नागरिकता कानून को लेकर सरकार बार-बार साफ कर रही है कि अफवाहों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है...दिल्ली में रामलीला मैदान के बाद लखनऊ में फिर प्रधानमंत्री मोदी ने बोला है कि...अफवाहों पर गौर न करें...क्योंकि अफवाहों की संवेदनशीलता का फायदा उठाने वाले संगठन उत्तर प्रदेश में किस तरह इसका फायदा उठाते हैं...इसकी बानगी है पीएफआई से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी....जो दो दिन पहले लखनऊ में हुई है...और जिसे लेकर अब गृह मंत्रालय भी गंभीर है...उसने सभी राज्यों से पीएफआई की सक्रियता को लेकर रिपोर्ट मांगी है...जिस दिन पीएफआई के मेंबर की गिरफ्तारी की जानकारी लखनऊ के एसएसपी ने दी...उसी दिन कुछ देर पहले यूपी के डिप्टी सीएम ने भी यूपी में हुई हिंसा में आतंकी संगठनों के शामिल होने का अंदेशा जताया था... पीएफआई के खून खराबे का इतिहास रहा है...और माना जाता है कि नफरत फैलाने में ये संगठन माहिर है...साथ ही इसके पदाधिकारियों में प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्य शामिल है...लखनऊ एसएसपी ने ये दावा किया था कि ये संगठन लंबे समय से यूपी में पैर पसार रहा है...इसलिए सवाल पुलिस पर भी उठता है कि...वो हिंसा के बाद ही क्यों जागी है...उसका खुफिया तंत्र इस मामले में अब तक क्या कर रहा था...क्योंकि इस संगठन के कई सदस्यों पर पहले भी मुकदमे दर्ज हुए थे...तो क्या उन मुकदमों की गंभीरता को पुलिस ने नजरअंदाज किया...जवाब तो यूपी पुलिस को भी देना होगा...


लखनऊ के कप्तान पीएफआई से जुड़े जिस खतरे को बता रहे हैं..उसी खतरे को भांपते हुए पीएम मोदी ने लोगों को फिर आगाह किया है...भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मतिथि के मौके पर लखनऊ पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने नागरिकता कानून को लेकर फैली अफवाहों से बचने की नसीहत दी है... नागरिकता कानून को लेकर अफवाहों के जरिये हिंसा और आतंक के जिस तानेबाने की आशंका सामने आ रही है उसका खुलासा भी प्रदेश भर में हुई गिरफ्तारियों के बाद पूछताछ से हो रहा है...पूछताछ में ये चौंकाने वाले खुलासे सामने आ रहे हैं कि किस तरह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नाम का संगठन एक बड़ी साजिश के तहत यूपी के अमन को झुलसाने की कोशिश कर रहा था...पीएफआई किस तरह नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर सरकार के लिए सीधी चुनौती खड़ी करने वाला था... गिरफ्तारियो और खुलासे के बाद सवाल पुलिस पर उठते हैं...पॉपुलर फ्रंट इंडिया नाम का संगठन पुलिस की नाक के नीचे अपनी जड़ें जमाने में लगा है....और यूपी पुलिस उस संगठन के आरोपियों को तब पकड़ कर वाहवाही लूट रही है...जब शहरों को आग में झोंक दिया गया...जबकि पीएफ का इतिहास बताता है कि किस तरह ये संगठन नफरत की खेती करता रहा है...और इसे लेकर जानकारियां पब्लिक डोमिन में आती रही हैं...


पीएफआई देश में आतंकी संगठनों से संबंध, हेट कैंपेन, हत्याओं, दंगों और लव जिहाद जैसे कार्यों के लिए कुख्यात है....2012 में केरल सरकार ने केरल हाईकोर्ट को बताया था कि पीएफआई हत्या के 27, हत्या के प्रयास के 86 और साम्प्रदायिक दंगों के 106 मामलों में शामिल है। इसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता एन सचिन गोपाल और विशाल की हत्या भी शामिल थी....केरल पुलिस पीएफआई के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके भारी मात्रा में असलहे व गोला-बारूद बरामद कर चुकी है....13 से अधिक राज्यों में सक्रिय पीएफआई पर कई राज्यों में प्रतिबंध भी लगाया जा चुका है... PFI कितना खतरनाक संगठन है...उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश के लिए ये कितना घातक साबित हो सकता है इसका अँदाज़ा इसी बात से लगा लीजिए कि नफरत की फसल बोने वाले इस संगठन के सदस्य प्रतिबंधित आतंकी तंजीमों से ताल्लुक रखने वाले हैं...और इस संगठन पर कई राज्यों में प्रतिबंध भी लगाया जा चुका है...


पीएफआई पर प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) समेत कई इस्लामिक आतंकी संगठनों से संबंध का आरोप है...पीएफआई का राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल हमीद पहले सिमी का राष्ट्रीय सचिव था....सिमी के कई पूर्व पदाधिकारी वर्तमान में पीएफआई में विभिन्न पदों पर हैं.... यानी खतरनाक आतंकी संगठन का नया मुखौटा नज़र आता है पीएफआई.... पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की बात करें तो 2006 में वजूद में आए इस संगठन से कई दूसरे संगठन भी जुड़े हुए हैं...पीएफआई खुद को एक ऐसे संगठन के तौर पर प्रदर्शित करता है जो लोगों को उनके हक दिलाने और सामाजिक हितों के लिए काम करता है...इसकी महिला विंग भी है...हालांकि सच ये है कि संगठन पहले भी कई तरह की गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल रहा है।


कानून के विरोध में नहीं PFI साजिश की आग में झुलसे यूपी के शहर ?


पीएफआई की सक्रियता से कठघरे में यूपी पुलिस की सतर्कता ?


पीएफआई जैसे संगठन को खुले छोड़ देना सरकारी तंत्र की लापरवाही का बड़ा नमूना है । खुफिया तंत्र और एजेंसियां भी मानती रही हैं कि सिमी जैसे संगठनों ने प्रतिबंध के बाद सिर्फ अपना नाम बदला फितरत नहीं । 2006 से 2019 तक 13 साल का ये लंबा दौर पीएफआई जैसे संगठनों पर अंकुश पाने या उन्हें खत्म करने के लिए कम नहीं होता, झारखंड ने तो प्रतिबंध भी लगाया..लेकिन तीन बार रिपोर्ट मांगने के बावजूद गृह मंत्रालय न तो इस संगठन के खातों की जांच की गई और न ही इस पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में कोई गंभीर कदम उठाया गया । मानवता के लिए खतरनाक बनने वाले ऐसे हर संगठन को लेकर मानवाधिकारवादियों को भी अपना नजरिया बदलने की जरूरत है...क्योंकि सवाल जब देश का पहले हो तो सारे अधिकार बाद में आते हैं।