मध्य प्रदेश में सियासी सरगर्मी बढ़ने के साथ माहौल भी बदलता जा रहा है. भाजपा अब वहां राम मंदिर को मुद्दा बनाने में लगी है. प्रदेश में राम मंदिर निर्माण के लिए बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे हैं, जिसमें पीएम मोदी को इसके लिए धन्यवाद दिया जा रहा है. कांग्रेस भी इसके जवाब में 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का कार्ड खेल रही है. दिग्विजय सिंह राम मंदिर के लिए दिए चंदे की याद दिला रहे हैं तो कमलनाथ चांदी की ईंटों की चर्चा करवा रहे हैं. प्रदेश में विकास के मुद्दे ही निर्णायक बने रहेंगे या चुनाव फिर एक बार राष्ट्रीय मसलों पर लड़ा जाएगा, यह देखने की बात है. 


अलग है मध्य प्रदेश की जमीन


मध्य प्रदेश की जमीन अन्य पड़ोसी राज्यों से अलग है. मध्य प्रदेश में उस तरह से राम मंदिर का मुद्दा तब भी नहीं था, जब 1991 की घटनाएं हुई थीं और आडवाणी की रथयात्रा निकील थी. उस घटना के बाद भी इस प्रदेश में करीबन 40 फीसदी मत कांग्रेस को मिलते रहे हैं. जब देश भर में सांप्रदायिक तनाव और दंगे हुए, तो भी 1993 के चुनाव में भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी. अगर राम मंदिर कोई मुद्दा होता, तो वह तो बिल्कुल ताजा था. भाजपा को 100 फीसदी लाभ मिलना चाहिए था, लेकिन मिला नहीं. 1998 में भी कांग्रेस जीती और 2003 में अगर कांग्रेस हारी भी तो उसके लिए कांग्रेस के आंतरिक कारण जिम्मेदार थे. भाजपा की अगर कोई खास बात थी तो उसने इन कारणों का उमा भारती के तौर पर फायदा उठाया था. उमा भारती मध्यप्रदेश का लोकप्रिय चेहरा हैं. उमा भारती ने हालांकि, बिजली, पानी और सड़क का मुद्दा उठाया था, राम मंदिर का नहीं.



राम मंदिर के मुद्दे के लिए ये धरती बांझ है और अमित शाह अगर ऐसा समझते हैं तो यह उनकी भूल है, गलती है. भारतीय जनता पार्टी को जमीनी मुद्दों की समझ ही नहीं है. अगर यहां कुछ विकास होता तो उसका लाभ मिलता. पिछले पांच वर्ष गवाह हैं कि मध्य प्रदेश में दिक्कतें बढ़ी है, बेरोजगारी बढ़ी है, महंगाई बढ़ी है, तो ऐसे में आप कोई राष्ट्रीय मसला ले आइए, सर्जिकल स्ट्राइक ले आइए या कुछ और भी ले आइए. हालांकि, विधानसभा के चुनाव बिल्कुल ही अलग तर्ज पर लड़े जाते हैं. 


शिवराज से है लोगों की नाराजगी


शिवराज सिंह से जनता जरूर नाराज है. पार्टी के प्रति उसकी नाराजगी नहीं है. ये अजीब बात है कि शिवराज एक ऐसे सैंडविच हैं कि उनसे जनता नाराज है, उनके कार्यक्रमों से नहीं. दूसरी ओर, आलाकमान भी शिवराज से नाराज है. जब प्रधानमंत्री यहां आए और करीबन 45 मिनट बोले. उन्होंने 40 बार कांग्रेस का नाम लिया, अपनी पीठ थपथपायी, लेकिन बगल में शिवराज बैठे थे, उनका कहीं नाम नहीं लिया. अगर शिवराज की ऐसी कोई विकास की योजना होती या छवि होती, तो वह जरूर बोलते. हां, जब शिवराज कोपभवन में ऋषिकेश जाकर बैठ गए, तब जाकर प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के मतदाताओं को चिट्ठी लिखी और बहुत सकुचाते हुए शिवराज को क्रेडिट दिया. वैसे, यह भी देखने की बात है कि जब भी कोई पार्टी लगातार सत्ता में रहती है, जैसे भाजपा 20 साल से सत्ता में है. तो मुद्दों, मसलों और लोगों के दिलों में धड़कने की बातें गुम हो जाती हैं.



