पाक सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ़ द्वारा लाहौर की सैन्य छावनी से अपनी विदाई यात्रा शुरू करने तथा उनके सेना व रेंजर्स को संबोधित करने के साथ अब यह सौ फ़ीसदी तय हो चुका है कि वह 29 नवंबर को रिटायर हो ही जाएंगे. ख़ैबर क्षेत्र में देश के धाकड़ बल्लेबाज शाहिद आफ़रीदी के नाम क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन करने के बाद क़बाइली बुजुर्गों को संबोधित करते हुए जनरल ने हफ़्ता भर पहले ही पुष्टि कर दी थी कि वह अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा होते ही पद छोड़ देंगे. कश्मीर को 1947 में हुए देश विभाजन का ‘अधूरा एजेंडा’ और उसे पाकिस्तान का अविभाज्य अंग बताने वाले राहिल शरीफ ने कुछ दिन पहले ही आग उगली थी कि अगर पाकिस्तान सर्जिकल स्ट्राइक करेगा तो भारत उसे आने वाली कई पीढ़ियों तक भूल नहीं पाएगा. अपने इस डायलॉग में उन्होंने यह भी जोड़ा था कि भारत अपने बच्चों को पाठ्यक्रम में पढ़ाएगा कि सर्जिकल स्ट्राइक होती क्या है!


समझा जा सकता है कि पाक सेनाध्यक्षों, प्रधानमंत्रियों और अन्य बड़े पदों पर बैठे लोगों की मजबूरी है कि वे अपनी जनता को ख़ुश करने के लिए भारत के खिलाफ़ विषवमन करते रहें लेकिन यह भी एक हकीक़त है कि भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों पर पाक सेनाध्यक्षों का साया प्रबल रूप से मंडराता रहता है. मिसाल के तौर पर जब परवेज़ मुशर्रफ़ 1999 में सेनाध्यक्ष बने तो आतंकवाद पर वहां के कई राजनेताओं ने बड़े ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान दिए थे, लेकिन 2002 में मुशर्रफ़ को जिहादी गुटों पर रोक लगाने से कोई रोक नहीं पाया. मुशर्रफ़ के बाद 2008 में जब जनरल कियानी आए और उन्होंने जिहादी गुटों पर लगी रोक हटाई तो उन पर पीएम यूसुफ़ रज़ा गिलानी का कोई वश नहीं चला. इस दौर में सीमित अधिकार प्राप्त राष्ट्रपति ज़रदारी जब-जब भारत के साथ अमन-चैन की बात करते थे तब-तब जनरल कियानी उसमें पलीता लगा देते थे.


पाकिस्तान में आर्मी चीफ़ की अहमियत कोई नई बात नहीं है. एक तरह से 1950 से ही, जब पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना और लियाक़त अली ख़ान गुज़रे, उसके बाद से देश के नीति निर्धारण में सेना हावी हो गई थी. पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि 1976 में सेनाध्यक्ष बनाए गए जनरल ज़िया उल हक़ समेत वहां के सभी जनरल पाक को इंतेहा पसंद विचारधारा की तरफ़ धकेलते रहे. रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि पाकिस्तान की कोर कमांडर कांफ्रेंस, जहाँ पाकिस्तान के अलग-अलग आर्मी कमांडर मिलते हैं, कैबिनेट से भी ज़्यादा शक्ति6शाली होती है. यहीं विदेशी नीति और राष्ट्रीय महत्व के अन्य अहम मुद्दों पर वीटो का फ़ैसला होता है. इस वक़्त जबकि पाकिस्तान में अंदरूनी और लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर हालात बहुत ख़राब हैं, भारत को नए-नए ख़तरे दिख रहे हैं. यह पूरी तरह से पाक पर है कि वह अपना नया सेनाध्यक्ष किसे चुनता है लेकिन भारत यकीनन यह जानना चाहेगा कि उनका नया सेनाध्यक्ष पाक को किस दिशा में ले जाना चाहता है.


