क्रिकेट की दुनिया में पाकिस्तान को एकमात्र विश्वकप दिलाने वाले इमरान अहमद खान नियाज़ी अपनी प्रधानमंत्री की कुर्सी से बोल्ड आउट होते नज़र आ रहे हैं. कहते हैं कि सियासत में अपनी कुर्सी बचाने के लिए हर तरह का हथकंडा इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ये जरुरी नहीं कि वो कामयाब हो भी जाए. अब इमरान खान ने अपना तख्त बचाने के लिए बरसों पुराने उस कश्मीर का राग फिर से अलापा है, जिसके लिए पाकिस्तान का अवाम बिल्कुल बेफिक्र हो चुका है और उसे भारत के कश्मीर से ज्यादा अपने मुल्क में आसमान छूती महंगाई से निजात पाने की चिंता जरूरत से भी ज्यादा है. लेकिन अगले नवंबर में अपनी उम्र के 70 बरस पूरे करने वाले और क्रिकेट की पिच के हरफनमौला खिलाड़ी समझे जाने वाले इमरान खान पिछले साढ़े तीन बरस में न तो सियासत की पथरीली जमीन को समझ पाए और न ही अपने अवाम की उम्मीदों पर ही खरा उतर पाये. पर,अब अपनी कुर्सी खतरे में नज़र आते ही उनकी पार्टी अविश्वास प्रस्ताव के मसले को सुप्रीम कोर्ट ले गई है. कोई नहीं जानता कि वहां से उन्हें कोई राहत मिलेगी या नहीं.


हक़ीक़त ये है कि पाकिस्तान की सेना के भरोसे 18 अगस्त 2018 को अपनी ताजपोशी करवाने वाले इमरान की सरकार के खिलाफ न सिर्फ समूचा विपक्ष एकजुट हो गया है, बल्कि उनके करीबी समझे जाने वाले तकरीबन दो दर्जन सांसदों ने भी उनके खिलाफ बगावत का परचम लहरा दिया है. जिस सेना के भरोसे वे पीएम की कुर्सी तक पहुंचे थे, उस सेना प्रमुख जनरल कमर बाज़वा ने भी उन्हें अल्टीमेटम दे दिया है कि इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की कांफ्रेंस ख़त्म होते ही वे अपनी कुर्सी छोड़ दें,वरना मुल्क के हालात इतने बेकाबू हो जाएंगे कि आखिरकार सेना को ही सत्ता संभालने के लिए आगे आना पड़ेगा. आज यानी बुधवार को उस कॉन्फ्रेंस का आखिरी दिन है, इसलिये भारत,अमेरिका और चीन समेत दुनिया की निगाह इस पर लगी हुई है कि पाकिस्तान कि सियासत में मची इस उथल-पुथल का अंज़ाम आखिर क्या होगा.


पाकिस्तान के अवाम समेत बाकी मुल्कों में भी ये सवाल उठ रहे हैं कि इमरान खान अपने सेना प्रमुख की सलाह मानते हुए गुरुवार की सुबह तक अपने पद से इस्तीफा दे देंगे या फिर वे विपक्ष द्वारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए उसमें अपनी हार का सामना करने के बाद ही कुर्सी छोड़ेंगे. पाक राजनीति के जानकार मानते हैं कि सेना प्रमुख ने उन्हें अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने से पहले ही कुर्सी छोड़ने की सलाह दी है, तो उनके पास ये पुख्ता खबर है कि इमरान इस प्रस्ताव को किसी सूरत में जीत नहीं पाएंगे. लेकिन उनके मुताबिक इसमें एक पेंच और भी है और वो है, चीन की पर्दे से पीछे से चल रही दखलदांजी. चार दिन पहले ही पाक सेना प्रमुख ने इस्लामाबाद स्थित चीनी राजदूत और अन्य आला अफसरों से मुलाक़ात की थी. बताया जा रहा है कि उसमें एक फार्मूला ये सुझाया गया कि इमरान इस प्रस्ताव के संसद में आने से पहले ही पद से हट जाएं और अपने किसी भरोसेमंद को पीएम की कुर्सी पर बैठा दें. लेकिन इससे भी संकट का समाधान निकलते हुए नहीं दिखता, क्योंकि विपक्ष सिर्फ पीएम के खिलाफ नहीं बल्कि पूरी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है. ऐसी सूरत में कोई भी ये गारंटी देने की हैसियत में नहीं है कि इमरान के पद छोड़ने के बाद भी तमाम बागी सांसद सरकार को बचाने के लिए दोबारा अपनी पार्टी में लौट आएंगे.


