एक लंबी प्रतीक्षा के बाद रामलला अपने भव्य महल में विराज रहे हैं, लोक के सरल प्रिय और सहज उपलब्ध जीवन जीने की कला सिखाते राम का इंतज़ार हर एक तबके को है. समूचा सनातन उल्लास के साथ अपने आराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम राम के बाल-स्वरुप की  प्राण प्रतिष्ठा को सज्ज है. राम को खुद के लोक में देखता समाज राम और उनसे जुड़े प्रसंगों को नए सिरे से पढ़ रहे हैं, गा रहे  हैं. आज नए संदर्भों की व्याख्या हो रही है, नए-नए सन्दर्भ तलाशे जा रहे हैं ताकि उनके जीवन से वर्तमान के लिए आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध आदमी के लिए, बिखरते समाज के लिए, मानव-जनित संकट से दो चार-देश और दुनिया के लिए सीख ली जा सके,‘राम-राज्य’ की परिकल्पना की जा सके. जरुरत है कि राम और उनकी जीवन यात्रा को शुद्ध भक्ति से इतर भी समझा जाये, एक यात्री के रूप में मैदान,जंगल, पहाड़, समुद्र, पठार, शहर, गांव, नदी से होकर उनकी यात्रा को सभ्यता और भूगोल के नजरिये से देखा जाये. 


भौगोलिक तौर पर भारत को एक करते हैं राम


भारतीय वाङग्मय में पुण्यभूमि के भौगोलिक स्वरुप के विवरण की बड़ी समृद्ध परम्परा है, जिसे पुण्यभूमि, पावनभूमि, कर्मभूमि, धर्म-क्षेत्र मानते आये हैं. प्राचीन ग्रंथों  में तात्कालिक राज्यों, नदियों,पहाड़ों, पठारों, जंगलों  यहां तक कि प्रमुख सड़कों, व्यापारिक मार्गों का सम्यक विवरण मिलता है. वैसे शब्द भूगोल अपने आप में पृथ्वी के गोल होने के भारतीय ज्ञान का द्योतक है. मत्स्यपुराण के महासंकल्प अध्याय में भारत के छप्पन भौगोलिक क्षेत्रों का विवरण है. महासंकल्प के कुछ श्लोक आज भी दक्षिण भारत में कन्यादान के समय उच्चारित किया जाता है, जो सभ्यातागत और सांस्कृतिक विरासत को निरंतर आगे बढ़ाने का साक्ष्य है.  ऋग्वेद में कम से कम भारत की 20 पुण्य नदियों का जिक्र है, वही पाणिनि ने तात्कालिक भूगोल का विस्तृत विवरण दिया है, यहां तक कि कौटिल्य  अपने अर्थशास्त्र में उस समय के प्रमुख व्यापारिक मार्गों का विस्तृत लेखा-जोखा देते हैं. रामायण, महाभारत और पुराण के साथ भारतीय ज्ञानकोष के ‘चतुष्टविद्यास्थान’ में से एक स्मृति ग्रन्थ है, जिसकी रचना का उद्देश्य जीवन के गूढ़ पक्ष को मानवीय संदर्भों में समझाना है.



भले रामायण और महाभारत को पौराणिक महाकाव्य का दर्जा हासिल है पर उसमें उपलब्ध भौगोलिक संदर्भों के आधार पर इसे प्राचीनतम इतिहास और भूगोल का ग्रन्थ माना जाये तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. वास्तव में, रामायण और महाभारत हमारे इतिहास का हिस्सा हैं. रामायण हमें जीवन सिखाता है तो महाभारत मृत्यु जिसमें रामायण  जीवन की यात्रा के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराते आगे बढ़ता है. कहा जाता है कि मैदान में जीवित रहने के लिए तेज दौड़ जरूरी है, उसी दौड़ के हिस्से में रामायण के पात्र एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते हैं. उस यात्रा में शामिल होता है पहाड़, सघन जंगल, नदियाँ तरह-तरह के जीव.  


