देश के आर्थिक विकास की यात्रा में महिलाओं की सहभागिता तेज़ी से बढ़ रही है. हर क्षेत्र में वे बढ़-चढ़कर न केवल हिस्सा ले रही हैं, बल्कि कई क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें उनकी भूमिका पुरुषों के मुक़ाबले अधिक प्रभावी है. चाहे घर संभालने की बात हो या फिर ऑफिस..दोनों ही मामले में महिलाओं का कोई मुक़ाबला नहीं है.


इसके बावजूद देश में कई मुद्दे और समस्याएं हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं से है. इनमें महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा, यौन शोषण और कई अन्य तरह के अपराध शामिल हैं. तमाम विरोधाभासों के साथ समाज में महिलाओं के प्रति सोच को लेकर कई सारे सवाल अभी भी बेहद प्रासंगिक हैं. उनमें से एक मसला है... माताओं-बहनों-बेटियों के नाम अपशब्दों का इस्तेमाल. हमें माताओं-बहनों-बेटियों के नाम से गालियाँ अक्सर सुनाई देती हैं. घर से लेकर सड़क तक माँ-बहन के नाम से गालियों का धड़ल्ले से प्रयोग होते देखते हैं.


माताओं-बहनों-बेटियों के नाम से गाली


माताओं-बहनों-बेटियों के नाम से गालियों का धड़ल्ले से इस्तेमाल महिलाओं के प्रति समाज की सोच..ख़ासकर पुरुषों की मनोवृत्ति.. को दर्शाता है. बहुत कुछ बदला है, इसके बावजूद महिलाओं से जुड़े गालियों का चलन बदस्तूर जारी है. इसे हम महिलाओं के साथ बेअदबी के तौर तक ही सीमित नहीं मान सकते. यह महिलाओं के ख़िलाफ़ मानसिक हिंसा का एक घृणित और व्यापक स्वरूप है.


बेहद शर्मनाक है गालियों का यह चलन


हद तो यह है कि महिलाओं से जुड़ी गालियों का इस्तेमाल अधिकतर वहाँ देखने को मिलता है, जिस मामले में महिलाएं जुड़ी भी नहीं होती है. दो पुरुषों के बीच लड़ाई हो रही हो, वहाँ धड़ल्ले से एक-दूसरे को माताओं-बहनों-बेटियों के नाम से गालियाँ देकर पुरुष अपने अहम को संतुष्ट करने की ऐसी कोशिश करता है, जो सभ्य समाज में कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए.


चलन को रोकने के लिए हो ठोस पहल


विडंबना यह भी है कि इस समस्या के प्रति न तो समाज में, न राजनीतिक तौर से, न धार्मिक तौर से और न ही मीडिया में बहस होती है. जबकि यह बेहद ही गंभीर मसला है. यह पूरी तरह से उस कुत्सित मानसिकता से जुड़ी समस्या है, जो जिसमें महिलाएं सीधे तौर से टारगेट पर होती हैं. महिलाओं का अस्तित्व, उनकी अस्मिता, उनके सम्मान पर इन गालियों के ज़रिये दिन-रात आघात पहुँचाया जाता है. इस चलन को सीधे तौर से पुरुषों के उस नकारात्मक मनोभाव से जुड़ा हुआ माना जाना चाहिए या है, जिस मानसिकता में महिलाओं को दोयम दर्जा देने या रखने का भाव निहित होता है. यह पुरुष के उस मानसिकता को भी दर्शाता है, जिसमें धड़ल्ले से अपने शब्दों से महिलाओं के सम्मान को तार-तार करने की कुंठा निहित हो.


देशवासियों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील


इस समस्या को, इस कु्त्सित मानसिकता को जड़ से मिटाने के लिए देशव्यापी स्तर पर अब तक कोई ठोस पहल राजनीतिक और धार्मिक स्तर से नहीं हुई है. अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चलन पर रोक को लेकर गंभीरता दिखाई है.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आह्वान किया है कि माताओं-बहनों-बेटियों के नाम अपशब्दों का, गालियों का इस्तेमाल करने का जो चलन है उसके खिलाफ आवाज़ बुलंद होनी चाहिए. यह चलन बंद होना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 जनवरी को महाराष्ट्र के नासिक में स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय युवा महोत्सव का उद्घाटन कर रहे थे. इस समारोह में संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने माँ-बहनों-बेटियों के नाम से गालियाँ देने के चलन को बंद करने के लिए देशवासियों से अपील की.


