Raj Ki Baat: वर्तमान मान समय में कांग्रेस अपने सियासी इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. न लीडर बचे हैं, न कैडर बचा है, जिन राज्यों में पूर्ण बहुमत की सरकारें बची हैं वहां शांति नहीं बची है. ये चक्रव्यूह खुद कांग्रेस का ही रचा हुआ है और फंसी भी खुद इसमें कांग्रेस ही है. चौतरफा हार और बगावत के प्रहार से हांफती कांग्रेस का क्या होगा, ये सवाल तो लोगों के जहन में कौंधता ही है और इसी सवाल का जवाब आज हम आपको राज की बात में बताने जा रहे हैं.


सियासी तौर पर तमाम झटकों को झेल रही कांग्रेस के लिए भारी मुश्किल का दौर पर आया जब पार्टी के 23 वरिष्ठतम और बुजुर्ग नेताओं ने नीतियो पर सवाल उठाते हुए दल से किनारा कर लिया. जी-23 के नाम से बने इस ग्रुप ने बागी तेवर अपनाए और परिवार की परिपाटी पर चल रही पार्टी पर सीधे और खरे सवाल उठाए. लंबे वक्त तक कांग्रेस ने भी इन्हे दरकिनार किया, लेकिन पार्टी को पता है कि ये वो मोहरे हैं, जिनके दम पर एक लंबा शासन कांग्रेस ने किया है और इनकी ऐसी बगावत पार्टी को डेंट पहुंचाने के लिए काफी है. यही वजह है कि अब नर्म रुख के साथ कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार ने जी-23 की सर्जरी शुरू कर दी है.


राज की बात ये है कि जी-23 के नाराज नेताओं को साधने की कोशिशें शुरु हो गई हैं और राज की बात ये भी है कि इस काम की कमान को प्रियंका गांधी ने संभाल लिया है. राज की बात ये है कि मान मनव्वल तो होगी, लेकिन सम्मान और स्वाभिमान के साथ जिन नेताओं को साधा जा सकता है उन्हें येन केन प्रकारेण साधा जाएगा.....और जो ज्यादा नखरे दिखाएंगे उनके साथ क्या किया जाएगा वो हम आपको आगे बताएंगे.


तो सबसे पहले बात करते हैं नेताओ को मनाने और साधने की कवायद की. राज की बात ये है कि जिन नेताओं को पार्टी से जोड़कर रखने की सबसे ज्यादा कोशिश में है उनमें 3 नाम प्रमुख हैं. पहला नाम है गुलाम नबी आजाद का, दूसरा नाम है आनंद शर्मा का और तीसरानाम है भूपेंद्र हुड्डा का.


प्राथमिकता के आधार पर ये काम शुरु किया भी जा चुका है, जिसकी पहली झलक सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में देखने को मिली. पहली झलक तो ये थी कि सोनिया गांधी ने सीधा संदेश दिया जो लोग मुझसे बात करना चाहते हैं वो सीधे बात करें, मीडिया के जरिए संदेश देना बंद करें. मतलब साफ है कि जी-23 के सभी नेताओं के लिए ये एक खुला ऑफर है. अब करते हैं बात प्राथमिकता की.


राज की बात ये है कि कांग्रेस की कोशिश सबसे पहले गुलाम नबी आजाद को साधने की है. यही वजह है कि जब सीडब्ल्यूसी की मीटिंग हुई तो गुलाम नबी आजाद को पहली पंक्ति मे सोनिया गांधी के साथ बिठाया गया और जब लखीमपुर मामले पर कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिलने गया तो गुलाम नबी आजाद भी उसमें रहे और राहुल की उनसे बात करने की तस्वीरें भी सामने आईं.


मतलब ये कि उन्हें पूरा सम्मान और तवज्जो दिया गया. गुलाम नबी आजाद को प्राथमिकता में रखने की पीछे की राज की बात भी आपको बताते हैं. दरअसल जब राज्यसभा से गुलाम नबी का कार्यकाल खत्म हो रहा था तब विदाई भाषण में गुलाम नबी और पीएम ने एक दूसरे की जमकर तारीफ की थी. कांग्रेस को डर इस बात का है कि अगर बीजेपी ने इन्हें अपने पाले में खींच लिया तो जम्मू का एक बड़ा नेता उनके हाथ से निकल जाएगा और केवल जम्मू ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर गुलाम नबी आजाद की छवि बड़ी बुलंद है. ऐसे मेंइस डैमेज को रोकने के लिए भी प्लान तैयार है, जिससे गुलाम नबी आजाद को अवगत करा दिया गया है. राज की बात ये है कितमिलनाडु कोटे से गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा भेजने का वादा कांग्रेस ने कर दिया है.


वहीं, दूसरी तरफ आनंद शर्मा को भी सम्मान और प्राथमिकता से पार्टी नवाज रही है और आनंद शर्मा का रुख भी समान्य होने लगा है. लखीमपुर के मामले पर आनंद शर्मा ने प्रियंका गांधी की खुलकर तारीफ की जो ये बताता है कि उन्हीं बगवात का बादल भी अब बदलेहुए हवा के झोंकों में शांत हो रहा है.


वहीं तीसरी तरफ भूंपेंद्र हुड्डा को साधने के लिए उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को प्रियंका गाधी ने अपने साथ मिशन यूपी पर लगा लिया है. लखीमपुर कूच के दौर में दीपेंद्र हुड्डा की भी तस्वीरें पुलिस के साथ प्रियंका के प्रोटेक्शन में उलझते हुए सबने देखी थी.


मतलब साफ है कि कांग्रेस का पूर्ण कायाकल्प भले ही फौरन न हो पाए लेकिन धीरे धीरे हालात को सामान्य् करने की कोशिश शुरु कीजा चुकी है. नाराज नेताओं को मनाने का कोरम भी शुरु किया जा चुका है.


इस क्रम में एक और राज की बात हम आपको बताते हैं. सवाल ये कि जो नेता नहीं मानेंगे उनका क्या होगा तो राज की बात ये है किकांग्रेस ने तय कर लिया है कि जो मानेंगे उन्हें उचित सम्मान और पद नवाजे जाएंगें, और जो नहीं मानेंगे उनसे पार्टी किनारा कर लेगी. किनारा करने का मतलब ये कि न तो उन्हें कोई पद मिलेगा और न ही उन्हें पार्टी से निकाला जाएगा. कुल मिलाकर उन्हें उनके हाल परछोड़ दिया जाएगा.


तो राज की बात यही है कि प्लान तैयार हो चुका है, पार्टी के पुनरुद्धार पर पुरोधा लग भी गए हैं, अब देखने वाली बात होगी कि कितनेमानते हैं और कितने मुंह फुलाकर पार्टी की टेंशन आगे भी बने रहते हैं और सबसे बड़ी बात अगर कांग्रेस के भीतर गांधी परिवार अपनेविरोधियों को ठिकाने लगा भी ले जाए तो भी बीजेपी के सामने वह कितनी चुनौती पेश कर पाएगी,,!  


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