लड़कियों को बधाई. आज उनके लिए लोग खास दिन मना रहे हैं. आम दिनों को उनके लिए खास नहीं बना पाते, तो एक खास दिन चुन लेते हैं. आज का दिन उनके लिए नया आकाश बुनने का दिन है. चाक पर अपनी धरती गढ़ने का दिन है. यूं ऐसा वह रोज करती हैं. साहस का नया चेहरा जिसे वे मध्ययुगीन, भयभीत और छटपटाती औरतों के प्रोफाइल पर रोजाना चिपकाती रहती हैं. अपना संसार बदलने के लिए कई कदम आगे बढ़ती जाती हैं.

लड़कियों की आजादी पर, कपड़ों पर, रहन-सहन पर सवाले उठाने वाले भी हैं. उन्हें अकेले रहने के लिए घर या अपार्टमेंट किराए पर नहीं देते. शादी का प्रेशर बनाते रहते हैं. उनकी लाइफस्टाइल को जज करते हैं. उसकी सेक्स लाइफ पर मुंह बिचकाकर सवाल करते हैं. मर्दों के मुकाबले उसके काम को कम आंकते हैं-उन्हें कम क्रेडिट देते हैं. पर लड़कियां भी कम कहां हैं. खुद आजादी से फैसले लेती हैं. देश-विदेश में अकेले घूमती-फिरती हैं. सेपेरेट कंज्यूमर बनकर मॉल-दुकानों में खरीदारी करती हैं. अपनी पसंद की नौकरी करती हैं. अपनी मां की पीढ़ी के मुकाबले खुद को बेहतर स्थिति में लाने की कोशिश करती हैं. शादी से पहले पूछती हैं- बराबरी का हक मिलेगा या नहीं.


हमें ऐसी लड़कियां बहुत भाती हैं. यह सुखद है कि लड़कियों ने शादी की उम्र को पीछे धकेला है. बीसीजी की रिपोर्ट द न्यू इंडियन का कहना है कि 2001 में जहां लड़कियों में शादी की उम्र 18.3 वर्ष थी, वहीं 2011 में यह 22.2 वर्ष हो गई है. आंकड़े सच कहते हैं तो आप यह भी जानिए कि हैदराबाद स्थित एक एनजीओ के एक सर्वक्षण में 77% लड़कियों ने कहा था कि उन्हें शादी में फैमिली का चक्कर नहीं चाहिए क्योंकि इससे उन्हें पति के रूप में कंपैनियन नहीं मिलता. सर्वे में शादी करने की वजह पूछने पर सिर्फ 34% ने कहा था कि उन्हें आर्थिक सुरक्षा चाहिए. इस सर्वे को उत्तर भारत में भी किया गया. उत्तर प्रदेश के कुछ छोटे शहरों में सर्वे में 89% लड़कियों ने कहा था- खुद का भरण-पोषण कर सकें, इतना तो वे खुद भी कमाती हैं.


अगर सचमुच ऐसा साथी नहीं मिलता, तो लड़कियां सिंगल रहना ही पसंद करती हैं. सेंसस के आंकड़े कहते हैं कि 2001 में जहां देश में 51.2 मिलियन औरतें सिंगल थीं, वहीं 2011 में सिंगल औरतों की संख्या 71.4 मिलियन हो चुकी है. इनमें ऐसी सभी औरतें हैं जिन्होंने शादी नहीं, जिनका तलाक हो गया, जिनके पति भगोड़े निकले, जिनके पति जिंदा नहीं हैं- ऐसी सिंगल औरतें देश की आबादी का 12% हैं.


तो चाहे शादी करना चाहें, या न करना चाहें, लड़कियां अकेले जीवन को खूब इंजॉय करती हैं. एनएसएसओ 2014-15 के आंकड़े कहते हैं कि 100 में से 31 अकेले सैलानियों में 31 औरतें होती हैं. देश में ओवरनाइट ट्रिप्स पर अकेले जाने वाले 100 लोगों में 40 औरतें होती हैं. 2015 में ट्रैवल और रेस्त्रां वेबसाइट ट्रिप एडवाइजर को अकेले घूमने जाने वाली 47% औरतों ने कहा था कि वे अकेले इसलिए घूमना पसंद करती हैं क्योंकि इससे उन्हें अपनी मन की करने की आजादी मिलती है.


