पैगंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाली बीजेपी की पूर्व प्रवक्त नुपुर शर्मा को निलंबित करने के बाद भी इस्लामिक मुल्कों का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ है और वे भारत से माफ़ी मांगने की ज़िद पर अड़े हुए हैं.खाड़ी देशों के तेवरों से लगता नहीं कि वे इतनी जल्द मान जाएंगे.कहना गलत नहीं होगा कि  बीजेपी की घरेलू राजनीति ने विदेश नीति पर बड़ी चोट कर दी है और सियासी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि सत्तारूढ़ पार्टी की एक प्रवक्ता के बयान की अंतराष्ट्रीय स्तर पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है.इसलिये सवाल उठ रहा है कि नुपूर शर्मा के एक गैर जिम्मेदाराना बयान ने क्या भारत की 'घेराबंदी' करा दी है?


वैसे तो अरब देशों से भारत के संबंध हमेशा से मधुर रहे हैं. लेकिन उनकी नाराजगी हमारे लिए कितने मायने रखती है और भारत को कितना नुकसान हो सकता है,इसकी गंभीरता को समझना होगा. कमान से निकला तीर और जुबान से निकला शब्द कभी वापस नहीं आता,इसका थोड़ा-सा भी अहसास अगर नुपूर शर्मा को होता,तो आज मोदी सरकार को छोटे-छोटे देशों को न तो कोई सफाई देनी पड़ती और न ही इतनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ती.


खाड़ी के देशों में लाखों की संख्या में भारतीय काम करते हैं. भारतीय कामगारों में हिन्दू आबादी भी बड़ी संख्या में है. अकेले संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई में ही 35 लाख भारतीय काम करते हैं.यह तादाद यूएई की कुल आबादी का 30 फ़ीसदी है. इसी तरह से सऊदी अरब में भी लाखों की संख्या में भारतीय काम करते हैं.वे हर साल अरबों डॉलर भारत को भेजते हैं,जो हमारी अर्थव्यवस्था की एक मजबूत रीढ़ है.


न्यूज़ चैनल की उस डिबेट में शामिल होने से पहले अगर नुपूर शर्मा ने थोड़ा भी 'होम वर्क 'किया होता या फिर अपने प्रधामनंत्री के दिये पुराने भाषणों पर ही गौर किया होता,तो वे अपनी आपत्तिजनक टिप्पणी करने से पहले सौ बार सोचतीं कि इसके कितने गम्भीर नतीजे हो सकते हैं.


अक्टूबर, 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दौरे पर गए थे. इसी दौरे में उन्होंने 'अरब न्यूज़' को 29 अक्टूबर को एक इंटरव्यू दिया था.उसमें पीएम मोदी ने कहा था कि इस इलाके में भारत के 80 लाख लोग रहते हैं. ये लाखों भारतीय यहाँ से अरबों डॉलर कमाकर भारत भेजते हैं. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल विदेशों में बसे भारतीयों ने 87 अरब डॉलर भारत भेजे थे और इसमें खाड़ी के देशों में काम कर रहे भारतीयों का योगदान 45 फीसदी से ज़्यादा था.


वैसे तो दर्जनभर से ज्यादा देशों ने बीजेपी के दोनों पूर्व प्रवक्ताओं के बयान पर गहरा ऐतराज जताया है लेकिन क़तर ने इस मामले में भारत सरकार से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने को कहा है.क़तर ने ये मांग भी उस वक़्त की,जब भारत के उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू अपनी तीन दिवसीय यात्रा पर दोहा पहुंचे हुए थे.कुछ खबरों के मुताबिक़, नूपुर शर्मा विवाद खड़ा होने के बाद नायडू के सम्मान में आयोजित डिनर को भी रद्द कर दिया गया.लेकिन इसके बाद भी भारत सरकार इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में है.ऐसे में सवाल उठता है कि भारत सरकार के लिए कतर का एतराज इतना अहम क्यों है?


भारत और कतर के रिश्तों पर नज़र डालें तो दोनों देशों के बीच मजबूत व्यापारिक और राजनयिक रिश्ते हैं. साल 2021-22 में दोनों देशों के बीच 15 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का व्यापार हुआ है.भारत की तेल एवं गैस से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने में क़तर एक अहम भूमिका निभाता है.
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने दोहा में एक कार्यक्रम के दौरान बताया कि 'क़तर में 15 हज़ार से ज़्यादा भारतीय कंपनियां पंजीकृत हैं. और फिलहाल दोनों देशों के बीच व्यापार में तेल क्षेत्र की मुख्य भूमिका है लेकिन इसमें विविधता लाने की ज़रूरत है.'


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साल 2016 में अपने दोहा दौरे के दौरान क़तर को अपना दूसरा घर बता चुके हैं. दोनों देशों के बीच रिश्ते कितने गहरे हैं, इसकी बानगी साल 2017 के सऊदी अरब-क़तर संकट के दौरान देखने को मिली थी.तब सऊदी अरब, मिस्र, बहरीन, यमन, लीबिया और संयुक्त अरब अमीरात ने कतर के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए थे.इस मौके पर भारत के लिए असहज स्थिति पैदा हो गयी थी क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए क़तर पर निर्भर है.


लेकिन इसके बाद साल 2021 में कतर ने अंतरराष्ट्रीय पटल पर जोरदार भूमिका निभाई. अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता कतर की राजधानी दोहा में ही आयोजित हुईं.कुछ खबरों के मुताबिक, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के दौरान भारत और तालिबान अधिकारियों के बीच मुलाक़ात भी दोहा में ही हुई थी.


ऊर्जा सुरक्षा के मामले में भी देखें,तो हम खाड़ी के देशों पर ही निर्भर हैं. साल 2019 में सऊदी दौरे पर गए पीएम मोदी ने कहा था कि भारत 18 फीसदी कच्चा तेल और अपनी जरूरत की 30 फीसदी एलपीजी सऊदी अरब से ही आयात करता है. इसके अलावा इराक और ईरान से भी भारत तेल आयात करता है. भारत अपनी जरूरत का कुल 80 फीसदी तेल विदेशों से आयात करता है. यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है,जबकि सऊदी अरब चौथा.
ऐसे में,मजहबी जुनून और हिंदू-मुस्लिम के एजेंडे को अलग रखकर ये सोचने-समझने की जरूरत है कि अगर इन देशों की नाराजगी जल्द दूर नहीं हुई ,तो उससे भारत को क्या नुकसान हो सकता है.


विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि हमारी घरेलू राजनीति का प्रतिबिंब विदेश नीति पर भी पड़ता है. लाखों की संख्या में जो भारतीय खाड़ी के देशों में काम कर रहे हैं, उनकी रोज़ी-रोटी पर यह राजनीति असर डालेगी. कई नियोक्ता भारतीयों को नौकरी देने से इनकार करेंगे. अरब देशों की नाराजगी से भारत को जो नुकसान होगा, वह बहुत भारी पड़ेगा.इस राजनीति से भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा. खाड़ी के देशों में अभी से ही भारतीय सामानों के बहिष्कार का अभियान चलने लगा है.




(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)