दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मुल्क होगा, जहां अपने विरोधी को मारने के बाद उसकी लाश को जलाने या दफनाने न दिया जाये. लेकिन अफगानिस्तान के तालिबानी लड़ाकों ने 20 साल बाद फिर से ये कारनामा कर दिखाया है और इसके जरिये दुनिया को ये पैगाम देने की कोशिश है कि वे अब भी खून के उतने ही प्यासे हैं,जितने पहले हुआ करते थे. पूरे अफगानिस्तान में पंजशीर घाटी ही एकमात्र ऐसा इलाका बचा हुआ था,जिसे कब्जाने के लिए तालिबान को दिन में ही तारे नज़र आ रहे थे.लेकिन अब वहां से एक बेहद खौफनाक खबर आई है,जो तालिबान के असली चेहरे का सबसे बड़ा सबूत है और जो ये भी बताता है कि वो अपनी उसी पुरानी औकात पर उतर आया है.


एक चर्चित विदेशी न्यूज़ एजेंसी ने बताया है कि अफगानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह के भाई को तालिबान ने उसी पंजशीर में मौत के घाट उतार दिया है.सालेह वो शख्स हैं जिन्होंने अपने लड़ाकू साथियों के साथ मिलकर  तालिबान के खिलाफ डटकर मोर्चा संभाला हुआ था,ताकि वे कब्ज़ा न कर सकें. लेकिन शुक्रवार की देर रात आई इस खबर की असलियत जब सामने आयेगी, तो पाकिस्तान व चीन को छोड़ सारे मुल्क हैरान व परेशान होते दिखाई देंगे. न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने दावा किया है कि पंजशीर पर अपना कब्जा करने के बाद अमानुल्लाह सालेह के भाई रूहुल्लाह अज़ीज़ी को तालिबानी लड़ाकों ने बेहद बेरहमी से मार डाला.


दरअसल,अज़ीज़ी के भतीजे एबदुल्लाह सालेह ने शुक्रवार को इस न्यूज़ एजेंसी को एक टेक्स्ट मेसेज भेजकर इस खौफनाक वाकये की जानकारी दी है.इसमें उन्होंने लिखा है, "तालिबानी लड़ाकों ने कल (गुरुवार को) मेरे अंकल को मार डाला और अब वे हमें उन्हें दफ़नाने भी दे रहे हैं.कहते हैं कि इनकी लाश ऐसे ही सड़ती रहेगी." इस मैसेज के आधार पर ही न्यूज़ एजेंसी ने ये खबर जारी की है,जिसका मतलब ये भी है कि तालिबान ने अब पंजशीर पर भी अपना कब्जा कर लिया है.


अकेली इस वारदात से समझा जा सकता है कि तालिबानी सरकार के इरादे क्या हैं और वो किस रास्ते पर आगे बढ़ने वाली है.वहां अब ऐसी हुकूमत है जिसकी बुनियाद ही उस मज़हबी कट्टरपंथ की है,जो अपने दुश्मन को दुर्दांत तरीके से मारने में अपना फ़ख्र समझती है.इसलिये भारत में भी राजनीति से जुड़े जो नेता ये सवाल उठा रहे हैं कि क्या भारत इस तालिबानी सरकार को मान्यता देगा,तो इस एक वाकये ने उसका जवाब दे दिया है.लिहाज़ा,फिलहाल मोदी सरकार की 'वेट एंड वॉच' वाली नीति का समर्थन करते हुए खामोशी अख्तियार कर लेनी चाहिए क्योंकि इसी में पूरे देश की भलाई है.


