Raj Ki Baat: उत्तर प्रदेश में चुनाव जब बिल्कुल सिर पर हैं तो हर मुद्दे को लपकने के लिए भी दलों के बीच प्रतिभागिता चरम पर है. लखीमपुर खीरी कांड में जिस तरह से कांग्रेस पूरी तरह मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक छाई रही, उसने बीजेपी की प्रमुख प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी की चिंता बढ़ा दी है. बीजेपी के सामने खुद को ही मजबूत विकल्प के तौर पर पेश कर रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की तुलना में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इस पूरे मसले पर छाई रहीं. राज की बात ये है कि सपा भले ही इसे ज्यादा तवज्जो न देते दिखे, लेकिन कांग्रेस के मजबूत होने की स्थिति में विपक्षी वोटों के कटने से वह आशंकित जरूर है.


वैसे सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठन बस नाम मात्र का है. बीजेपी के सामने ब्लाक और गांव तक अगर कार्यकर्ता किसी दल के पास हैं तो वो समाजवादी पार्टी है. संगठन की ताकत और वोटों का समीकरण ऐसा है कि बीजेपी को फिलहाल यूपी में टक्कर देने की स्थिति में समाजवादी पार्टी ही दिखती है. सपा के अलावा बहुजन समाज पार्टी का अपना वोटबैंक है, लेकिन मायावती का हाथी बीच-बीच में सुस्ती तो तोड़ता है, लेकिन फिर जैसे सियासी नींद में चला जाता है. ऐसे में सपा को मुसलिम-यादव समीकरण के साथ-साथ बीजेपी से नाराज वर्गों के साथ जुड़ने की उम्मीद है. अगर बीजेपी विरोधी वोट बंटता है तो जाहिर तौर पर सपा उसमें अपना नुकसान देख रही है.


राज की बात ये है कि जिस तरह से प्रियंका गांधी लखीमपुर खीरी घटनाक्रम के बाद किसानों के लिए न्याय का चेहरा बनकर उभरीं, उससे सपा के रणनीतिकार भी संजीदा हैं. वैसे भी समाजवादी पार्टी गांवों की पार्टी मानी जाती है. शहरों में उसका प्रदर्शन उतना बेहतर नहीं रहता था, जितना गांवों में. ऐसे में किसानों की लड़ाई कोई और लड़ता दिखे उत्तर प्रदेश में ये सपा के लिए अच्छे संकेत तो नहीं. वैसे अखिलेश यादव के रणनीतिकार मान रहे हैं कि संगठन न होने की वजह से प्रियंका चाहे जितना माहौल बनाएं, बीजेपी विरोधी वोट जो दल उसे हराता दिखेगा, उसकी तरफ जाएंगे. इस लिहाज से वह खुद को ही बीजेपी के खिलाफ प्रमुख दावेदार मान रही है.


राज की बात ये है कि प्रियंका की सक्रियता और जैसा रिस्पांस मिला है, उससे सपा खेमे में भी हलचल हुई है और इसकी काट के लिए तुरंत रणनीति तैयार की गई. सपा ने अपने सभी जिला अध्यक्षों से संवाद साधा. उनको ताकीद की गई है कि तत्काल सभी इकाइयों को किसानों के बीच जाने को कहा जाए. किसानों के लिए किस तरह संघर्ष सपा कर रही है, यह समझाया जाए. तथ्य यह भी है कि सपा ने जाटों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद से गठबंधन कर रखा है. जाटलैंड में जहां जाटों का मुख्य काम किसानी है, उनके बीच रालोद है ही. अवध और पूर्वांचल के साथ बुंदेलखंड में किसानों के बीच अखिलेश ने अपने नेताओं को जाने को कहा है.


जाहिर है कि किसान कानूनों के खिलाफ पूरे देश में माहौल बनाने की कोशिश की गई है. लखीमपुर खीरी से तराई बेल्ट के पीलीभीत जिले के अलावा शाहजहांपुर और सीतापुर तक इस पूरी घटना की धमक गई है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को यूपी पुलिस ने घर पर ही नजरबंद कर दिया था. उधर, प्रियंका भी रोकी गई थीं, लेकिन उनका संघर्ष सड़कों पर दिखाई पड़ा. सपा का चूंकि कोई बड़ा नेता सड़कों पर नहीं उतर सका, लिहाजा जगह-जगह प्रदर्शन के बावजूद मीडिया में उसे लाइमलाइट नहीं मिली. इसकी काट के लिए सीधे किसानों के बीच साइकिल चलाकर समर्थन पुख्ता करने की कोशिश समाजवादी पार्टी कर रही है.



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