रामायण में वर्णित शहरों की हो सकती है पहचान


जगहों के नाम के अध्ययन को टोपोनेमी कहते हैं, किसी भी स्थान का नाम उसके इतिहास का जीवाश्म जैसे होता है. हम आज भी देश भर के विभिन्न राज्यों और श्रीलंका में रामायण में वर्णित प्राचीन शहरों की पहचान कर सकते हैं. जहां तक नाम का सन्दर्भ है, राम और उनसे जुड़े व्यक्तियों के नाम पर स्थान, गांव और शहरों  के नाम भारत को  कोने-कोने में देखा जा सकता है.  इंडियन एक्सप्रेस के (2011 की जनगणना के अनुसार) मुताबिक भारत के सबसे अधिक स्थानों के नाम रामायण से जुड़े हैं  जिसमें राम के नाम पर  (3626 गांव), हनुमान  (367 गांव), भरत (187 गांव), लक्ष्मण (160 गांव), सीता (75 गांव) के नाम प्रमुख हैं. भारतीय रेलवे के मुताबिक 350 स्टेशन के नाम राम से जुड़े हैं वहीं 55 स्टेशनों का पहला शंब्द ही राम के नाम पर है, जिसमें अधिकांश का सन्दर्भ भौगोलिक है, जैसे बिहार का सीतामढ़ी,जहाँ सीता धरती से उत्पन्न हुई, रामेश्वरम, जहाँ राम ने शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की. वही राम कथा में एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों जैसे जावा (यवद्वीप), बोर्नियो (सुवर्णरूप्यक), चीन (चीन), और तिब्बत (पद्म चीन) का भी उल्लेख है और ये रामकथा के सांस्कृतिक और भौगोलिक प्रसार के चिह्न हैं. 


रामकथा का स्वरूप है वैश्विक 


रामकथा का स्वरुप ना सिर्फ अखिल भारतीय है बल्कि देश की सीमा से इतर तिब्बत, थाईलैंड, इंडोनेशिया, वियतनाम और लाओस तक हजार सालों  से प्रचलित है.  संस्कृत के रामायण और अवधी के रामचरितमानस के अलावा राम की कथा लगभग हर स्थानीय भाषा में लिखी गयी जिसकी संख्या 300 से 1000 तक है. उत्तर  में पंजाबी, कश्मीरी, तिब्बती, फारसी, नेपाली से लेकर दक्षिण में तमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ तक और पश्चिम में सिन्धी, गुजराती, मराठी से लेकर पूरब के अवधी, उर्दू, बंगला, सिलहटी, असमिया और बर्मी सब भाषाओ में राम कथा लिखी गयी और जन-जन तक पहुँची. भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापकता के आधार पर राम के  नाम को पूरे सांस्कृतिक क्षेत्र की लगभग दूसरी भाषा मानी जा सकती  है. 


मैदानी भाग से सुदूर दक्षिण तक रामकथा


रामकथा को भारत में मैदानी भाग से सुदूर दक्षिण तक कृषि के विस्तार के नजरिये से भी देखा जाता है. राम अपने चौदह बरस के वनवास के दौरान  प्रयाग में गंगा पार कर मध्य-भारत के पठार जिसमें  वर्तमान मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़,ओडिसा आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और श्रीलंका में व्यतीत करते हैं, जिसमें आखिर के वर्ष में सीता अपहरण और बानर सेना की मदद से रावण वध भी शामिल है. इस यात्रा के दौरान शापग्रस्त अहल्या का उद्धार जिसे तत्कालीन अकाल प्रदेश की अजोत भूमि का उद्धार माने तो दूसरी तरफ  सीता को कृषक राजा जनक की पुत्री और कृषि अधिष्ठात्री देवी भी माना गया है. राम का सीता के संग मध्य और दक्षिण भारत के पठारी भाग का वनवास कृषि का बीजारोपण माना जाता है, वैसे ये ऐतिहासिक तथ्य भी हैं  दक्षिण भारत में कृषि का विकास उत्तर-भारत के मुकाबले बहुत बाद में हुआ है. 