वैसे ओसामा बिन लादेन द्वारा खड़े किए गए खूंखार आतंकी संगठन अल कायदा के साथ मिलकर तालिबान आगे क्या तबाही मचा सकता है,इसे लेकर तमाम तरह की शंकाएं हैं. लेकिन ब्रिटेन की सुरक्षा एजेंसी MI 5 के प्रमुख केन मैक्कलम ने जिस तरह से आगाह किया है,वह भारत के लिए भी एक बड़ी चेतावनी है,जिसमें भविष्य में आने वाले बड़े खतरे का इशारा है. उन्होंने एक इंटरव्यू में चेतावनी दी है कि "तालिबान के सत्ता में आने के बाद अल-क़ायदा जैसे आतंकी समूह अब और भी बड़े व खतरनाक हमले की साजिशें बना सकते हैं.ब्रिटेन समेत दुनिया के और कई देशों के लिए बड़ी चिंता ये भी है कि इस बार ऐसे आतंकी संगठनों की योजनाएं पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हो सकती हैं."


मैक्कलम ने ये भी कहा है कि "अफ़ग़ानिस्तान में जो हुआ, उसने कई आतंकी समूहों के हौंसले बढ़ा दिए हैं और ऐसी आशंका है कि वे एक बार फिर एकजुट हो जाएंगे. इसलिये अमेरिका में 9/11 की तरह के सुनियोजित और बड़े पैमाने पर होने वाले हमलों का ख़तरा मंडरा रहा है." उन्होंने साफगोई के साथ ये भी माना है कि जिस तरह तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किया, उससे ब्रिटेन में भी आतंकी गुटों को और "मज़बूती मिल सकती है".


हालांकि तालिबान और आतंकवाद के बीच चोली-दामन का जो रिश्ता है,उससे सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र भी चिंतित है.संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुटरेश ने भी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार और आतंकवाद के बीच संबंध को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर की है.एक समाचार एजेंसी  को दिए इंटरव्यू में उनसे पश्चिमी अफ्रीका के साहेल इलाक़े में अफ़गानिस्तान जैसे ख़तरों के बारे में पूछा गया था, जहां इस्लामी समूह विद्रोह कर रहे हैं.उसके जवाब में गुटरेश मे कहा कि "इस बात का ख़तरा अवश्य है कि कुछ आंतकी समूह, जो हुआ है उससे प्रेरणा लेकर वो सब कर सकते हैं जिसके बारे में कुछ महीनों पहले तक हमने सोचा भी नहीं था." उन्होंने ये भी कहा कि वह उन कट्टर समूहों के बारे में चिंतित हैं जहां सिर्फ मौत की कामना की जाती है.


इस बीच रुस का सख्त रुख़ भी भारत की कूटनीति के लिए किसी टॉनिक से कम नहीं है.रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्रि पेस्कोव ने कहा है कि "रूस किसी भी तरह से तालिबान सरकार के उद्घाटन समारोह में हिस्सा नहीं लेगा.उनके मुताबिक, “हमें नहीं पता कि हालात कैसे बदलेंगे. इसलिए हम कह रहे हैं कि हमारे लिए ये समझना ज़रूरी है तालिबान के नेतृत्व में अफ़ग़ान सरकार का पहला और उसके बाद आगे का कदम क्या होगा.” हालांकि तालिबान को पाल-पोसकर आतंकवाद का सबसे बड़ा हथियार बनाने वाले पाकिस्तान ने अब अपने सारे पत्ते उसकी वफादारी निभाने के लिए खोल दिये हैं.नरमी के साथ कुछ धमकी भरे अंदाज़ में


पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफ़ग़ानिस्तान के प्रति "नया सकारात्मक दृष्टिकोण" अपनाने का आग्रह तो किया.लेकिन साथ ये भी कह डाला कि ' "अफ़ग़ानिस्तान को अलग-थलग करने से अफ़ग़ान लोगों, इस इलाक़े और दुनिया के लिए गंभीर परिणाम होंगे." उनके बयान से साफ है कि परोक्ष रुप से वे भारत के साथ ही रूस व ईरान को भी चेता रहे हैं.इसलिये लगे हाथ उन्होंने ये भी कह दिया कि अफ़ग़ानिस्तान के फंड को फ्रीज़ करने के फैसले से मदद नहीं मिलेगी और इस पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए.


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