उन्नाव हो या संभल...बदायूं हो या मैनपुरी...शहर दर शहर एक के बाद सामने आता बेटियों पर जुल्म का सिलसिला आज भी जारी है। सड़कों पर पसरा रात का अंधेरा तो औरतों और बच्चियों के लिए हमेशा से ही खतरनाक रहा...लेकिन मर्दों के जोर वाले समाज में आज बेटियों के लिए ना तो सुबह महफूज रह गई है और ना ही दोपहर। इन घटनाओं के पीछे की वजह सिर्फ मर्दों की संक्रमित मानसिकता ही नहीं.. बल्कि समाज में कानून का खत्म होता इकबाल भी है। तो आखिरकार जुल्म की शिकार हुई तमाम बेटियों को इंसाफ मिलेगा कैसे।


एक के बाद एक सामने आ रहे ऐसे मामलों के बाद अब योगी सरकार बेटियों को न्याय दिलाने को लेकर हरकत में आई है। ऐसे मामलों में दोषियों को तय वक्त में सजा दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का फैसला किया है। महिला और बाल अपराध के लिए योगी सरकार ने 218 फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने जा रही है, जिसमें 144 नियमित फास्ट ट्रैक कोर्ट होंगे, जिनमें सिर्फ दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई होगी...जबकि 74 फास्ट ट्रैक कोर्ट सिर्फ पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों के लिए होंगे।


हर कोर्ट के गठन में 75 लाख रुपयों का खर्च आएगा, जिसका 60 फीसदी खर्च केंद्र सरकार और 40 फीसदी खर्च राज्य सरकार उठाएगी। इन अदालतों के लिए 218 अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति होगी और उनके साथ 7 सहयोगी स्टाफ भी होंगे। यूपी में इस वक्त सिर्फ बच्चों से जुड़े 42 हजार 379 मामले लंबित हैं। जबकि, महिलाओं से जुड़े 25 हजार 749 मामले विचाराधीन हैं। लेकिन अब इन सभी मामलों की सुनवाई नए फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी, ताकि हर मामले की तय वक्त में सुनवाई खत्म हो सके और दोषियों को बिना देरी हुए जल्द से जल्द सजा दिलाई जा सके।


फास्ट ट्रैक कोर्ट तेजी से काम करे और पीड़ित महिलाओं को जल्द से जल्द इंसाफ मिले इसकी बुनियाद है पुलिस की सक्रियता। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमेशा पुलिस को सक्रिय रहने और जिम्मेदार बनने की नसीहत देते रहे हैं लेकिन ठीक एक दिन पहले पुलिस की सक्रियता की तस्वीर एबीपी गंगा ने आपके सामने रखी थी।


मेरठ, प्रयागराज, मथुरा, इटावा समेत कई जिलों में हमने पुलिस की मुस्तैदी का जो रिएलिटी चेक किया उससे चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आईं, मेरठ में शाम ढलने के बाद हमने पाया की 80 फीसदी पुलिस चौकियों में या तो ताले लटके थे या फिर वहां जो इक्का-दुक्का पुलिसकर्मी मौजूद थे, वो चौकियों में सोते हुए पाये गए।


एबीपी गंगा ने मेरठ की एक दो नहीं बल्कि कई पुलिस चौकियों पर खुद जाकर इस बात की तस्दीक की...कि रात के वक्त क्या पुलिस गश्त पर निकलती है या नहीं। हमारी इस पड़ताल में प्रयागराज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पुलिस के इंतजाम वैसे नहीं मिले जिसकी पुलिस से उम्मीद की जाती है और यही हाल मथुरा में देखने को मिला जहां चौराहों से पुलिस की पिकेट वैन गायब थी और सड़कें सुनसान।


सरकार का कोई भी फैसला जनहित में ही होता है, लेकिन उसके नतीजे सिस्टम के मुताबिक तय होते हैं। अगर मुख्यमंत्री योगी के दिशा-निर्देशों पर ईमानदारी से अमल हो तो उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदल सकती है, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा, जिसकी सच्चाई एबीपी गंगा के रिएलिटी चेक के तौर पर पूरा प्रदेश, सत्ता और सिस्टम भी देख रहा है। पुलिस मुस्तैदी से काम करे तो अपराध वैसे भी कम होंगे। सरकार को चाहिए कि फास्ट ट्रैक कोर्ट से भी पहले पुलिस तंत्र को फास्ट बनाए तभी फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।