देश में हिंदू-मुस्लिम के बढ़ते हुए फ़साद का कोई इलाज तो अभी नज़र आ नहीं आ रहा है कि इस बीच पंजाब में फिर से 'अलग ख़ालिस्तान' का नारा गूंजने लगा है. कल यानी 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 38 वीं बरसी थी. इस मौके पर अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मंदिर में अन्य लोगों के अलावा सैकड़ों सिख कट्टरधारी भी जुटे थे, जिन्होंने ख़ालिस्तान के समर्थन में न सिर्फ खुलकर नारे लगाये बल्कि जरनैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीर वाले पोस्टर अपने हाथों में लेकर उसकी नुमाइश करते हुए अपने आगे के इरादे भी जता दिए.


लेकिन हैरानी की बात ये है कि सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त के मंच से उन्हें चुप नहीं कराया गया, बल्कि सभी सिखों को हथियार की ट्रेनिंग लेने की नसीहत दी गई. पिछले साढ़े तीन दशक में गोल्डन टेम्पल से ऐसे नारे सुनने को नहीं मिले थे.  खालिस्तानी समर्थकों के हौसले आखिर इतने बुलंद कैसे हो गए और इसके पीछे आखिर कौन-सी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय साजिश है?


हालांकि अमृतसर में 6 जून को हर साल अकाल तख्त पर हज़ारों सिख क्षद्धालु एकत्र होते हैं और ऑपरेशन ब्लू स्टार की उस त्रासदी को याद करते हैं.श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अपनी आस्था रखने वाले और उन्हें ही अपना गुरु मानने वाले सारे श्रद्धालु पवित्र दरबार साहिब परिसर की परिक्रमा करते हैं.वे सभी जून 1984 में स्वर्ण मंदिर परिसर में भारतीय सेना की कार्रवाई के दौरान मारे गए लोगों को याद करते हुए उनकी आत्मा की शान्ति के लिए अरदास करते हैं. हर साल ये सब सामान्य तरीक़े से होता आया है. लेकिन इस बार इस समागम में शामिल हुए कुछ कट्टरपंथी तत्वों ने जो उग्र रुप दिखाया है,वह आने वाले दिनों में एक बड़े खतरे की तरफ इशारा करता है.


38 बरस का लंबा वक्त बीत जाने के बाद स्वर्ण मन्दिर में ख़ालिस्तान के नारे गूंजना सिर्फ पंजाब की भगवंत मान की सरकार के लिए ही नहीं बल्कि केंद्र की मोदी सरकार के लिए भी बड़ी चिंता का विषय है. इसलिये भी कि पंजाब एक सीमावर्ती सूबा है जिसकी सीमा पाकिस्तान से लगती है.और,पाकिस्तान तो हर वक़्त भारत में कोई बड़ी तबाही मचाने की फिराक में ही रहता है.


सोमवार को हुई घटना से ऐसा लगता है कि विदेशों में बैठी कुछ ताकतें एक बार फिर से पंजाब के लोगों का अमन-चैन छीनकर उन्हें आतंकवाद का दर्दनाक मंज़र देखने-झेलने की कोई बड़ी साजिश रचने में जुटी हुई हैं.शायद इसीलिए पंजाब की राजनीति के जानकार ये मानते हैं कि  सोमवार को स्वर्ण मंदिर में जो कुछ हुआ और उस पर अकाल तख्त की चुप्पी बताती है कि ये किसी बड़ी घटना का एक ट्रेलर था.इसलिये कि विदेश में बैठकर अलग ख़ालिस्तान की मांग को दोबारा हवा देने की साजिश के सूत्रधार ये देखना चाहते थे कि उनकी इस मुहिम को किस हद तक समर्थन मिलता है.


अमृतसर में हर साल छह जून की तारीख़ को घल्लूघारा दिवस के रुप में मनाया जाता है लेकिन पंजाब पुलिस इसे लेकर गर्व से अपना सीना तानते हुए दावा करती है कि सब कुछ शांतिपूर्वक सम्पन्न हो गया. लेकिन देश के टुकड़े कर देने के नारे लगाने वालों के खिलाफ आखिर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?


स्वर्ण मंदिर के इस समागम में जुटे हजारों सिखों को जो संदेश दिया गया है,वह और भी ज्यादा चिंताजनक है.इस मौके पर अकाल तख़्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि "अब सिख संस्थाओं को सरेआम मॉर्डन हथियारों की ट्रेनिंग देने का प्रबंध करना चाहिए. मैं सिख संस्थाओं को ये कहना चाहूँगा कि जैसे धन गुरू अंगद देव जी ने खडूर साहिब की धरती पर मल अखाड़े स्थापित किए थे वैसे ही आज हमारी संस्थाओं को गतका ( सिख मार्शल आर्ट) अकादमियां और अखाड़े बनाई जानी चाहिए."


यहां तक तो ठीक है लेकिन इसके आगे उन्होंने जो कुछ कहा,वह सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है.ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा, "शूटिंग रेंज जैसे आधुनिक शस्त्र अभ्यास केंद्र भी क़ायम किए जाने चाहिए. दूसरे लोग, छिप कर अपने लोगों को हथियारों की ट्रेनिंग दे रहे हैं हम सरेआम ये ट्रेनिंग देंगे." लेकिन ये पहली बार नहीं है,जब अकाल तख्त के जत्थेदार ने हथियार रखने की वकालत की हो.उन्होंने पिछले महीने एक समारोह में कहा था कि 'इस तरह का समय है' जब हर सिख को एक लाइसेंसी आधुनिक हथियार रखना चाहिए."


दरअसल,उनका कहना था कि "हर सिख को क़ानूनी तरीक़े से लाइसेंसी आधुनिक हथियार रखने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह समय ही ऐसा है और ऐसी बदलती हुई स्थिति है." तब उनके इस बयान की मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कड़ी आलोचना की थी और कहा था कि सभ्य समाज में हथियारों की कोई जगह नहीं है.



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