उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव दो चरण में होंगे. पहले चरण की वोटिंग 4 मई और दूसरे चरण के लिए 11 मई को मतदान होगा. इसके परिणाम 13 मई को घोषित किए जाएंगे. यूपी का यह निकाय बहुत खास है क्योंकि भाजपा ने इसमें अपने 350 से ज्यादा सीटों पर मुसलमानों को टिकट दिया है. बीजेपी ने 5 नगर पालिका अध्यक्ष और 35 नगर पंचायतों के चेयरमैन का टिकट मुस्लिमों को दिया है. पूर्व के चुनाव में बीजेपी मुस्लिमों को टिकट देने से परहेज करती आयी है. इसको एक तरीके से सियासी प्रयोगों की परीक्षा कहा जा रहा है. ऐसे में सवाल है कि भाजपा ऐसा क्यों कर रही है? वह ऐसा करके क्या संदेश देना चाहती है. इसके पीछे उसकी क्या रणनीति है?


दरअसल, प्रयोग करने में इससे बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता है क्योंकि यह स्थानीय चुनाव है. जमीन पर आप की क्या हैसियत है इसे वो चेक करना चाहती है. क्या आपका जो पारंपरिक वोटर रहा है, हिंदुत्व का स्टैंड रहा है. क्या उसको बदलकर के मुसलमान आपकी तरफ आया है कि नहीं ये देखे जाने की कोशिश है.  मुझे लगता है कि इसमें कोई दिक्कत नहीं है. चूंकि इससे असेसमेंट मिलेगा, ग्राउंड रियलिटी क्या है यह पता चल जाएगा. हमेशा प्रयोग करते रहना चाहिए. चूंकि यह नागरिक चुनाव है और इससे ज्यादा कुछ सियासी तौर पर नफा-नुकसान नहीं होना है. यह बहुत ही उपयुक्त है और मुझे लगता है कि रणनीति के हिसाब से बहुत अच्छा किया है. अगर बीजेपी इसमें सफल हो जाती है तो निश्चित तौर पर बीजेपी कोशिश करेगी एक बड़े बदलाव लाने की जब लोकसभा चुनाव आएगा.

बीजेपी को 2019 में और 2014 में अपार सफलता मिली है. भाजपा लगातार यूपी में बड़े मार्जिन के साथ जीतती आ रही है. दिल्ली यानी केंद्र में उसकी सरकार है. अंग्रेजी में एक कहावत है कि यू नेवर चेंज सक्सेस फार्मूला यानी जिस फार्मूले से आपको सफलता मिल रही है, उसे बदलने की जरूरत नहीं है. यू नेवर चेंज योर विनिंग टीम. ये सारी बातें बहुत पुरानी है लेकिन फिट बैठती है. 2014 से बड़ी जीत के साथ नरेंद्र मोदी जी इस देश के प्रधानमंत्री बने हैं और बहुमत का एक बहुत बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश से आता है. हां, लेकिन ये बड़ा सवाल हो सकता है कि अगर भाजपा अपने इस राजनीति में सफल रही तो क्या वो कोई बड़ा बदलाव करेगी या नहीं. भाजपा यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि प्रधानमंत्री ने सबका साथ और सबका विकास का नारा दिया है. मुसलमान अपने आप को इससे अलग नहीं समझें. ये संदेश देना चाहती है कि देश भर में बीजेपी को लेकर मुसलमानों की सोच है कि भाजपा उनके खिलाफ है. ऐसा नहीं है. वे इस सोच से बाहर निकलें. इसलिए ये नारा भी दिया गया था कि सबका साथ, सबका विकास. अब ये कितना सफल होगा या हुआ है ये तो समय ही बता सकता है. लेकिन जो मैसेज देने की कोशिश है वो यही हम सब साथ हैं, अलग नहीं हैं.

चूंकि भाजपा की जो अब तक विनिंग फॉर्मूला रही है. उससे 2014 में भी बड़ी सफलता मिली थी. उसी फार्मूले पर 2019 में सफलता मिली. तो ऐसे में वो इसलिए इसे बदलने की कोशिश करेंगे. बीजेपी जब अपने अंतर्मन में सोचेगी, बैठक करेगी, चिंतन करेगी तब उसको सोचना होगा. दूसरी एक और जो बड़ी है वो यह कि यूपी में योगी आदित्यनाथ एक बहुत बड़े हिंदुत्व हार्डलाइन पॉलिटिक्स करने वाले नेता रहे हैं. वो एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री बन गए हैं. ऐसे में मुसलमानों को साथ लाना और योगी के लीडरशिप को देखते हुए यह अपने आप एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा. इन सब चीजों पर भाजपा जब मंथन करेगी तब यह निकल कर सामने आएगा की वो क्या करेगी. अगर क्रिटिक्स ये कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा मुसलमानों को टिकट देने से परहेज करेगी तो वो ठीक ही कर रहे  हैं. मैं भी इस बात से समर्थन रखता हूं. चूंकि जो फार्मूला उनको बार-बार और बड़ी सफलता दे चुका है तो वो उसे क्यों बदलेंगे.  


ऐसा करने के पीछे का मकसद सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के अंदर खुद को स्थापित करना. उनके मन में जो पारंपरिक तौर पर भाजपा की छवि को लेकर जो आभामंडल बनी है. उसे कहीं न कहीं 2024 से पहले तोड़ने की कोशिश की जा रही. और यह एक तरीके से टेस्टिंग ग्राउंड भी है भाजपा के लिए कि ऐसा करने से वाकई आपको कोई सफलता मिलती है या नहीं. ये सारे कैल्कुलेशन भाजपा को देखने होंगे. इसमें वे सफल भी हो सकते हैं या फिर उनके दाव उल्टे भी पड़ सकते है.

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]