वनडे और टी-20 दोनों में उन्हें बतौर बल्लेबाज प्लेइंग 11 में चुना गया था क्योंकि वनडे में अब भी विकेटकीपिंग का जिम्मा महेंद्र सिंह धोनी निभा रहे हैं. ऐसे ही टी-20 में विकेट के पीछे का मोर्चा दिनेश कार्तिक ने संभाल रखा है.


इन चार महीनों में खेले गए 5 टेस्ट मैच, 3 वनडे और 7 टी-20 मैचों में उनके आंकड़े देखेंगे तो सब ठीक लगता है. उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में एक शतक जड़ दिया है. टेस्ट क्रिकेट में उनकी औसत करीब 44 की है. वनडे में भी वो करीब 21 और टी-20 में करीब 23 की औसत से रन बना रहे हैं. परेशानी ऋषभ पंत की तकनीक और उनके ‘एटीट्यूड’ को लेकर है.

ऋषभ पंत जिस अंदाज में बल्लेबाजी करते हैं उसमें काफी नौसिखियापन दिखाई देता है. वो हर गेंद को मारना चाहते हैं. वो एक ही समय में एबी डीविलियर्स, क्रिस गेल, वीरेंद्र सहवाग सब हो जाना चाहते हैं. आक्रामकता का ये अंदाज आक्रामकता कम और हड़बड़ी ज्यादा लगता है. वेस्टइंडीज़ के खिलाफ तीसरे टी-20 मैच में उन्होंने हाफसेंचुरी जरूर बनाई लेकिन उस पारी के दौरान कई मौके ऐसे आए जब वो आउट होते होते बचे. आपको याद दिला दें कि वेस्टइंडीज के खिलाफ तीसरे और आखिरी टी-20 मैच में उन्होंने 38 गेंद पर 58 रन बनाए थे. जिसमें 5 चौके और 3 छक्के शामिल थे.

वनडे और टी-20 में ज्यादा जिम्मेदारी क्यों
ऋषभ पंत को भूलना नहीं चाहिए कि उन्हें किस खिलाड़ी के ‘रिप्लेसमेंट’ के तौर पर देखा जा रहा है. टीम इंडिया में जिस धोनी की जगह ऋषभ पंत के लेने को लेकर बात होती है वो टीम इंडिया के बड़े मैच फिनिशर्स में रहे हैं. धोनी का बल्लेबाजी स्टाइल उनका ‘ओरिजिनल’ था. इससे उलट ऋषभ पंत की बल्लेबाजों को देखकल लगता है कि वो कई बल्लेबाजों के स्टाइल को दिमाग में रखकर बल्लेबाजी कर रहे हैं. याद रखिए ऐसे बल्लेबाज आपको 20 में से 2-3 मैच में जीत तो दिला देंगे लेकिन बाकि बचे 17-18 मैचों में से कई मैच आप इनकी अति आक्रामकता से हार भी सकते हैं.

किसी भी फॉर्मेट में प्लेइंग 11 में बने रहने के लिए जो भरोसा आपको टीम मैनेजमेंट को देना होता है वो भरोसा अति आक्रामकता से नहीं आता. उसके लिए विकेट पर टिककर प्रदर्शन करना होता है. जरूरत पड़ने पर मैच की रफ्तार बढ़ानी होती है. ऋषभ पंत के लिए वनडे और टी-20 इसलिए और कठिन राह है क्योंकि इन दोनों फॉर्मेट में उन्हें बतौर बल्लेबाज टीम में शामिल किया जाता है. एक ऐसे बल्लेबाज के तौर पर जो ‘सेसिंबल’ क्रिकेट खेलेगा. फिलहाल हकीकत ये है कि ज्यादातर वक्त पर उनके बल्ले से निकली गेंद हवा में रहती है.

टेस्ट क्रिकेट में भी दिखाई थी हड़बड़ी
इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज का आखिरी मैच याद कीजिए. मैच के आखिरी दिन जब चाय का समय हुआ तब भारत का स्कोर था 5 विकेट पर 298 रन. केएल राहुल और ऋषभ पंत दोनों अपने अपने शतक लगा चुके थे. स्पेशलिस्ट बल्लेबाज के तौर पर ये आखिरी जोड़ी थी. चाय के बाद जब दोनों मैदान में वापस आए तो इस बात की उम्मीद बंधी थी कि ये मैच को ड्रॉ करा सकते हैं.

लक्ष्य 464 रनों का था इसलिए जीत की बात सोचना भी बेकार थी. ड्रॉ में ही एक तरह की जीत थी. लेकिन दोनों बल्लेबाजों ने अपनी अति आक्रामकता का दौर जारी रखा. जिसका नतीजा ये हुआ कि मैच के आखिरी दिन के आखिरी सेशन में एक के बाद एक दोनों ने अपना विकेट गंवाया और पवेलियन चलते बने. इंग्लैंड ने वो टेस्ट मैच भी 118 रनों से जीतकर सीरीज को 4-1 से अपने नाम किया. उस टेस्ट मैच में ऋषभ पंत ने 117 गेंद पर ही अपना शतक ठोंक दिया था. ये उनके टेस्ट करियर का पहला शतक था जो 14 चौके और 3 छक्के की बदौलत बना. यानी उन्होंने 70 से ज्यादा रन चौके छक्के से बनाए थे.