पाकिस्तान में आतंकी हमलों का सिलसिला एक बार फिर से उफान पर है. बीते 4 नवंबर को मियांवाली में आतंकियों ने बम विस्फोट किया तो उससे लगे ही ग्वादर पोर्ट में भी विस्फोट हुए थे. जान-माल की हानि अभी और बढ़ने का अंदेशा है, क्योंकि पाकिस्तान अभी अफगानिस्तान के लाखों शरणार्थियों को वापस अफगानिस्तान में धकेल रहा है. उधर, फिलहाल अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान ने तो डूरेड लाइन को ही मानने से इंकार कर दिया है. तालिबान और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते संबंधों से हालात और भी बदतर होंगे. दुनिया की नजर अभी इस कोने पर इसलिए नहीं है क्योंकि रूस और यूक्रेन के युद्ध के अलावा हमास और इजरायल के बीच चल रहा संघर्ष अभी सबकी नजर में है. पाकिस्तान का मुस्तकबिल फिलहाल और भी स्याह होनेवाला है, ऐसा विशेषज्ञों का मानना है. 


पाकिस्तान का पुराना है आतंक से रिश्ता


जब हम पाकिस्तान के हालिया आतंकी हमलों की बात करते हैं, तो हमें थोड़ा पीछे जाकर इसके इतिहास को खंगालना होगा. फरवरी 2020 में दोहा में एक समझौता हुआ था. वह समझौता तालिबान और अमेरिका के बीच हुआ था. उसके होते-होते जो पाकिस्तानी तालिबान है, जिसे हम तहरीके तालिबान (पाकिस्तान) कहते हैं, का मनोबल बढ़ गया, क्योंकि उस समय से अफगान तालिबान की ताकत बढ़ने लगी थी और जो अफगान तालिबान है और पाकिस्तान तालिबान है, वह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों ही जगह तालिबान के हमले बढ़ने लगे. अगर हम आंकड़ों पर ध्यान दें तो 2014 में करांची इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हमला हुआ था और उसके बाद एक बहुत बड़ा ऑपरेशन चला था, जिसका नाम ऑपरेशन जर्ब-ए-अजब था. उसकी इंटेंसिटी तब बढ़ा दी गयी, जब पेशावर में आर्मी स्कूल पर हमला हुआ. पाकिस्तान ने बहुत सारे आतंकियों पर कड़ी कार्रवाई की. पाकिस्तानी आतंकी अफगानिस्तान भी गए और पाकिस्तान में स्थितियां सुधरने लगीं. जहां 2013 में 5 हजार लोगों से अधिक की मौत आतंक की वजह से हुई, वहीं 2014 में पांच हजार, 2015 में तीन हजार और 2016 में 1500, 2017 में 1200 और 2018 के आते-आते यह संख्या 600 तक पहुंच गयी. 2019 में आतंकवादी घटनाओं में केवल 365 लोग मरे, जो पाकिस्तान में सबसे कम रहा. 2020 की डील के बाद स्थितियां बदल गयीं. 



दोहा डील से मजबूत पाकिस्तानी तालिबान 


अमेरिका और अफगानी तालिबान के बीच समझौते के बाद पाकिस्तानी तालिबान की भी स्थिति मजबूत हुई. ऊपर से पाकिस्तान ने यह छूट भी दे दी कि जो पाकिस्तानी आतंकी अफगानिस्तान भाग गए थे, वे बिना हथियारों के वापस आना चाहें, तो आ सकते हैं. उसके बाद से आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई. 2022 में तो 900 से अधिक लोग मरे और 2023 में अभी दो महीने बाकी हैं, लेकिन 1200 लोगों की आतंकी घटनाओं में मौत हो चुकी है. अगर हम इसको नागरिक और फौजी मौतों में बांट कर देखें तो अभी तक 300 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं. इस साल अभी तक 450 से अधिक सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं और यह संख्या सबसे अधिक 2014 में थी, जब 500 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. दिक्कत ये है कि जब अफगानिस्तान में तालिबान आया तो पाकिस्तान को उम्मीद थी कि दोनों के संबंध सुधरेंगे और पाकिस्तान की चलेगी. चूंकि पाकिस्तान ने ही एक तरह से अफगानिस्तानी तालिबान को बनाया था, हर संभव मदद दी थी तो उसको लगा था कि अफगानिस्तान में उनकी सत्ता आने के बाद पाकिस्तान की मनमर्जी चलेगी. अफगानी तालिबान ने उनको अँगूठा दिखा दिया और साफ कर दिया कि वे डूरंड लाइन को नहीं मानेंगे. पाकिस्तान के खैबर इलाके में जो लोग हैं, उनको अगर शरणार्थी मानकर पाकिस्तान भेजता है, तो उसको परिणाम भुगतने होंगे, ऐसी धमकी भी तालिबान ने दी. जब पाकिस्तान ने अफगानी शरणार्थियों को वापस भेजा है, तो तनाव भी बढ़ा है, सीमाई इलाकों में झड़पें भी हो रही हैं और अफगानी तालिबान ने यह खुली छूट दी है कि जो लोग पाकिस्तान में धमाके कर रहे हैं, वे और भी शिद्दत से अपने काम को अंजाम दे सकते हैं. 