राम की कहानी असल में सम्पूर्ण भारत के नक़्शे पर उत्तर से सुदूर दक्षिण तक फैले नामचीन और अनाम जगहों, नदियों, पोखर, झीलों, पहाड़ों, पठारों और जंगलों की कहानी है, जहाँ से होकर राम-सीता और लक्ष्मण गुजरे, पेड़ के नीचे विश्राम किया, समय बिताया, स्नान किया, राक्षसों का संहार किया. राम कथा उतना ही व्यापक और विस्तृत है जितना विविध ये देश है, यहाँ के लोग है, यहाँ की भाषा है, खानपान है. राम का हजारों किलोमीटर का वन-गमन किसी भी मनुष्य की इतनी लम्बी दूरी की शायद  पहली यात्रा थी  और पड़ाव स्थलों में अधिकतर ऋषि के आश्रम ही थे, जैसे प्रयाग (भरद्वाज ऋषि), चित्रकूट (अत्री ऋषि), पंचवटी (अगस्त्य), किसकिन्धा (सबरी) आदि, जो बाद में तीर्थ के रूप में विकसित हुए, जिससे लोगो में अखिल भारत के स्तर पर मेल-जोल बढ़ा. रामायण में तीर्थ का उल्लेख ना के बराबर है वही महाभारत में तीर्थ परंपरा का विस्तृत स्वरुप मिलता है. सम्पूर्ण भारत में फैले तीर्थ स्थान भारत की भौगोलिक एकता का सांस्कृतिक निरूपण है और इस परम्परा की शुरुआत में राम की अयोध्या से लंका तक की यात्रा एक शुरुवाती घटना है. राम वनगमन मार्ग के लगभग 200 वर्तमान स्थान चिन्हित किये गए जो अयोध्या से लेकर सम्पूर्ण मध्य-भारत, दक्षिण-भारत और लंका तक फैले हैं. चित्रकूट, ऋश्यमूक और प्रस्रवण (किष्किन्धा), और  सुवेल (लंका) ये चार प्रमुख पर्वत, सरयू, गंगा, मन्दाकिनी, सोन, यमुना, गोदावरी आदि नदियाँ, पाम्पा सरोवर और रामसेतु जैसे चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं. 



वैज्ञानिक शब्दावली का समृद्ध स्रोत रामायण


रामायण और रामकथा के अन्य ग्रन्थ प्रकृति जैसे पर्वत, पठार, नदी, जंगल आदि से जुड़े वैज्ञानिक शब्दावली के समृद्ध स्रोत है. उदाहरण के लिए पहाड़ की प्रकृति और संरचना के विवरण से उस समय के समृद्ध भूगोल की जानकारी का अंदाजा लगाया जा सकता है. उदाहरण के लिए पर्वत और गिरि के अलावा भूधरा, भूमिधरा, धरधरा, महीधरा, धरनीधरा, नाग, शैलेन्द्र, शिला, मेखला, महागिरी, शिखर आदि नाम पहाड़ और पहाड़ और पहाड़ी के उपयोग हुआ है. पहाड़ से जुड़े विविध संरचनाओं के नाम तो और भी विस्तृत हैं, जैसे अंतर (भूमिगत), द्रोणी (पहाड़ी घाटी), गह्वर (पर्वत की ढलान), गिरिद्वार (दर्रा), गिरीपद (पहाड़ की तलहटी), गिरिशृंग (पर्वत की नुकीली चोटी), गिरिनिर्दारा (पहाड़ी गुफा), गिरीतात (पहाड़ का किनारा), गिरिदुर्ग (पहाड़ के बीच का पतला गलियारा), कूट (पहाड़ की चोटी), कन्दरा (गुफा), शैलप्रस्त (पठार). ऐसी ही समृद्ध शब्दावली प्रकृति के अन्य अव्ययों जैसे नदी, जंगल, जीव जंतु, से राम कथा भरी पड़ी है. तभी तो राम कथा को खालिस धर्म संस्कृति से इतर भूगोल, भू-गर्भ शास्त्र और पर्यावरण के प्राचीनतम पाठ्य पुस्तक के रूप में देखने समझने की जरुरत है.   


राम और राम कथा विविधता से भरे भारत की भौगोलिक एकता के मूल में हैं. राम की जीवन यात्रा संपूर्ण भारत को एक माला में पिरोती है, जिसकी एक मोती का टूटना भारत का बिखर जाना है. आज जरुरत है इसमें निहित भूगोल को बदलते समय के परिपेक्ष्य में समझने की ताकि वर्तमान के पश्चिमी विकास के मॉडल के कारण बढ़ते  सामाजिक और आर्थिक विषमता को राम राज्य के नजरिये से समय रहते सुलझाया जा सके और इस सभ्यतागत भौगोलिक माला को अक्षुण्ण  रखा जा सके. 



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