नयी दिल्लीः पांच बार बिहार की सत्ता संभाल चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों में लड़कियों को 33 फीसदी आरक्षण देकर सत्ता की एक नई इबारत लिख दी है. बिहार अब देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहां लड़कियों को यह सौगात मिली है.नीतीश सरकार 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ' के स्लोगन से आगे जाकर दावे से कह सकती है कि अब अपनी बेटियों को डॉक्टर,इंजीनियर भी बनाओ. नीतीश सरकार के इस फैसले की तारीफ़ इसलिये भी होनी चाहिए कि जो बिहार अब तक देश को आईएएस व आईपीएस देने में अव्वल रहा है,वही आने वाले सालों में डॉक्टर व इंजीनियर देने में भी ऊपरी पायदान पर आ सकता है. फिलहाल बिहार की छात्राओं को डॉक्टर-इंजीनियर बनने के लिए अन्य राज्यों का रुख करना पड़ता था.


वैसे राजनीति चाहे जितने रंग बदलती रहे लेकिन सत्ता की कुर्सी पर बैठे नेता के संकल्प मजबूत हों व इरादे नेक हों, तो उसके हाथों कुछ काम ऐसे हो ही जाते हैं, जिन्हें आने वाली पीढ़ियां भी याद रखती हैं. राजनीति में आने से पहले खुद नीतीश कुमार भी इंजीनियर रहे हैं. उन्होंने साल 1972 में पटना इंजीनियरिंग कॉलेज (जो अब एन आई टी,पटना है) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी. उसके बाद उन्होंने कुछ अरसा बिहार इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी भी की. लेकिन समाजवादी सोच वाले नीतीश को भला नौकरी कैसे भाती, सो उन्होंने जेपी आंदोलन में कूदकर सियासत की राह पकड़ ली. जेपी के बाद राम मनोहर लोहिया,एस एन सिन्हा और कर्पूरी ठाकुर की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इस निर्णय से यह साबित कर दिखाया कि वे इस राह से अभी भटके नहीं हैं.


अच्छी बात यह है कि मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों में 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण वाला यह नियम 2021 से ही लागू हो जायेगा. स्टेट कोटे के तहत बिहार में एमबीबीएस की 1070 सीटें हैं. इसमें से अब 33 प्रतिशत सीटें लड़कियों के लिए आरक्षित रहेंगी. अब 1070 सीटों में से करीब-करीब 353 सीटें लड़कियों के लिए आरक्षित हो गयी हैं. मसलन, पटना मेडिकल कॉलेज में स्टेट कोटे के तहत 165 सीटें हैं. इसमें से अब करीब 54 सीटों पर लड़कियों का एडमिशन होगा.


वैसे बिहार के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस और बीडीएस की कुल 1330 सीट हैं. 200 सीट ऑल इंडिया कोटा के तहत हैं जबकि 30 सीटें केंद्रीय नॉमिनेडेट हैं और स्टेट कोटे के 85 प्रतिशत हिस्से में 1100 सीट हैं. राज्य की 1100 सीट में से 30 सीट डेंटल और 1070 सीट एमबीबीएस की हैं.


इसी तरह से राज्य के 38 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी 33 प्रतिशत लड़कियों के लिए सीटें आरक्षित रहेगी. लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेजों में लड़कियों की संख्या काफी कम है.पिछले सत्र मे पांच से 10 प्रतिशत सीटों पर ही लड़कियों का एडमिशन हुआ है. लड़कियों के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित रहने से बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों में लड़कियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी. करीब 40 प्रतिशत से अधिक सीटों पर लड़कियों का एडमिशन होगा. अभी बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों में 9,365 सीटें हैं.


कुल मिलाकर इस फैसले से आने वाले पांच सालों में देश के चिकित्सा व इंजीनियरिंग जगत की तस्वीर कुछ ऐसी बदलती दिखेगी जिसमें देश की आधी आबादी की पर्याप्त मौजूदगी रहेगी.