2024 के चुनावों में बीजेपी की तरफ से कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप तो पहले से लगाये जा रहे थे वहीं कांग्रेस भी बीजेपी पर आरक्षण विरोधी होने के आरोपों का वार कर रही थी. लेकिन इस बीच अचानक से मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे ने तूल पकड़नी शुरु कर दी. आखिर कहां से आया ये मुद्दा और क्या हैं इसके पीछे के तथ्य?


आरक्षण पर कर्नाटक में जो बहस छिड़ी है, इसका खुलासा राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने किया है. दरअसल, राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को कर्नाटक में ओबीसी आरक्षण कोटे में अनियमितता की जानकारी मिली थी. ये जानकारी मेडिकल पीजी की 930 सीटों में से मुस्लिम वर्ग को 150 सीटों पर आरक्षण देने के बारे में थी. आयोग ने 6 महीने पहले इसकी जांच शुरू की. आयोग ने अपनी जांच में पाया कि सरकारी नौकरी, मेडिकल, इंजीनियरिंग एडमिशन और तमाम सरकारी पदों पर सीमा से अधिक मुस्लिम आरक्षण दिया गया है, जो करीब कुल सीट का 16 प्रतिशत है. इनमें मुस्लिम वर्ग के उन जातियों को भी लाभ दिया गया है जो आरक्षण के दायरे में नहीं आते. 


अब राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग इस मुद्दे को उठाकर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. ओबीसी कमीशन के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने बयान दिया है कि उन्हें लगता है कि इसमें ओबीसी वर्ग के आरक्षण कोटा में गड़बड़ी की गई है और आम ओबीसी का हक मारा गया है. उन्होंने अपने बयान में ये भी कहा कि कर्नाटक में कैटेगरी 1बी और बी2 में कुल 34 मुस्लिम ओबीसी जातियां आती हैं, लेकिन आरक्षण जो दिया है वो समूची मुस्लिम जातियों को दे दिया गया है.


उन्होंने कहा कि जब आयोग ने कर्नाटक सरकार से पूछा कि 4 प्रतिशत की जगह 16 प्रतिशत आरक्षण कैसे दिया तो उनका गोलमोल जवाब आया. आयोग अब राज्य के मुख्य सचिव को तलब कर मामले पर स्पष्टीकरण चाहता है.



कैसे बना मुद्दा?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के टोंक में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए आरोप लगाया था कि कांग्रेस पार्टी दलितों और पिछड़ों का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देना चाहती है. बाद में बिहार में अपनी रैली में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वो चाहती है कि उसका कर्नाटक का आरक्षण का मॉडल पूरे देश में लागू हो. प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्नाटक में ओबीसी समाज को आरक्षण मिलता है, जो 27 प्रतिशत का कोटा है, उसमें से चोरी करने का बहुत बड़ा खेल खेला है. 


उन्होने आरोप लगाया कि उसमें से धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देने की चालाकी की है और ओबीसी समाज की आंख में धूल झोंककर पर्दे के पीछे से खेल खेला है. रातों-रात कर्नाटक में सभी मुसलमानों को ओबीसी बना दिया. इसी के बाद से इस मुद्दे को तूल मिली.


कर्नाटक में ओबीसी आरक्षण में मुसलमानों के लिए 4 फीसदी कोटे की जो व्यवस्था तीन दशक पहले की गई थी. कर्नाटक में बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री बस्वराज बोम्मई ने 2023 में विधानसभा चुनाव से ठीक कुछ दिन पहले मुसलमानों को ओबीसी कोटे में से मिल रहे 4 प्रतिशत आरक्षण के कोटे को खत्म कर दिया था. बीजेपी सरकार के इस कदम से पहले राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षित 32 प्रतिशत कोटा में एक 4 प्रतिशत की उपश्रेणी बनाई गई थी, जिस पर सिर्फ मुसलमानों का हक था. बीजेपी ने ये कोटा लिंगायतों और वोक्कालिगा समुदाय के बीच 2-2 प्रतिशत बांट दिया था. इसके बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने तेलंगाना के लिए भी ये ऐलान किया था कि अगर बीजेपी सरकार तेलंगाना में भी बनती है तो वहां भी मुसलमानों के लिए तय 4 प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा. 


कर्नाटक में बीजेपी की तत्कालीन सरकार के मुसलमानों का आरक्षण हटाने का कांग्रेस ने विरोध किया था और वादा किया था कि कर्नाटक में सरकार बनने पर वह मुसलमानों का कोटा फिर बहाल कर देगी. बाद में बीजेपी के आरक्षण रद्द करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी और बाद में 2023 विधानसभा चुनावों के बाद कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बन गई, जिसने इस आरक्षण को फिर से बहाल कर दिया.


