National Herald Case: देश की सियासत में इस वक्त ऐसा क्यों हो रहा है और इसके पीछे छुपे मकसद को समझने से पहले जरा समझते हैं,उस इतिहास को जो तीन सदियों पुराना है. इसे दुनिया के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी क्रांति माना जाता है और वो है- फ्रांस की क्रांति. फ्रांस के इतिहास में राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल का 10 साल लंबा यानी 1789 से 1799 तक ऐसा दौर चला, जिसने वहां के लोगों को राजशाही से मुक्ति दिलवाई.


उस वक़्त के दार्शनिकों-लेखकों ने भले ही लोगों को क्रांति के लिए सीधे तौर पर नहीं उकसाया लेकिन उन्होंने अपनी लेखनी के जरिये बता दिया था कि वे सत्ता के चापलूस नहीं बल्कि उनकी ही आवाज को कलम देने वाले मामूली-से कलमकार हैं.उनमें ही एक बड़ा नाम था- उस वक़्त के महान लेखक व दार्शनिक रूसो का. रूसों ने अपनी पुस्तक “एमिली”, “सोशल कॉन्ट्रैक्ट” व “रूसोनी” के माध्यम से एक मनुष्य की आज़ादी की बात पर ही सबसे ज्यादा जोर दिया था. उसने सवाल उठाया था कि एक मनुष्य स्वतंत्र पैदा होते हुए भी आखिर सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ क्यों रहता है?


शायद आपको लगेगा कि रूसो ने तीन सदी पहले ऐसा नया क्या कह दिया था, कि जिसका हमें इहलाम ही न हो. तो उसी रुसो की लिखी इस बात को पढ़ते हुए जरा गहराई से सोचें और खुद ही तुलना करें कि राजशाही बनाम लोकतंत्र में क्या फर्क होना चाहिए. रूसो ने कहा था, "सामूहिक इच्छा से बने राज्य का यह अनिवार्य और सार्वभौम कर्तव्य है कि वह सारे समाज को सर्वोपरि मानते हुए अपने कार्य को संचालित करे. जिन लोगों को कार्यपालिका की शक्ति सौपीं गई है, वे जनता के स्वामी नहीं, उसके कार्यकारी है और उनका कर्तव्य जनता की आज्ञा का पालन करना है." आप समझ सकते हैं कि कार्यपालिका का मतलब संसद और विधायिका से है.


उनका तो ये भी दृढ़ विश्वास था, "सार्वभौम सत्ता जनता की इच्छा में निहित है जिसे “सामान्य इच्छा” (General Will) कहा गया है.राज्य के कानून को इसी सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति प्रकट करना चाहिए लेकिन कानून का स्वरूप ऐसा नहीं रह गया है, बल्कि यह शासक की इच्छा पर निर्भर रहने लगा है." हैरानी नहीं तो और क्या होगा कि जो बात तीन सदी पहले फ्रांस के एक लेखक ने लिखी,वहीं आरोप राहुल गांधी की ईडी के सामने हो रही पेशी को लेकर आज कांग्रेस भी लगा रही है कि अब यहां कानून का राज नहीं रह गया है, बल्कि सरकार जो चाहती है,वहीं जांच एजेंसियां करती हैं, जो उसकी HMV यानी हिज मास्टर्स वॉइस बनी हुई हैं. लेकिन हम नहीं जानते कि नेशनल हेराल्ड केस में कितना सच है और कितना झूठ क्योंकि इसका फैसला मीडिया ट्रायल से नहीं होगा, बल्कि देश की अदालतें ही इसका अंतिम निर्णय देंगी.


कानूनी बातों से दीगर राजधानी के सियासी गलियारों में चल रही बातों का अगर जिक्र करें, तो फिर ये कहना पड़ेगा कि राहुल गांधी से हो रही पूछताछ तो सिर्फ ट्रेलर है.असली फ़िल्म का नजारा तो सोनिया गांधी की पूछताछ के वक़्त देखने को मिलेगा. ईडी ने उन्हें 23 जून को पूछताछ के लिए बुलाया है लेकिन वे फिलहाल दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती हैं, जहां उनके कोरोना संक्रमण का इलाज चल रहा है. लेकिन जब तक डॉक्टर उन्हें डिस्चार्ज नहीं करते और ऐसी पूछताछ के लिए जाने की इजाजत नहीं देते, तब तक ईडी उन्हें जबरदस्ती तो बुला नहीं सकता.


कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का एक आरोप ये भी है कि राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले विपक्षी नेताओं को लंबी पूछताछ के लिए बुलाकर सरकार विपक्ष को डराने-धमकाने की कोशिश कर रही है. राष्ट्रपति का चुनाव 19 जुलाई को है  लेकिन इस बार एनडीए को अपना उम्मीदवार जिताने के लिए दो क्षेत्रीय दलों का मुंह ताकना पड़ रहा है, जो उसके सहयोगी नही हैं. एक,आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगह मोहन रेड्डी तो दूसरे ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक. इनमें से कोई एक भी साथ आ गया, तो एनडीए की जीत तय है.


लेकिन सियासी गलियारों में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि इस चुनाव से पहले विपक्षी दलों के कुछ सांसद-विधायक किसी मामले के चलते जेल की सलाखों के पीछे न चले जाएं, तो उसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. इसलिये कि तब वे राष्ट्रपति चुनाव में वोट देने के हकदार नहीं बन पाएंगे. ये प्रयोग पिछले दिनों हुए महाराष्ट्र के राज्यसभा चुनाव में हो चुका है, जब जेल में बंद वहां के मंत्री नवाब मालिक को वोट देने की इजाजत नहीं मिली थी. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि 6 साल तक केंद्र की सत्ता में रही वाजपेयी सरकार ने कभी गांधी परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ किसी पुराने केस की कोई फ़ाइल खुलवाई क्या? 10 साल तक मनमोहन सिंह की सरकार ने अटल-आडवाणी समेत बीजेपी के बाकी दिग्गज़ नेताओं के परिवार के सदस्यों का कच्चा चिट्ठा खुलवाने में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी क्या?


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