दरअसल, चीन भी नहीं चाहता कि पाक की सत्ता सेना के हाथों में आये  क्योंकि उसके बाद उसके सैन्य-अभियान के विस्तार को लेकर दुनिया में तमाम तरह के सवाल उठेंगे. इसलिये वो भी यही चाहता है कि वहां लोकतांत्रिक सरकार चलती रहे,ताकि वह इसकी आड़ लेकर अपने सभी मकसदों को वक़्त रहते हुए पूरा कर सके. कोई सोच भी नही सकता था कि तीन दिन पहले रविवार को भारत की ''स्वतंत्र विदेश नीति'' की जमकर तारीफ करने वाले इमरान अचानक गिरगिट की तरह ऐसा रंग बदलेंगे कि हिंदुस्तान के खिलाफ इतना जहर उगलेंगे.कल इस्लामाबाद में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के विदेश मंत्रियों की परिषद (सीएफएम) के 48 वें सत्र में बोलते हुए इमरान जिस अंदाज में पेश आये,वो उनकी हताशा ही दिखा रहा था कि इस मौके पर कश्मीर और फिलिस्तीन का मसला उठाकर शायद वे अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो जायें.


इमरान खान ने इस्लामिक देशों के सम्मेलन के मंच का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया तो जमकर, लेकिन उन्हें उम्मीद के मुताबिक कोई समर्थन नहीं मिल पाया. कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए इमरान ने  कहा, “हम फलस्तीन और कश्मीर मुद्दे पर नाकाम रहे क्योंकि हम एक नहीं है और वो ताकतें यह बात जानती हैं. वे हमें गंभीरता से नहीं लेतीं. कश्मीर के लोगों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा जनमत संग्रह का वादा किया गया था लेकिन यह हक़ उन्हें कभी नहीं दिया गया.” लेकिन वे यहां ही नहीं रुके बल्कि उन्होंने भारत के अंदरुनी मसले और संवैधानिक ढांचे के भीतर किये गए बदलाव को भी अन्तराष्ट्रीय मंच से खुली चुनौती दे डाली. इमरान ने इस्लामिक मुल्कों के दम पर भारत से सीधी दुश्मनी मोल लेते हुए ये तक कह दिया, “कश्मीर का स्पेशल स्टेट्स भारत ने 5 अगस्त 2019 को गैरकानूनी तरीके से वापस ले लिया. लेकिन इसके बावजूद कुछ नहीं हुआ. यही वजह है कि वे कोई दबाव महसूस नहीं करते. वे समझते हैं कि हम कोई प्रस्ताव लाएंगे और फिर अपने कामों में लग जाएंगे. लेकिन मैं विदेश नीति के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता हूं क्योंकि हर देश की विदेश नीति अलग-अलग होती है. लेकिन हमें इसके खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने की जरूरत है, नहीं तो ये अत्याचार कश्मीर और फलस्तीतन में होते रहेंगे.” अब बड़ा सवाल ये है कि कश्मीर का पुराना राग छेड़कर क्या इमरान अपनी कुर्सी बचा लेंगे क्योंकि पाकिस्तान के विपक्ष ने उनके इस बयान को जरा भी तवज्जो नहीं दी है?



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