नई दिल्लीः कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कुछ थमते ही अब संसद के भीतर मोदी सरकार को विपक्ष  के मुद्दोंरूपी  वायरस का सामना करना होगा. देखने वाली अहम बात ये होगी कि इस वायरस को बेअसर करने के लिए सरकार आखिर किस वैक्सीन का इस्तेमाल करेगी और वो किस हद तक असरदार साबित होती है. 19 जुलाई से शुरु हो रहे संसद के  मानसून सत्र में विपक्षी दलों के तरकश  में ऐसे कई तीर होंगे, जिन्हें बेअसर करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत उनके सेनापतियों को भी डटकर मोर्चा संभालना होगा. तीन खेती कानूनों के खिलाफ सात महीने से चले आ रहे किसान आंदोलन को लेकर विपक्ष जहां अपनी बांहें तानेगा, तो वहीं बढ़ती हुई महंगाई और कोरोना संकट के चलते पैदा हुई जबरदस्त बेरोजगारी को लेकर भी वह सरकार को घेरने में कोई कसर बाकी नहीं रखने वाला.


हालांकि लोकसभा की सीटों के गणित के हिसाब से देखें,तो सत्ताधारी पार्टी के मुकाबले विपक्ष बौना ही नजर आता है.लेकिन लोकतंत्र में उससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि वो अल्पमत में होने के बावजूद पूरी तरह से एकजुट नहीं है.हर मुद्दे पर कुछ न कुछ ऐसे मनभेद या मतभेद उभरकर सामने आते हैं जिससे लगता है कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों में तालमेल की कमी है.


इससे जाहिर होता है कि या तो उन्हें विपक्ष में  बैठने की आदत नहीं रही या फिर उन्हें जनहित से जुड़े मुद्दों को उठाकर सरकार को घेरने की 'चाणक्य नीति' की समझ ही नहीं.जो भी हो लेकिन सदन के भीतर यह हालत किसी भी सरकार के लिए शुभ संकेत ही समझी जाती है.सो,वही इस सरकार पर भी लागू होता है.


हालांकि यह सोचना भी गलत होगा कि बहुमत वाली सरकार कमजोर विपक्ष की रणनीति से अनजान है या फिर वो सत्ता के नशे में मदमस्त है.ख़ासकर जिस सरकार की कमान एक ऐसे शख्स के हाथ में हो,जो न सिर्फ राजनीति के दांवपेंच वाले  खेल का धुरंधर कप्तान हो,बल्कि बारीकी से यह भी नजर रखता हो कि विपक्ष के लगाये एक छोटे-से आरोप से भी देश की जनता के बीच क्या संदेश जा सकता है और उसका कैसे जवाब देकर अपनी सरकार के इक़बाल को कायम रखना है.


लिहाजा, विपक्ष के तमाम तीरों को निशाने पर न आने देने की रणनीति बनाने में सरकार भी जी-जान से जुटी हुई है.बीजेपी के संसदीय दल से जुड़े नेताओं के मुताबिक पार्टी के हरेक सांसद को बता दिया गया है कि उन्हें किस विषय पर अपना होमवर्क तैयार रखना है और कब सदन में उस पर बोलना है या विपक्षी नेताओं की बातों की काट करते हुए पूरी ताकत से अपनी बात कहनी है.


सूत्रों की मानें तो मोदी सरकार की तैयारी है कि इस सत्र में मुख्य रुप से दो मुद्दों पर उस विपक्ष को कटघरे में खड़ा किया जाए,जो हर वक़्त सेक्युलरिज्म का राग अलापते हुए देश के लोगों को गुमराह करता आया है.पहला है धर्मांतरण और दूसरा है आतंकवाद का नया रुप.बताते हैं कि इन दोनों मसलों पर खुद प्रधानमंत्री मोदी संसद के दोनों सदनों में बेहद आक्रामक अंदाज़ में तमाम विपक्षी दलों को लताड़ने वाले हैं कि वे देश को बताएं कि आखिर वे इसके समर्थन में हैं या फिर इसका विरोध करते हैं.दरअसल, तक़रीर की यही वो पिच बनने वाली है जिसमें अकेले मोदी ही पूरे विपक्ष को बैकफुट पर ला खड़ा कर देंगे.


चूंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा वापस दिए जाने की वकालत सार्वजनिक तौर पर की है,लिहाजा इस बहाने वे ऐसे कई नेताओं पर यह कहते हुए निशाना साध सकते हैं कि उनके इन बयानों की वजह से ही आतंकवादियों के हौंसले इतने बढ़ गए हैं कि अब वे ड्रोन से भी हमले करने लगे हैं.लिहाजा कश्मीर की आज़ादी का राग अलापने वाले वो कौन-से दल हैं,जो आतंकवाद के इस नए रुप के पक्ष में हैं,ये देश को भी  पता लगना चाहिए.हालांकि सत्तापक्ष हाल ही में हुए पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर भी ममता सरकार को घेरेगा.


चूंकि बीते दिनों धर्मांतरण को लेकर उत्तरप्रदेश पुलिस ने एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश किया है,लिहाज़ा बीजेपी की रणनीति है कि इस मुद्दे को राज्य के ही एक सांसद के जरिये उठवाकर विपक्ष को चुप कराया जाये. इसकी जिम्मेदारी गोरखपुर के सांसद रवि किशन को दी गई है.वे बेहद मुखर हैं और उन्होंने सदन में बोलने से पहले ही मीडिया में इस मुद्दे को जोरशोर से उठाना शुरु कर दिया है,ताकि 19 जुलाई तक यह मामला इतना तूल पकड़ ले कि संसद सत्र के पहले दिन ही इस पर हंगामा हो.


वह कहते हैं कि "पूरे देश में धर्म परिवर्तन के पीछे एक सिंडिकेट काम कर रहा है. मैं इस मुद्दे को मानसून सत्र में उठाऊंगा. धर्मांतरण के लिए विदेशों से फंडिंग हो रही है. सुनियोजित तरीके से हिंदू धर्म को खत्म करने की कोशिश हो रही है. अब तो कई राज्यों से धर्मांतरण की खबरें आ रही हैं, जम्मू-कश्मीर से मामले सामने आ रहे हैं."


वैसे अगर विधायी कामकाज की बात करें,तो फिलहाल संसद में 40 से भी अधिक विधेयक लंबित हैं. पांच अध्यादेशों को भी बिल के रूप में पारित कराना है.लेकिन 13 अगस्त तक चलने वाला संसद का यह पूरा सत्र ही अगर हंगामेदार रहा,तो इनमें से कितने बिल पारित हो पाएंगे,कहना मुश्किल है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)