उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी को सोमवार यानी 5 जून को अवधेश राय हत्याकांड मामले में वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई. 32 साल पुराने इस मामले में कोर्ट ने चश्मदीदों के बयान को अहम माना और माफिया मुख्तार को सजा सुनाई. इसके साथ ही मुख्तार पर और भी कई सारे मामले चल रहे हैं, लेकिन उम्रकैद की सजा पहली बार उसे किसी कोर्ट ने सुनाई है. 


मुकदमे पर था ध्यान, चुनौतियां थीं बेशुमार 


पत्रावली में काफी उतार-चढ़ाव आया. कई बार ये पत्रावली हाईकोर्ट से स्टे हो गयी. हालांकि, सब कुछ के बाद जब भी चश्मदीद गवाहों को बुलाया गया, वे आए और वह बताया जो उन्होंने देखा. डिफेंस की तरफ से जिरह में ऐसा कुछ नहीं आया, जो चश्मदीद गवाहों को संदिग्ध बता सके, या साबित कर सके कि चश्मदीद मौके पर मौजूद नहीं थे. इसी को हमने दो चश्मदीदों एक वादी अजय राय और दूसरे वादी विजय पांडेय के साक्ष्य को न्यायालय में प्रस्तुत करवाया, जिसके आधार पर न्यायालय ने भी उनको साक्षी माना और जिसके आधार पर बाकी गवाह, जो आइओ, पोस्टमॉर्टम करनेवाले डॉक्टर आदि ने भी अपनी गवाही दी और मुख्तार को सजा हुई.


ये पहली बार है जब मुख्तार अंसारी के पूरे आपराधिक पृष्ठभूमि में किसी मुकदमे में उसको उम्र कैद की सजा हुई है. इस मामले की मूल प्रति गायब नहीं हुई, केस डायरी गायब हुई है, जिसके संदर्भ में कैंट थाने में एफआईआर दर्ज है. मूल पत्रावली इसकी सरकार बनाम राकेश राय नाम से थर्ड एडीजे, इलाहाबाद में विचाराधीन है, जिसमें 15 जून की डेट अजय राय के साक्ष्य की तारीख लगी है. अगर पूरी सुरक्षा मिली तो उसमें भी अजय राय जाकर साक्ष्य देंगे. इस मुकदमे में निश्चित रूप से कई चुनौतियां सामने आई थीं. हालांकि, हम लोगों ने सभी को नजरअंदाज करते हुए केवल मामले को अंतिम अंजाम तक पहुंचाने पर ध्यान लगाया. आखिरकार हमें सफलता मिली और मुख्तार अंसारी को उम्रकैद हुई. 



कानूनी प्रक्रिया की अपनी होती है रफ्तार


पहले मुख्तार पर कार्रवाई नहीं हो पायी, क्योंकि कई बार पत्रावलियों को यहां से इलाहाबाद ट्रांसफर किया गया, कई बार माननीय हाईकोर्ट ने उन पर स्टे लगा दिया. इस कारण पत्रावली की सारी कार्रवाई होल्ड कर ली गयी. उसको जब छुड़वाया गया और बनारस एमपी-एमएलए कोर्ट में 2020 से कार्रवाई शुरू हुई, तो स्पीडी ट्रायल हुआ और आखिरकार उसी का नतीजा देखने को मिला. एक लंबा समय बीत गया. 3 अगस्त 1991 की घटना थी, दोपहर 1 बजे की जब अवधेश राय की हत्या हुई थी. हर आदमी को अपने अधिकार होते हैं, हर आदमी उन अधिकारों का प्रयोग करता रहा और इस पत्रावली की प्रोसीडिंग में थोड़ा अधिक समय लगा. थोड़ा समय तो जरूर लगा, लेकिन अंत भला तो सब भला. हर आदमी को राइट्स होते हैं. कभी कोई हाईकोर्ट चला गया, कभी कोई ट्रांसफर को लेकर सुप्रीम कोर्ट चला गया और प्रोसीडिंग टलती गयी.


हालांकि, जब से बनारस में एमपी-एमएलए कोर्ट का गठन हुआ, तब से और जब से उसके जज बने सियाराम चौरसिया साहब, तो उन्होंने डेली बेसिस पर सुनवाई की. उनकी लगातार सुनवाई का ही नतीजा रहा कि जब उनका ट्रांसफर हुआ तो पत्रावली 313 के स्टेज पर थी. जैसे ही रनिंग कोर्ट में अवनीश गौतम साहब आए तो उन्होंने भी मामले को स्पीडी ट्रायल के आधार पर ही सुना. 


हमने कोर्ट से मांगी थी अधिकतम सजा


जब 313 बन गया तो डिफेंस के विटनेस के नाम पर कई तारीखें पड़ीं. फिर डिफेंस विटनेस के क्रॉस इक्जामिनेशन के नाम पर कई तारीखें पड़ीं. फिर फाइनल स्टेटमेंट के नाम पर, डिफेंस और प्रॉसीक्यूशन के, कई तारीखें पड़ीं. इसके बाद सारी जो कानूनी प्रक्रिया होती हैं, उसमें समय लगा. हम लोगों की तरफ से 36 पन्ने का लिखित तर्क प्रस्तुत किया गया था, जिस पर कोर्ट ने विचार किया.


हमने अधिकतम सजा की मांग की थी, लेकिन माननीय न्यायाधीश महोदय ने जो भी सजा दी, हम उससे संतुष्ट हैं. यह मामला आगे भी निश्चित रूप से जाएगा और माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी पूरी मजबूती से हम मुकदमा लड़ेंगे,  जैसे पिछले 31 साल से लड़ रहे हैं, ताकि इनकी सजा बरकरार रहे. इस सजा से लोगों की न्यायालय में आस्था बढ़ी है, वे मानने लगे हैं कि कितना भी बड़ा माफिया हो, अगर उसने गलत किया है तो सजा होगी ही. 


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