देश में कहां कहां है लागू मुस्लिम आरक्षण


ये मसला आरक्षण का कम सियासत का ज्यादा है. जिसमें एक तरफ कांग्रेस का मुसलमानों को अपनी तरफ खिंचने की कोशिश है तो दूसरी तरफ बीजेपी की ओबीसी वोट पर पूरी तरह अपने पाले में करने का सियासी कदम. जबकि, ये साफ है कि देश में उन्हीं मुस्लिम जातियों को आरक्षण मिलता है जो या तो केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल हैं या फिर राज्य की. समय-समय पर राज्य इन सूचियों में फेरबदल करते हैं और आरक्षण से छेड़छाड़ के बिना अन्य जातियों को इसमें शामिल कर लेते हैं. हालांकि देश में कर्नाटक समेत पांच राज्य ऐसे हैं, जहां सभी मुसलमानों को ओबीसी में शामिल किया गया है. इनमें केरल और तमिलनाडु सबसे आगे हैं. इसके अलावा तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक इस सूची में शामिल हैं. खासतौर से तेलंगाना में पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव लगातार मुस्लिमों के लिए ओबीसी की उप श्रेणी में फिक्स 4 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहते थे. 


उन्होंने विधानसभा में भी एक प्रस्ताव पास किया था, जिसे केंद्र सरकार ने नामंजूर कर दिया था. बाकी बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश राजस्थान समेत उत्तर भारत के सभी राज्यों में मुस्लिमों की पिछड़ी जातियों को ही ओबीसी कोटे के आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. समय-समय पर मुस्लिम समुदाय की पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए ओबीसी कोटे में शामिल कर लिया जाता है.


क्या है कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण का इतिहास


29 साल पहले एचडी देवेगौड़ा सरकार ने ही कर्नाटक में ओबीसी कोटा के तहत मुसलमानों के लिए आरक्षण पहली बार लागू किया था. यह निर्णय चिन्नप्पा रेड्डी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया था, जो आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करता है. रेड्डी आयोग ने मुसलमानों को ओबीसी सूची के तहत श्रेणी 2 में समाहित करने की सिफारिश की थी. इस रिपोर्ट को आधार बना कर वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 20 अप्रैल और 25 अप्रैल 1994 के एक आदेश के जरिए मुसलमानों, बौद्धों और ईसाई धर्म में परिवर्तित अनुसूचित जाति के लिए "अधिक पिछड़े" के रूप में पहचानी गई श्रेणी 2 बी में छह प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी. इसमें मुसलमानों को चार प्रतिशत और ईसाई धर्म और बौद्धों में परिवर्तित हो गए एससी के लिए दो प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था. हालांकि, आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के कारण ये लागू नहीं हो पाया.


सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर, 1994 को एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें कर्नाटक सरकार को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी समेत कुल आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित करने का निर्देश दिया गया. लेकिन इस आदेश को लागू करने से पहले ही 11 दिसंबर 1994 को वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई.


11 दिसंबर 1994 को एचडी देवेगौड़ा मुख्यमंत्री बने और 14 फरवरी 1995 को उन्होंने पिछली सरकार के आरक्षण के फैसले को सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले के मुताबिक संशोधनों के साथ लागू कर दिया. ईसाई धर्म और बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने वाले एससी समुदाय, जिन्हें पहले 2 बी के तहत वर्गीकृत किया गया था, उन्हें उसी क्रम में क्रमशः श्रेणी 1 और 2 ए में पुनर्वर्गीकृत किया गया. 2बी कोटा के तहत शैक्षणिक संस्थानों और राज्य सरकार की नौकरियों में चार प्रतिशत सीटें मुसलमानों के लिए आरक्षित रखीं.


क्या है हल


देश भर में मुसलमानों के एक अनुपात को पहले ही ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. दरअसल ओबीसी का मतलब अन्य पिछड़ा वर्ग है. यानी इसमें धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में यहां पिछड़ा वर्ग के मुस्लिमों को मिल रहे आरक्षण पर सवाल नहीं है. कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि सवाल सिर्फ इस बात पर है कि किसी भी प्रदेश के सभी मुस्लिम समुदाय आखिर पिछड़े कैसे हो सकते हैं. यह मामला कई बार कोर्ट में भी पहुंच चुका है. दलित मुसलमान भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर खुद को अनुसूचित जाति को मिलने वाले ओबीसी कोटे में शामिल किए जाने की मांग कर चुके हैं. यह मामला अभी तक लंबित है और कोर्ट का फैसला ही अब इस मसले का हल हो सकता है.


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