पाकिस्तान काट रहा अपना बोया


अभी जो मियांवाली में हुआ है, उसके पहले ग्वादर पोर्ट में हुआ है, उससे तल्खियां बहुत बढ़ी हैं और नुकसान भी बहुत हो रहा है. खैबर-पख्तूनवां का जो इलाका है पाकिस्तान का, वह ट्राइबल एरिया फिर से आतंकवाद की विभीषिका में जल रहा है. यह स्थिति बद से बदतर होगी, जब तक अफगानी तालिबान से मिल रहा पाकिस्तानी आतंकियों को समर्थन बंद न हो जाए. वह चूंकि अभयारण्य बना हुआ है और तालिबान को दुनिया के किसी भी देश ने अब तक मान्यता नहीं दी है. दुनिया के देश उसको सहायता दे रहे हैं, ताकि वहां के नागरिकों की जिंदगी और मुश्किल न हो, तो देश सहायता दे रहे हैं, मान्यता नहीं. पाकिस्तान खुद ही एक आतंकवादी देश है, ये अलग बात है कि इंटरनेशनल डिप्लोमैसी और मजबूरियों के चलते बाकी देश उसको घोषित नहीं कर रहे. अफगानिस्तान में भी जो आतंकवाद है, उसको उसी ने पाला-पोसा था. पाकिस्तान में जो आतंकवादी हैं, उनको भी तो उसी ने पाला है. अब वह अपना ही बोया काट रहा है. अब ये अलग बात है कि पाकिस्तान में पांच-छह तरह के आतंकी काम करते हैं. एक उसके डोमेस्टिक आतंकी हैं, दूसरे जो हैं वे अफगानिस्तान-भारत के लिए ओरिएंटेड हैं और फिर वो हैं जो ग्लोबल स्तर पर आतंक फैलाने का काम कर रहे हैं. आप दुनिया के किसी आतंकी संगठन के तार अगर जोड़ना चाहें तो पाकिस्तान से जुड़ेंगे. जो उनका फाटा (फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियाज) है, उसको तो दुनिया के सबसे खतरनाक जगह में बताया गया है. जहां हर तरह के आतंकी संगठन शरण लिए हुए थे और हैं, वहां से आतंकवाद का फैलाव रोकना तो मुश्किल होगा ही. 


पाकिस्तान है विफल राष्ट्र 


यह चूंकि दुनिया में ऐसी कोई रवायत नहीं है कि विफल राष्ट्र किसी को औपचारिक तौर पर  घोषित किया जाए, इसलिए पाकिस्तान को ऐसा नहीं कहा जाता है. वरना, तो पाकिस्तान विफल राष्ट्र है ही. उसकी यह हालत कोई आज की है भी नहीं. अभी तो खैर उसके एक पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में हैं और एक पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ निर्वासन झेल कर अभी आए हैं. 2007 में जब तहरीके तालिबान (पाकिस्तान) बना और तब से 2014 के बीच स्थितियां और खराब थी. तब भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उस पर कार्रवाई नहीं की. पाकिस्तान तो एक्सपोर्टर रहा है, आतंकवाद का. उसने अफगानिस्तान में आग लगायी, भारत को सबसे अधिक दंश दिया, चाहे वह 26/11 हो या सैन्य शिविरों पर हमला हो या विभिन्न राज्यों में आतंकी घटनाएं हो. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति हमेशा से खराब रही, लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों के सहयोग से वह चलता रहा. अमेरिका ने वॉर ऑन टेरर में उसको सहयोगी बनाया. इसलिए, विफल देश घोषित करने से बेहतर है कि उसको प्रतीकात्मक चीजों से हटकर बाकी प्रयास किए जाएं, वह बेनकाब हो चुका है, बस उसे पश्चिमी देशों से भी अलग-थलग करना जरूरी है. उसकी तमाम तरह से सहायता बंद करानी  अधिक आवश्यक बात है. 




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