बेहद गंभीर है मुद्दा, व्यापक चर्चा की ज़रूरत


मुद्दा गंभीर और संवेदनशील होने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बावजूद इस मसले को न तो मीडिया की मुख्यधारा में उतना महत्व मिला और न ही सोशल मीडिया पर कोई हलचल दिखी. यह इतना गंभीर मसला है कि हर स्तर पर चर्चा होनी चाहिए थी. यह देश के हर नागरिक से जुड़ा मसला है. न सिर्फ़ वर्तमान, बल्कि भविष्य पर प्रभाव डालने वाला मुद्दा है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह देश की आधी आबादी से जुड़ा मसला है. हर घर-परिवार में महिलाएं हैं. माताओं-बहनों-बेटियों के नाम से गालियों का इस्तेमाल इंसान होने पर ही सवालिया निशान खड़ा करता है. इस तरह की गाली चाहे कोई दे रहा हो, इससे महिलाओं को लेकर पूरे समाज की मानसिकता झलकती है.


अन्य मुद्दों की तरह ही महत्व की ज़रूरत


इतना संवेदनशील और गंभीर मसला होने के बावजूद, यह समझ से परे है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बावजूद न तो इसको लेकर खब़र बनी, न ही आम लोगों में इस पर कहीं चर्चा होती दिखी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पहले भी माँ-बहनों के नाम से अपशब्दों के प्रयोग के चलन को लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने साफ कहा है कि  माताओं-बहनों-बेटियों के नाम अपशब्दों का, गालियों का इस्तेमाल करने का जो चलन है उसके खिलाफ आवाज़ उठाएं, इसे बंद करवाएं. यह छोटी-मोटी अपील या आह्वान नहीं है. इसे बाक़ी अन्य मुद्दों की तरह ही महत्व दिए जाने की ज़रूरत है.


होना यह चाहिए था कि प्रधानमंत्री की इस अपील को लेकर बड़ी-बड़ी ख़बरें बननी चाहिए थी, छपनी चाहिए थी. न्यूज़ चैनलों पर प्राइम टाइम में चर्चा होनी चाहिए. हालाँकि ऐसा होता कहीं दिखा नहीं. यह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है. 


चलन के ख़िलाफ़ आवाज उठाने पर हो ज़ोर


देश में एक ऐसा माहौल बनना चाहिए, जिसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस अपील पर ठोस पहल हो सके. इसे पारिवारिक या नैतिकता और संस्कार से जुड़ा मुद्दा मानकर छोड़ नहीं देना चाहिए. यह समस्या सामाजिक सोच से जुड़ी है. यह मसला पुरुषों की महिलाओं के प्रति विकृत सोच से जुड़ा है. इसके साथ ही यह समस्या परवरिश और शिक्षा से भी जुड़ी हुई है.


पाठ्य पुस्तकों में या धार्मिक ग्रंथों में सिर्फ़ अच्छी-अच्छी बातें लिख देने से मानसिकता में सुधार नहीं हो जाता है. उसमें भी हर माँ-बात अपने बच्चों को शिक्षा या ज्ञान देते हैं कि गाली का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. विडंबना है कि उनमें से कई माता-पिता ही ऐसी गालियों को धड़ल्ले से इस्तेमाल करने से बाज़ नहीं आते. पुरुषों के साथ-ही साथ कई बार महिलाएं भी इस तरह की गालियाँ ख़ूब इस्तेमाल करती हुई दिखती हैं.


राजनीतिक दलों और धर्मगुरुओं की भूमिका


ऐसे में सवाल उठता है कि इस चलन पर रोक के लिए समाज में , देश में व्यापक जागरूकता फैलाने का काम किस तरह से किया जा सकता. हम सभी जानते हैं कि भारत में लोगों पर धर्म और राजनीति का प्रभाव जल्द पड़ता है. ऐसे में माँ-बहन के नाम से गालियों के इस्तेमाल से जुड़े चलन को बंद करने में राजनीतिक दलों और धर्मगुरुओं की बड़ी और सार्थक भूमिका हो सकती है.


सभी राजनीतिक दल की ओर से हो ठोस पहल


सबसे पहले बात करते हैं राजनीतिक दलों की पहल से जुड़े पहलू की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से इस चलन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने और इसे बंद करने को लेकर अपील की है. ऐसे में देश के लोगों के साथ ही उन्हें इस समस्या को लेकर ठोस पहल की शुरूआत अपनी पार्टी से करनी चाहिए. हम सब जानते हैं कि उनकी बातों का देश के आम लोगों पर व्यापक और गहरा असर पड़ता है.


लोक सभा चुनाव का भी माहौल है. चुनाव को लेकर जनप्रतिनिधियों यानी नेताओं का आम लोगों से संवाद होते रहता है. तमाम दलों को अपने-अपने एजेंडा में माँ-बहन के नाम से गालियों के इस्तेमाल के चलन को बंद करने से जुड़ी नीति और पहल को शामिल करना चाहिए. हर दल के शीर्ष नेतृत्व को बाकायदा इसके लिए निर्देश जारी करना चाहिए.


