दिसंबर 2022 से जी-20 शिखर सम्मेलन का अध्यक्ष देश होने के नाते भारत ने न केवल फलदायी शिखर सम्मेलन सुनिश्चित करने का काम किया है, बल्कि इस आयोजन से  अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को नई दिशा मिली है.अध्यक्षता खत्म होते होते भारत के सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 60 शहरों में 220 से अधिक बैठकें हो चुकी  हैं और लगभग 125 देशों के 1 लाख से अधिक प्रतिभागियों ने भारत का दौरा किया है. जी-20 वैश्विक बाजार के एक महत्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, इसके सदस्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत और दुनिया की दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. शिखर सम्मेलन भारत के लिए महत्वपूर्ण व्यापार और निवेश के अवसरों को खोल सकता है,  इस आयोजन में अर्थव्यवस्था के आधार पर दुनिया की 10 बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल थीं. यह शिखर सम्मेलन तब हुआ है जब भारत विकास के एक दिलचस्प चरण में है और चीन सहित अधिकांश देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है.


भारत की दुनिया में होगी आर्थिक साझेदारी 


शिखर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य में दुनिया भर के प्रमुख विकसित व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच सामूहिक आर्थिक गतिविधियां बढ़ाना रहा है. जैसे-जैसे इस आयोजन में हुए निर्णय मूर्त रूप लेंगे भारत को महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदारी शुरू करने और नए व्यापार अवसर पैदा करने में मदद करेंगे जो वैश्विक बाजार विस्तार व मेक इन इंडिया की महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ावा देंगे. वैश्विक नेताओं का भारत की आर्थिक क्षमताओं में बढ़ता विश्वास देश को एक पसंदीदा व्यापार भागीदार बनने और अपने माल और सेवाएँ की वैश्विक मांग को पूरा करने के अपने लक्ष्य को साकार करने में मदद करेगा. भारत ने खुद को जलवायु नीतियों के ध्वजवाहक के रूप में इस आयोजन में स्थापित किया है, आत्मविश्वास से भरपूर भारतीय उद्योग जगत अब विश्व स्तर पर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेगा.


इस आयोजन में प्रमुख रूप से मैन्युफैक्चरिंग, तकनीति, रेलवे, एविएशन, इंफ्रा व ग्रीन एनर्जी पर चर्चा हुई है, वहीं इस आयोजन से देश की हॉस्पिटैलिटी सेक्टर को भी फायदा मिलने की उम्मीद है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक गलियारा (आईएमईई ईसी) स्थापित करने के लिए एक समझौता हुआ है. यह अपनी तरह का पहला आर्थिक गलियारा होगा, जिसमें भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका शामिल हैं. अभी तक चीन के मुकाबले हमारे देश के उत्पाद लागत के मामलों में ज्यादा होते हैं. अब इस कॉरिडोर के बन जाने के बाद हम उनसे प्रतिस्पर्धा करने में आगे होंगे.इस कॉरिडोर के बनने से ट्रांसपोर्टेशन चार्ज 40 फीसदी तक घट जाएगा.जिसका सीधा लाभ भारतीय व्यापार जगत को मिलेगा.



IMEC गलियारे से होगा भारत को लाभ


इस आर्थिक कॉरिडोर के बनने से भारत से व्यापार करने में समय की बचत होने के साथ ही आर्थिक रूप से भी मजबूती मिलेगी.इस कॉरिडोर के जरिए शिपिंग और रेलवे लिंक समेत कनेक्टिविटी और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर एक ऐतिहासिक पहल की गई है. कॉरिडोर का काम पूरा होने के बाद आयात-निर्यात के काम में लगने वाले भाड़े में कमी से माइक्रो, स्माल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज को भरपूर लाभ होगा और इनका कारोबार भी तेजी से बढ़ेगा. तमाम प्रयासों व अवसरों के साथ ही हमारे सामने कई चुनौतियां हैं,  मेक इन इंडिया अभियान 25 सितम्बर को नौ वर्ष पूरा कर रहा है फिर भी, यह विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में विफल रहा है  और रोजगार में अपेक्षित सहयोग नहीं दे पा रहा. साथ ही स्वरोजगार को बढ़ावा देने के तमाम प्रयासों के बावजूद बेरोजगारी के स्तर ने 4 दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. यह रातोंरात नहीं हुआ है.



