हमारा देश आज गणतंत्र के 74वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है लेकिन कभी आपने सोचा है कि आज दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र माना जाने वाला भारत साल 1950 में इस संसार के नक़्शे पर कहां खड़ा था. अगर इतिहास पर गौर करेंगे तो आपको भी अहसास हो जाएगा कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला निरक्षर और कंगाल कहलाने वाला यही भारत आज दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थयव्यवस्था आखिर कैसे बन गया? उस वक़्त महज़ 18 फीसदी पढ़े-लिखे लोगों वाले इस देश में आज करीब 75 फीसदी लोग साक्षर हैं तो ये हमारे लोकतंत्र और सबसे उदारवादी संविधान की ही देन है.


बेशक भारत को इस मुकाम तक पहुंचाने में आज़ादी के बाद बनी तमाम सरकारों का योगदान रहा है लेकिन आंकड़ों पर अगर गौर किया जाये तो मनमोहन सिंह ने पीएम रहते हुए वैश्विक बाजार में भारत का रास्ता खोलते हुए जहां हमारी आर्थिक सेहत को ठीक करने की तरफ ध्यान दिया तो वहीं पीएम मोदी ने इसे एक तरह की बूस्टर डोज़ देने को न सिर्फ अपनी प्राथमिकता बनाया बल्कि उसे अमली जामा पहनाने में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी. इसलिए इन 74 सालों में दुनिया के नक्शे पर कभी सांप-सपेरों और निरक्षर कहलाने वाला भारत आज अगर दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है तो इसे राजनीति के तराजू पर तौलने की गलती नहीं करनी चाहिए. इसलिये कि इसमें योगदान तो सभी सरकारों का रहा है- किसी का कम तो किसी का ज्यादा. 


बेशक ये बहस का विषय बन सकता है कि पीएम मोदी ने अपने इनोवेटिव आइडिया के जरिए वैश्विक मंच पर भारत को वहां लाकर खड़ा कर दिया कि आज दुनिया के दो-तीन महाशक्ति कहलाने वाले देश न तो भारत को नजरअंदाज कर सकते हैं और न ही हमारी ताकत का लोहा कम करके ही आंक सकते हैं. इसलिए विपक्ष मोदी सरकार की चाहे जितनी आलोचना करते रहे या कोसता रहे लेकिन इस तथ्य को तो मानना ही पड़ेगा कि पिछले आठ सालों में दुनिया के मंच पर भारत एक महत्वपूर्ण ताकत के रूप में उभरा है. जाहिर है कि भारत को इस मुकाम तक पहुंचाने में दुनिया के करीब सौ देशों में बसे तकरीबन ढाई करोड़ अप्रवासी भारतीयों का भी सबसे बड़ा योगदान है. लेकिन ये सिर्फ अर्थव्यवस्था की दृष्टि से ही नहीं बल्कि रक्षा और सामरिक लिहाज से भी बेहद अहम है.


दुनिया की तीन महाशक्तियां- अमेरिका, रूस और चीन भी अब ये मानने लगे हैं कि भारत बेहद तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की ऐसी बुलेट ट्रेन पर सवार है जो आने वाले सालों में इनमें से किसी को भी पछाड़ सकती है. इसलिए आर्थिक मोर्चे पर भारत ने इन सालों में जो कामयाबी हासिल की है वो कुछ ताकतों को फूटी आंख भी सुहा नहीं रही है. अब इसमें मोदी सरकार का कितना योगदान रहा है ये किसी से छुपा भी नहीं है क्योंकि उसे आंकड़ों व तथ्यों के आधार पर झुठला देना इतना आसान नहीं है. भारत आज 140 करोड़ की आबादी वाला देश बन चुका है लेकिन गणतंत्र बनने के बाद साल 1951 में जब पहली जनगणना हुई थी तब देश की आबादी महज़ 36 करोड़ थी. 


बता दें कि आज जो लोग एनआरसी का विरोध कर रहे हैं उनके लिए ये जानना जरूरी है कि उस जनगणना के तुरंत बाद भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी (एनआरसी) भी तैयार किया गया था, जिसे बाद में आई सरकारों ने खत्म कर दिया था. हालांकि उस वक्त देश की महज 18 फीसदी आबादी ही साक्षर थी, जो अब बढ़कर लगभग 75 प्रतिशत तक पहुंच गई है. हालांकि एक सच ये भी है कि किसी भी देश की सरकार के लिए बढ़ती हुई आबादी को संभालने से ज्यादा मुश्किल होता है उसके लिए तमाम संसाधनों को जुटाना और उन तक पहुंचाना. उस लिहाज से देखा जाये तो इन 74 सालों में भारत ने तीन युद्धों को झेलने के अलावा बाहरी व घरेलू मोर्चे पर भी अनगिनत मुसीबतों को झेलते हुए उससे पार पाने में भी कामयाबी हासिल की है. 


राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम दिए अपने संबोधन में दो खास बातों का भी जिक्र किया था. पहला ये कि भारत अब निरक्षर नहीं रहा और दूसरा कि वह अब दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थयव्यवस्था बन चुका है. लेकिन ये सब कैसे संभव हुआ इसके लिए उन्होंने लोगों की एकजुटता को सर्वोपरि मानते हुए कहा, "भयंकर गरीबी और निरक्षरता झेलने के बावजूद भारत अविचलित रहा. आशा और विश्वास के साथ, हमने मानव जाति के इतिहास में एक अनूठा प्रयोग शुरू किया. इतनी बड़ी संख्‍या में इतनी विविधताओं से भरा जन-समुदाय-एक लोकतंत्र के रूप में एकजुट नहीं हुआ था. ऐसा हमने इस विश्वास के साथ किया कि हम सब एक ही हैं और हम सभी भारतीय हैं. इतने सारे पंथों और इतनी सारी भाषाओं ने हमें विभाजित नहीं किया है बल्कि हमें जोड़ा है. इसलिए हम एक लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में सफल हुए हैं. यही भारत का सार-तत्व है."


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