कांग्रेस नेता राहुल गांधी 'आर्ट ऑफ लीसनिंग' (The art of listening) विषय पर बात करने कैम्ब्रिज गए थे. उन्होंने बहुत अच्छी बात की कि हमको समूचे विश्व में अगर प्रजातंत्र को स्वस्थ रखना है, उसको आगे बढ़ाना और बचाना है, तो लोगों की बात हमें पूरे प्यार, संवेदना और गहराई के साथ सुनने की आदत होनी चाहिए. तभी लोकतंत्र फलेगा और फूलेगा.


राहुल गांधी ने भारत की जो मौजूदा सरकार है, उसके कामकाज को लेकर जो बातें कही है, ये ऐसा नहीं है कि उन्होंने पहली बार कही है. ये नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दुस्तान के सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीश सड़कों पर आए थे और उन्होंने लोगों से कहा था कि आप देश के लोकतंत्र को बचा लीजिए. इस देश के कलाकार, कलमकार, इतिहासकार सब लोगों ने कहा था कि प्रधानमंत्री जी देश में असहिष्णुता बढ़ रही है, तो भारतीय जनता पार्टी ने उन लोगों को अवार्ड वापसी गैंग बताया.


इस देश के किसान सड़कों पर आए और उन लोगों ने कहा कि प्रधानमंत्री जी किसानों की आमदनी 47 रुपये रह गई है और कृषि से जुड़े तीनों काले कानून वापस कर दीजिए तो बीजेपी के लोगों ने उन किसानों को पाकिस्तानी और खालिस्तानी बताया और उनकी राह में कील और कांटे बिछाए.


स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए अभिव्यक्ति की आजादी होनी आवश्यक है, ये राहुल गांधी ने कहा. उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही कि जिस प्रकार से कॉन्सेंट्रेशन ऑफ वेल्थ हो रहा है, कुछ लोगों के पास अकूत संपत्ति जा रही है. न सिर्फ़ भारत बल्कि ये प्रवृत्ति पश्चिम के देशों में भी देखी जा रही है. उससे मीडिया का झुकाव भी सरकार की तरफ हो रहा है. मीडिया जनभावनाओं के अनुरूप काम करने की अपेक्षा, सरकार की तरफ झुक रही है. जैसा जनता चाहती है, मीडिया निष्पक्ष होकर तथ्यों को पेश नहीं कर रही है. इन विषयों को राहुल गांधी ने कैम्ब्रिज में रेखांकित किया. मुझे लगता है कि ये सभी बहुत प्रासंगिक बातें थी. लोगों को राहुल गांधी की पूरी बातचीत जरूर सुननी चाहिए. उनका भाषण मेरे हिसाब से प्रेरणादायक है.


संसद में हम सब देख रहे हैं कि सरकार महंगाई पर चर्चा नहीं करना चाहती है, चीन पर चर्चा से भाग रही है. हमने देखा था कि खेती से जुड़े कानूनों के वक्त भी चर्चा के लिए सदन में मतदान की मांग की गई थी, जिस मांग को  अवैधानिक तरीके से खारिज कर दिया गया था और सांसदों को बलपूर्वक सदन से बाहर कराया गया. एक स्वस्थ प्रजातंत्र में ये अच्छी बात नहीं है.


देश की जनता ने ये दायित्व सौंपा है कि सरकार एक स्वस्थ्य प्रजातंत्र की व्यवस्था को सुनिश्चित करे, जिसे सरकार पूरा नहीं कर रही है. खुद न्यायालय ने पेगासस मामले में कहा कि सरकार ने अपेक्षित सहयोग नहीं किया. जबकि प्रमाणिक रूप से उस वक्त संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में ये बयान दिया था कि अप्रैल 2019 में व्हाट्सएप ने शिकायत की थी और कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम को हमने जांच सौंपी. उसने वल्नरबिलिटी पाई और उसके बाद लोगों के लिए एक एडवायजरी जारी की गई. ये बात बेहद प्रमाणिक था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने हमें मदद नहीं की. 29 में से 5 फोन में मैलवेयर मिला है, लेकिन चूंकि सरकार ने मदद किया नहीं, इसलिए कह नहीं सकते कि पेगासस है या नहीं है.


लोगों पर निगरानी रखने का सरकार पर आरोप है, तो ये गंभीर आरोप है. सर्वोच्च संवैधानिक संस्थाएं भी दबाव में हैं. सुप्रीम कोर्ट को क्यों निर्णय लेना पड़ा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति ज्यादा पारदर्शी तरीके से होने चाहिए. उसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि जैसे सीबीआई के प्रमुख की नियुक्ति होती है, वैसे से चुनाव आयुक्तों की भी नियुक्ति हो. अडाणी के मामले पर भी सर्वोच्च अदालत ने एक कमेटी बनाई. सरकार ने बंद लिफाफे में ये कहा था कि हम अपनी कमेटी बनाना चाहते हैं, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया. 


मुझे लगता है कि पारदर्शिता होनी चाहिए और इसके लिए दबाव बनाने का ये तरीका अच्छा है. इसे देश के विपक्षी दलों को अपनाना चाहिए और इससे हमारा लोकतंत्र और स्वस्थ होगा. 


देखिए, देश के ऊपर एक विचर थोपने की कोशिश की जा रही है. सवाल है कि भारत की विरासत क्या है. हमने बहुलतावाद का गुलदस्ता लगाया है. यहां पर विभिन्न भाषा, वेशभूषा, धर्म, संस्कृति, संस्कार वाले लोग रहते हैं. इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी जड़तावाद का बबूल बोना चाहती है. इसलिए राहुल गांधी ने कहा है कि ये हमारी विरासत नहीं है. अगर हमारी विरासत को समझना है तो आप रामराज्य को पढ़िए. रामराज्य में क्या कहा गया है.


दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥


मतलब सभी धर्म के लोग परस्पर प्रेम से रहते थे और वैमनस्य का भाव नहीं था. गीता में भगवान श्रीकृष्ण इसी बात को कहते हैं कि 


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।


अर्थात कम श्रेयस्कर हो तब भी मैं अपने धर्म में रहूंगा, दूसरे धर्म को नहीं अपनाऊंगा. मतलब सभी धर्म का सह अस्तित्व था.


सभी धर्मों का सह अस्तित्व ये हमारी सनातनी विरासत है, इसको बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है और इसे ही सुधारने की कोशिश राहुल गांधी कर रहे हैं. ये राष्ट्र सभी धर्म के लोगों का है. खानपान और पहनावे के आधार पर इस देश में विभेद नहीं होना चाहिए और यहीं राहुल गांधी का देश की सरकार से विनम्र आग्रह है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)