सोमवार की इस सुबह से लेकर देर शाम तक सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका और चीन की भी निगाह इस पर रहेगी कि आज पाकिस्तान का क्या होगा?इमरान खान पीएम की कुर्सी पर बने रहेंगे या फिर पाकिस्तान के सियासी इतिहास की एक नई इबारत लिखी जायेगी? ये सवाल इसलिये कि 14 अगस्त 1947 की रात 12 बजे से पहले तक अखंड भारत कहलाने वाले हिस्से के दो टुकड़े कर दिए गए थे.नेहरु और जिन्ना की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए गांधी ने जिस जमीन व तहज़ीब का बंटवारा किया, वही दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान कहलाता है. लेकिन उस सरजमीं पर फ़ौजी बूटों से निकली ताकत भरी आवाज़ ये गवाही देती है कि पाकिस्तान में अब तक कोई भी हुक्मरान अपना पांच साल का तय कार्यकाल आज तक पूरा नहीं कर पाया है.


लेकिन पाकिस्तान के सियासी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जबकि समूचा विपक्ष एकजुट होकर व संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाकर लोकतांत्रिक तरीक़े से इमरान सरकार का तख्तापलट करना चाहता है.दुनिया के किसी भी देश के लोकतंत्र में नंबर गेम यानी संसद के सदस्यों का आपके पास बहुमत होना ही मायने रखता है.अगर वो नहीं है,तो फिर सरकार में बैठी पार्टी भले ही सड़कों पर अपने लाखों समर्थकों की भीड़ जुट ले,उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.


आज पाकिस्तान की नेशनल असेंबली यानी संसद में इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश होगा और उस पर बहस शुरु होगी.सिर्फ हम ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी मीडिया भी पुख्ता तौर पर ये बताने की हैसियत में नहीं है कि इस प्रस्ताव पर वोटिंग कब होगी. लेकिन पाक मीडिया का दावा है कि इमरान सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है क्योंकि उनसे बगावत करके विपक्षी खेमे में चले गए दो दर्जन सांसदों में से किसी एक ने भी वापस आने की रजामंदी नहीं दी है. लिहाज़ा, नंबर के लिहाज से इमरान खान ये बाजी हारते हुए दिखाई दे रहे हैं लेकिन पाकिस्तान के पत्रकार इसलिये हैरान हैं कि संसद में हारकर अपनी फजीहत कराने से बेहतर तो ये होता कि वे रविवार को इस्लामाबाद में हुई रैली में जुटे अपने लाखों समर्थकों के बीच ही पीएम पद से इस्तीफा देने का ऐलान करते हुए एक हुनरमंद सियासी शहीद बन जाते.


लेकिन क्रिकेट की पिच पर हरफनमौला रहे इमरान खान ने ऐसी तमाम सियासी अटकलों को खारिज़ करते हुए इस्लामाबाद की इस रैली भेम सीना चौड़ा करते हुए कह दिया कि वे इस्तीफा नहीं देंगे औऱ अपने कार्यकाल के पांच साल पूरे करेंगे. उनके इस ऐलान के बाद से ही पाकिस्तान के सियासी जानकारों और खबरनवीसों समेत सेना के आला अफसर भी हैरान हैं कि आखिर किस दम पर इमरान खान ये दावा करते हुए अपने ही लोगों को गुमराह कर रहे हैं.पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार अंजुम कादरी कहती हैं - "अगर ऐसे ही सियासी हालात आपके भारत में पैदा हो जाएं,तो क्या आपके प्रधानमंत्री संसद के भीतर होने वाली इस लड़ाई को क्या सड़कों पर आकर लड़ेंगे? ये जानते हुए भी लाखों लोगों की जुटाई भीड़ भी संसद के भीतर आपके एक वोट का भी इज़ाफा नहीं कर सकती." उनके मुताबिक रविवार को इस्लामाबाद की सड़कों पर जुटाई गई ये भीड़ कहने को तो तो पाकिस्तान की तहीरक-ए-इंसाफ-इंसाफ पार्टी की ताकत की नुमाइश थी,लेकिन सही मायने में जंग लड़ने से पहले ही ये एक हारे हुए हुक्मरान की दास्तां थीं. और,अब यहीं से पाकिस्तान में जम्हूरियत शायद एक नई करवट लेगी,जो अवाम को बेपनाह तकलीफों की बेड़ियों से आज़ाद भी करेगी.


हालांकि हम पाकिस्तान के किसी भी पत्रकार की निजी राय से वास्ता नहीं रखते क्योंकि उनके विचार सत्ता में बैठी पार्टी के बारे में किसी पूर्वग्रह से ग्रसित भी हो सकते हैं, यानी वे अपने किसी खास स्वार्थ या मकसद की खातिर सरकार पर निशाना साध रहे हों.लेकिन मोटे तौर पर दुनिया में ये माना जाता है कि मीडिया निष्पक्ष रहते हुए हर सच्चाई से जनता को रुबरु कराता है और वो लोगों की सियासी नब्ज़ को पकड़ने-समझने में भी काफी हद तक कामयाब भी होता आया है.


फिर भी पाक मीडिया में आई इन खबरों के सच से तो  इनकार नहीं किया जा सकता कि इमरान खान का साथ छोड़ चुके दो दर्जन सांसदों के अलावा उनकी ही सरकार के लॉ मिनिस्टर मुल्क छोड़कर विदेश भाग चुके हैं.वहां की मीडिया रिपोटर्स पर यकीन करें,तो इमरान खान के करीबी सलाहकार और आला ब्यूरोक्रेट्स रहे तकरीबन चार दर्जन लोग मुल्क से लापता हैं.यानी सरकार का तख्तापलट होने की आशंका से वे पाकिस्तान छोड़कर कहीं और चले गए हैं.हैरानी की बात ये है कि इसमें पाक सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रहे शख्स का भी नाम आ रहा है,जिन्हें इमरान खान का सबसे भरोसेमंद समझा जाता था.


अब ये तो वोटिंग के बाद ही पता चलेगा कि इमरान सरकार फ्लोर टेस्ट हारने से पहले ही डूबता जहाज बन चुकी थी या फिर ऐसे घमासान सियासी तूफान में भी उसने इसे बचा लिया है.लेकिन कहते हैं कि सियासत में जब तक अपने विरोधी पर कीचड़ न उछाला जाए, टैब तक वह अधूरी ही रहती है.सो,कल इस्लामाबाद की रैली में इमरान खान ने विपक्षी दलों के तीन नेताओं को तो आड़े हाथ लिया लेकिन वे मुल्क की मरहूम प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के नौजवान बेटे बिलावल भुट्टो पर निशाना साधकर एक बड़ी सियासी गलती भी कर बैठे. इस वक़्त पाकितान के युवाओं के बीच वे एक चर्चित चेहरा बन चुके हैं और वहां का अवाम उनके जोश को देखते हुए उन्हें अपनी मां के विकल्प के रूप में देख रहा है.


कल इस्लामाबाद में जब इमरान खान विपक्षी नेताओं को अपने भाषण में चोर और डाकू करार दे रहे थे,ठीक उसी दौरान बिलावल भुट्टो भी अपनी रैली में इमरान खान की तुलना एक जानवर से कर रहे थे.बिलावल ने कहा कि ये इस मुल्क में जंगल राज लाना चाहते हैं लेकिन हम इसकी इजाजत नहीं देंगे और सोमवार से इसके खात्मे की शुरुआत हो जाएगी.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)