यही हाल दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासन काल के खत्म होने के बाद भी था. उस समय भी बिजली, सड़क, पानी के मसले थे. भाजपा के सामने भी वही मसले हैं. हालांकि, वह समझती है कि राम मंदिर के मुद्दे पर सभी काम्प्रोमाइज कर जाएंगे. वो महंगाई नहीं सोचेगा, वो बेरोजगारी नहीं सोचेगा, वो विकास की बातें नहीं सोचेगा. घर-घर में तो बेरोजगार बैठे हैं. भाजपा राम मंदिर चलाने की कोशिश कर रही है, लेकिन मध्य प्रदेश एक आदिवासी प्रदेश है, तो यहां उस तरह से काम नहीं करेगा. हो सकता है, उत्तर प्रदेश 


हिंदुत्व भाजपा की बपौती नहीं


कांग्रेस के अंदर हिंदुत्व कब नहीं था? कांग्रेस के गठन से लेकर उसका पूरा इतिहास पढ़ जाइए. हिंदुत्व तो कांग्रेस का चरित्र रहा है, लेकिन उस हिंदुत्व में, जो सॉफ्ट हिंदुत्व था, वह बहुत उदार दिल का था, बहुत बड़ा दिल था. उसमें दक्षिणपंथियों के लिए भी स्थान था, उसमें वामपंथियों के लिए भी स्थान था, उसमें समाजवादियों के लिए भी स्थान था, सबके लिए स्थान था. दिग्विजिय और कमलनाथ पर जो हिंदुत्व का प्रदर्शन करने का आरोप लग रहा है, तो याद कीजिए एक श्रीमान जी गुफा में जाते हैं ध्यान करने और उनके साथ पूरा कैमरा सेटअप जाता है, वो लेह-लद्दाख में जाते हैं, तो भी उनके साथ पूरी टीम होती है, तो वह भी देखना चाहिए. इस तरह का तो सवाल ही नहीं बनता है. इसका अर्थ ये निकलता है कि जो कांग्रेसी है, वह हिंदू नहीं है. नवरात्रि से लेकर सारे पूजा पाठ कमलनाथ और दिग्विजय के घर में भी होते हैं. दिग्विजय ने पिछले साल नर्मदा परिक्रमा की थी. 40 फीसदी वोट उनको मिल रहा है, तो सब नास्तिक तो नहीं है, तो हिंदुत्व का लाइसेंस जो है, वह केवल भाजपा के पास नहीं है. 


अगर भाजपा जड़ों की बात कर रही है, तो हम सब की जड़ों पर भी सवाल उठेंगे. अगर देश के गृहमंत्री राहुल-प्रियंका की जड़ों के बारे में कुछ कहते हैं, तो उनको सोचना चाहिए कि राजीव गांधी की हत्या के बाद तो सोनिया गांधी को इटली चले जाना चाहिए. आप देखिए कि उस महिला ने अपने बच्चों को भारतीय संस्कारों में पाला-पोसा, बड़ा किया. क्या भारतीय संस्कार यही हैं कि नफरत फैलाओ, भारत जोड़ो यात्रा के समय उसका मजाक उड़ाया गया. इस देश की जमीन लोकतांत्रिक है और पिछले 10 वर्षों से हम लोग देख रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय मसले ले आए जाते हैं. तब तो हरेक जगह संसद के चुनाव कराएं. एक दिलचस्प उदाहरण देखिए.


अब शाह साहब या मोदीजी भले ही राम मंदिर से लेकर कोई भी मसला उठा लें, लेकिन यूपी में तो विधायक इस बात पर चुनाव जीत या हार जाता है कि फलाने हमारे घर शादी में या गमी में प्रधान जी और विधायक जी आए या नहीं. मध्य प्रदेश में तो इस पर वोट होता है कि भिंड और सरगुजा में सांपों का काटना मुद्दा बनता है. आप देखिए कि शिवराज की सभाओं में साड़ियां बंट रही हैं, निर्वाचन आयोग चेतावनी देकर छोड़ दे रहा है. वो बूढ़ों को हवाई जहाज से तीर्थयात्रा करवा रहे हैं और 26 विभागों में महीनों से कोई काम नहीं हुआ है. वो लाड़ली बहनों को पैसे दे रहे हैं, और 4000 करोड़ रुपए महीने के कर्ज भी ले रहे हैं. कर्ज लेकर घी पीने की उनकी प्रवृत्ति है और लोग अब यह समझ रहे हैं. यह चुनाव इसीलिए इस बार शिवराज के लिए मुश्किल होनेवाला है. 




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