यूं लड़कियां अपने मन की करें तो लोगों को दिक्कत होती है. इसीलिए उनकी लाइफस्टाइल को संदेह की नजर से देखा जाता है. सिगेरट-शराब को हाथ लगाए तो उनकी रंगीन मिजाजी की कल्पना की जाती है. ये दोनों तो ऐसी चमत्कारी चीजें हैं कि इन्हें पीते ही लड़कियां बदमाश और लड़के बेचारे बन जाते हैं. इसीलिए लड़कियों को अकेले रहने के लिए किराए पर घर नहीं देते. रियल एस्टेट सेक्टर की पहले ई-न्यूजपेपर ट्रैक2 रियैलिटी की देश भर की एक स्टडी में 82% प्रोफेशनलों ने, जो सिंगल थे, कहा कि किराए पर घर लेने में उन्हें बहुत दिक्कतें आती हैं. यह देश के 10 बड़े शहरों का हाल है जोकि कॉस्मोपॉलिटन कल्चर और लाइफस्टाइल के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में अगर सिंगल लड़कियों को किराए पर घर मिल भी जाता है तो आस-पड़ोस वाले उन पर 24x7 सर्विलांस रखते हैं.


लड़कियों पर ऐसी निगरानी दफ्तरों में भी रखी जाती है. मानों, वे काम नहीं, सिर्फ तफ्री के लिए दफ्तर आती हैं. इसीलिए कॉरपोरेट की फिसलन भरी सीढ़ियों को चढ़ना उनके लिए मुश्किल होता है. मर्दों के बराबर वेतन नहीं मिलता. काम का क्रेडिट भी पूरा नहीं मिलता. बेस्ट कंपनीज फॉर विमेन इन इंडिया के एक पेपर में 2017 में 100 बेस्ट कंपनियों में महिला कर्मचारियों का प्रतिशत 30 के करीब था. एनएसई लिस्टेड कंपनियों में 2010 से 2016 के बीच महिला डायरेक्टरों का प्रतिशत 13.7 पर पहुंच पाया था. पूरा रिप्रेजेंटेशन न मिलने का बहुत बड़ा कारण यह था कि लोग अब भी स्टीरियोटाइप्स से चिपके हुए हैं. कानूनी बाध्यता न हो तो यह कछुआ चाल भी थम जानी थी.


कुल मिलाकर लड़कियां आजाद हवा में सांस लेने के लिए चारदीवारी से बाहर निकल रही हैं. उधर कनफुसिया गर्म हवाएं चल रही हैं- कहा जा रहा है, लड़की फिर बेहया हो रही है. चूंकि मर्द किस्म के लोग डरे हुए हैं. उन्हें हर पल, हर रोज किसी लड़की को आजादी देने के फैसले से डर लगता है. वे जानते हैं कि जिस दिन लड़कियां एकदम आजाद हो जाएंगी, उस दिन उनकी पहचान ही खत्म हो जाएगी. तभी किसी दिलजले ने ट्विटर पर लिखा था- मैं महिला दिवस मनाना चाहता हूं- लेकिन यह भी पूछना चाहता हूं कि आप पुरुष दिवस कब मानना शुरू करेंगे. फिर जैसा कि जाहिर है, एक सेक्सिएस्ट जोक भी हाजिर किया. तिस पर, जवाबों के थ्रेड में किसी लड़की ने कहा- पुरुष दिवस... वह तो हर दिन होता है. महिला दिवस के तमाम मैसेजेज में तमाम तरह के कुतर्क हैं. लड़कियां भी इन्हें धकेलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहीं. एक-एक सवाल पर एक-एक जवाब- मारक, तीखा और बहुत बार चोटिल करने वाला. आपको पसंद आए- न आए.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)