अक्सर ऐसे वीडियो भी सामने आते रहते हैं या कहें वायरल होते रहते हैं, जिनमें नेताओं और कार्यकर्ताओं को सार्वजनिक तौर से माँ-बहन के नाम से गालियों का इस्तेमाल करते हुए देखा-सुना जाता है. कई बार तो विधायकों, सांसदों और मंत्रियों को भी ऐसा करते हुए देखा-सुना गया है. यह बेहद ही ख़तरनाक और शर्मनाक प्रवृत्ति है. 


प्रवृत्ति पर सख़्ती से रोक लगाने की ज़रूरत


इस प्रवृत्ति पर सख़्ती से रोक लगाने की ज़रूरत है. अगर नेता या जनप्रतिनिधि ही ऐसी भाषा का प्रयोग करेंगे, तो फिर गालियों के चलन पर रोक लगाना बेहद मुश्किल होगा. राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व को इसके लिए अपने-अपने दल से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाना चाहिए. उसमें स्पष्ट निर्देश हो कि अगर कोई भी नेता या कार्यकर्ता माँ-बहन के नाम से गालियों का इस्तेमाल करता हुआ पाया जायेगा, तो, उसके ख़िलाफ़ पार्टी सख़्त कार्रवाई करेगी.


अगर प्रधानमंत्री ने अपील की है, तो सबसे पहले बीजेपी को ही इसके लिए शुरूआत करनी चाहिए. अगर बीजेपी ने ऐसा किया, तो यह पहल हर राजनीतिक दल के लिए एक मिसाल या उदाहरण बन सकता है. आगे चलकर हर राजनीतिक दल को ऐसी ही शुरूआत करनी चाहिए. लोक सभा चुनाव में अब दो-तीन महीने ही बचे हैं. इससे बढ़िया या बेहतर कोई मौक़ा नहीं होगा. इस चलन पर पूर्णतया रोक लगे, इससे जुड़ी मुहिम को हर राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्र में जगह भी दे. इस तरह की पहल होनी चाहिए. जैसे ही राजनीतिक स्तर पर इस दिशा में ठोस पहल और कार्रवाई होगी, भविष्य में उसका समाज के अलग-अलग तबक़े पर भी व्यापक असर पड़ेगा.


धर्मगुरुओं की पहल से होगा व्यापक असर


इसी तरह भारत में धार्मिक नेताओं, धर्मगुरुओं और साधु-संतों, मौलवियों, चर्च से जुड़े फादर का आम लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. इस लिहाज़ से अगर इन लोगों की ओर से भी कोई ठोस मुहिम शुरू की जाती है या पहल की जाती है, तो माँ-बहन के नाम से गालियों के इस्तेमाल के चलन पर अंकुश लगाने में काफ़ी मदद मिलेगी. अगर ये सारे धर्मगुरु अलग-अलग मंचों से बार-बार इस चलन को बंद करने का आह्वान करें, तो भविष्य में उसका सकारात्मक प्रभाव ज़रूर दिखेगा.


सामाजिक स्तर पर सार्थक मुहिम की ज़रूरत


इन दोनों पक्षों के बाद सामाजिक स्तर पर भी इस दिशा में अलग-अलग तरीक़े से अवेयरनेस कार्यक्रम या मुहिम चलाए जाने की ज़रूरत है. इसे हर किसी को समझना और समझाना होगा कि माताओं-बहनों-बेटियों के नाम अपशब्दों या गालियों का इस्तेमाल कोई घमंड का विषय नहीं है, बल्कि शर्म का विषय है.


इस चलन को रोकने के लिए क़ानून बनाने की भी दरकार हो, तो राज्य स्तर के साथ ही केंद्रीय स्तर पर भी क़दम उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए. इस पर भी देश के राजनीतिक कर्ता-धर्ता को सोचने की ज़रूरत है. माँ-बहन-बेटियों के नाम से गालियाँ देने का चलन अभिशाप है, मानव समाज पर धब्बा है.  इस पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए. इसका कोई अपवाद नहीं हो सकता है.


हर कोई याद रखें, हर कोई समझ ले..चाहे कारण कुछ भी हो..  माँ-बहन की गाली को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है. ऐसा मानकर ही इस चलन को रोकने के लिए जन जागरूकता अभियान की ज़रूरत है. यह राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक तीनों स्तर पर होना चाहिए. तभी भविष्य में माताओं-बहनों-बेटियों के नाम अपशब्दों या गालियों का इस्तेमाल करने चलन बंद होगा. पूरा मसला सिर्फ़ अपील या उपदेश देने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए. इस चलन को बंद करने के बाद ही हम सही मायने में यह कह सकते हैं कि भारतवासियों की सोच महिलाओं के प्रति सम्मान की है..आदर की है और उससे बढ़कर..बराबरी की है. 


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