भारत पाकिस्तान में एक ऐसा सेनाध्यक्ष चाहेगा जिसकी व्यक्तिगत और राजनीतिक सोच बहुत ज्यादा कट्टर और संकीर्ण न हो बल्कि वह ज़्यादा से ज़्यादा तथ्यात्मक और व्यावहारिक हो. यह नए सेनाध्यक्ष पर ही निर्भर करेगा कि सीमा पर बंदूकें ख़ामोश रहें, भारत की धरती पर पाक प्रायोजित आतंकवाद का ख़ात्मा हो, कश्मीर का मसला सुलझाने की दिशा में सार्थक पहल हो, आपसी व्यापारिक और राजनयिक संबंध मधुर हों तथा इस सबसे बढ़कर ऐसा माहौल बहाल हो सके कि दोनों देशों के नागरिक गलतफ़हमियां दूर करके एक-दूसरे से निजी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ सकें.


पाकिस्तान में सेनाध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया बहुत स्पष्ट नहीं है लेकिन नए सेनाध्यदक्ष की नियुक्ति के समय भारत, चीन और अमेरिका को ध्यान में ज़रूर रखा जाता है. भारत का इसलिए कि नया सेनाध्यक्ष कश्मीनर मामले पर क्या विचार रखता है, इससे पाकिस्तान की आंतरिक तथा विदेश नीति बनती है. चीन से समन्व‍य बनाए रखने के लिए सैन्य सहयोग तथा मदद लेने की जिम्मेदारी काफी हद तक सेना प्रमुख के कंधों पर होती है. आतंकवाद से लड़ने के नाम पर अमेरिका व दीगर मुल्कों से मिलने वाली आर्थिक मदद भी सेनाध्यक्ष द्वारा उठाए गए क़दमों पर निर्भर रहती है.


यह एक किस्म का रिकॉर्ड ही होगा कि पीएम नवाज़ शरीफ़ अपने देश में छठवीं बार सेनाध्यसक्ष की नियुक्ति करेंगे. पीएम के नजदीकी सहयोगियों और वरिष्ठ सेनाधिकारियों का मानना है कि सेनाध्यक्ष पद के लिए इस बार मुख्य रूप से चार दावेदार मैदान में हैं. इनमें लेफ्टिनेंट जनरल जावेद इकबाल रामदे को वजीर-ए-आज़म की पसंद माना जा रहा है. अन्य दावेदारों में जनरल स्टाफ़ के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल ज़ुबैर हयात, मुल्तान में कमांडिंग ऑफीसर लेफ्टिनेंट जनरल अश्फाक़ नदीम अहमद और सेना के प्रशिक्षण एवं मूल्यांकन इकाई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल क़मर जावेद बाजवा शामिल हैं.


हालांकि ज़रूरी नहीं है कि नया सेनाध्यक्ष इन्हीं में से किसी एक को चुना जाए लेकिन इतना तय है कि वह निवर्तमान राहिल शरीफ़ और नवाज़ शरीफ़ की मिली-जुली पसंद होगा. नए सेनाध्यक्ष के सामने चुनौतियां भी विकट होंगी क्योंकि भारत के साथ पाकिस्तान के अच्छे-बुरे रिश्ते सेनाध्यक्ष पर ही निर्भर हैं. एक तरफ़ तो नया सेनाध्यक्ष बलूचिस्तान की समस्या समेत पाकिस्तान के अन्य अंदरूनी ख़तरों ख़त्म करना चाहेगा, दूसरी तरफ उसे अफ़गानिस्तान, ईरान और अमेरिका के साथ असहज हुए रिश्तों को सहज बनाना होगा. मौजूदा हालात में उसके सामने जिहादी गुटों के सेना के ख़िलाफ़ न जाने देने की चुनौती भी है.


इस वक़्त पाकिस्तान के आर्थिक हालात बहुत ख़राब हैं. इन मुश्किल हालात में पाक का नया सेनाध्यक्ष भारत के साथ रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहेगा. अगर सीमा पर हालात क़ाबू से बाहर हुए तो उसके लिए संभलना बड़ा मुश्किल हो जाएगा. पाक के लिए रोशनी की किरण यह है कि तख्तापलट के इतिहास वाले हमारे अस्थिर पड़ोसी देश में इस बार शांतिपूर्ण ढंग से नया सेनाध्यक्ष चुन लिया जाएगा. इससे वहां 100 में से कुछ फ़ीसदी ही सही, लोकतंत्र ज़रूर मजबूत होगा.


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