किसी कंपनी का बंद होना, मतलब हज़ारों लोगों का रोज़गार जाना, फोर्ड, जनरल मोटर्स, मैन ट्रक्स, फ़िएट, हार्ले डेविडसन और यूएम् मोटरसाइकिल  इन सभी कंपनियों ने पिछले पांच सालों में भारतीय बाजार से बाहर निकलने का फैसला किया है. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर एसोसिएशन का कहना है कि इन निकासों के परिणामस्वरूप 65,000 छंटनी हुई और डीलर के निवेश को 2,500  करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.विनिर्माण क्षेत्र, बड़ी मात्रा में कागजी कार्रवाई, श्रम, भूमि या पर्यावरण मंजूरी हो, कठिन नियमों और नीति से विवश है. कराधान और सीमा शुल्क की नीतियां इस हद तक पेचीदा हैं कि घरेलू उपकरणों के निर्माण के बजाय चिकित्सा उपकरण जैसी चीजों का आयात करना सस्ता है. 


2021 में आईडीसी की एक रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग 74% उद्यमों में अभी भी कौशल की कमी है, जो समग्र नवाचार में बाधा डालता है. यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में भारत 191 देशों में से 132वें स्थान पर है, जो चिंताजनक है. एक ओर भारत में कंपनियां कुशल कार्यबल की भारी कमी का सामना कर रही हैं तो वहीं दूसरी ओर, देश में लाखों शिक्षित बेरोजगार हैं. वर्तमान में, भारत में केवल 45% प्रशिक्षित व्यक्ति ही रोजगार के योग्य हैं और केवल 4.69% कार्यबल व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ उपलब्ध है, यह आंकड़े यह दर्शाते हैं कि कौशल को लेकर देश में भारी अंतर है. आने वाले समय में, वैश्विक कामकाजी आबादी का 25% हिस्सा भारत से आएगा. ऐसे में जब तक हम अपनी युवा जनसांख्यिकी को स्किल, री-स्किल और अप-स्किल नहीं करेंगे तब तक हम अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर पाएंगे. चूंकि आज एआई का उपयोग सभी क्षेत्रों में फैल रहा है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि युवाओं को कोडिंग, एआई, रोबोटिक्स, आईओटी, 3डी प्रिंटिंग और ड्रोन पर आधारित पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित किया जाए. आज हमारे युवाओं को वर्क रेडी नहीं बल्कि वर्ल्ड रेडी रहने की जरूरत है.


भारत के पास है बेहद अहम अवसर


जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद अब भारत के पास आर्थिक सफलता की विरासत स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है और उसके पास ऐसे मित्र हैं जिन पर वह समर्थन के लिए भरोसा कर सकता है.भारत के घरेलू उद्यमी और एक बड़ी मध्यम वर्ग की आबादी इसे अन्य बड़े देशों पर प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त देती है.हमें अब अपना ध्यान बुनियादी हिस्से पर केंद्रित करने की आवश्यकता होगी.भारत भविष्य में खुद को अगला ‘वैश्विक कारखाना’ बना सकता है जो वैसे भी चीन से तंग आ चुका है और वैकल्पिक मैन्युफैक्चरिंग हब की तलाश कर रहा है.आवश्यकता है बोझिल नियमों से विनिर्माण क्षेत्र मुक्त किया जाए.वर्तमान में, भारत विश्व की पाचंवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2030 तक एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में जापान से आगे निकलने की संभावना है, जाहिर है भारत के पास आराम करने का समय नहीं है.




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