भारत ही नहीं दुनिया भर में लाखों लोग विक्रम लैंडर को शनिवार की रात लगभग एक बजकर 30 मिनट पर चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतारे जाने की प्रक्रिया सांसें रोक कर लाइव देख रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चांद पर होने जा रही इस ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का सीधा नजारा देखने के लिए बेंगलुरु स्थित इसरो केंद्र पहुंचे हुए थे. घर बैठ कर टीवी स्क्रीन और इसरो की आधिकारिक वेबसाइट पर नजर गड़ाने वाले अनगिनत लोगों में इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल था. चांद की ओर बढ़ता लैंडर विक्रम स्क्रीन पर जगमगा रहा था. उसने रफ ब्रेकिंग और फाइन ब्रेकिंग के चरणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था. सभी के चेहरों पर जबरदस्त उत्सुकता थी. लेकिन महज चंद सेकंड के फासले पर ही वैज्ञानिकों के हाव-भाव बदल गए. लैंडिंग के 15 में से लगभग 13 मिनट तक सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन आखिरी 90 सेकंड में अचानक जो हुआ उससे देश का दिल टूट गया. स्क्रीन पर आ रहे आंकड़े अचानक थम गए. बेचैनी बढ़ गई कि कोई अनहोनी तो नहीं हुई है. करीब 25 मिनट तक इसरो सेंटर में जबरदस्त सस्पेंस बना रहा.


जाहिर हुआ कि नीचे की तरफ आते समय लैंडर का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था. इसरो के कंट्रोल रूम में सन्नाटा पसर गया. इसरो प्रमुख के. सिवन ने दु:खी मन से एलान किया कि पूरा मिशन योजना के मुताबिक चल रहा था और चांद से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक सब कुछ नॉर्मल था. कुछ ही देर में इसरो ने कंट्रोल रूम से अपनी लाइव स्ट्रीमिंग भी बंद कर दी. इंतजार किया गया कि शायद फिर से लैंडर हाथ लग जाए, लेकिन निराशा ही हाथ लगी. इस दौरान इसरो चीफ सिवन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सामने पाकर फूट-फूटकर रोने लगे. पीएम ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया और कुछ पलों तक उनको ढाढ़स बंधाते रहे. उन्होंने अन्य वैज्ञानिकों की भी पीठ थपथपाई और कहा कि मायूस होने की कोई जरूरत नहीं है. भारत को अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है! उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है और हम उनके दम पर अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर आगे भी कड़ी मेहनत करते रहेंगे.


सुबह के चार बजे तक बार-बार मेरे मन को एक ही प्रश्न मचल रहा था कि क्या इसरो के द्वारा 978 करोड़ रुपये की लागत और करीब 11 साल का समय निवेश करके तैयार किया गया ‘चंद्रयान-2’ पूरी तरह नेस्तनाबूद हो गया है या इस अभियान में कुछ सकारात्मकताओं, आशाओं और सफलताओं के अंश भी ढूंढ़े जा सकते हैं? इसका उत्तर उस समय मिला जब विशेषज्ञों ने तसल्ली दी कि अभी इस मिशन को असफल नहीं कहा जा सकता. हो सकता है कि लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित हो जाए. अगर लैंडर विफल भी हो गया होगा तब भी चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर एकदम सामान्य है और लगातार परिक्रमा कर रहा है, इसलिए चंद्रयान-2 मिशन का सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है. फिलहाल मिशन का सिर्फ पांच प्रतिशत ही नुकसान हुआ है. यह ऑर्बिटर एक साल तक चंद्रमा की तस्वीरें पृथ्वी पर भेजता रहेगा. कुछ समय बाद वह लैंडर की तस्वीरें भी भेज सकता है, जिससे उसकी स्थिति पता चल सकती है. अतः आशाएं अभी जीवित हैं.


इस अभियान के सकारात्मक पहलुओं को देखा जाए तो लैंडर से संपर्क टूटने से पहले ही भारत ने काफी कुछ हासिल कर लिया था, क्योंकि ऑर्बिटर अपनी सही जगह पहुंचा और मैपिंग के अपने काम को ठीक से करने लगा था. इस ऑर्बिटर में चंद्रमा की सतह की मैपिंग करने और पृथ्वी के इकलौते प्राकृतिक उपग्रह की बाहरी परिधि का अध्यन करने के लिए आठ वैज्ञानिक उपकरण लगे हुए हैं. लैंडर की मिशन लाइफ जहां 14 दिन की थी, वहीं ऑर्बिटर की मिशन लाइफ पूरे एक साल की है. वह आने वाले वक्त में इसरो के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा और इसरो के साथ महत्वपूर्ण डाटा साझा करता रहेगा. हालांकि इस ऑर्बिटर से जुड़े विक्रम के चांद पर लैंड न हो पाने के कई कारण हो सकते हैं- संभव है कि अलग होते समय उसका सेंसर फेल हो गया हो, उसका ऑन बोर्ड सॉफ्टवेयर क्रैश हो गया हो या फिर वह बहुत तेजी से नीचे चला गया हो. यकीन किया जाना चाहिए कि इसरो के वैज्ञानिक जल्द ही यह पता लेंगे कि लैंडर और रोवर के साथ क्या गलत हो गया था.


अगर विफलता के पहलुओं पर नजर डाली जाए तो स्वदेशी तकनीक की मदद से चंद्रमा पर खोज करने के लिए भेजा गया लैंडर विक्रम भारत का पहला मिशन था जो फिलहाल खो चुका है. इसे चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए डिजाइन किया गया था और इसे एक चंद्र दिवस यानी पृथ्वी के 14 दिन के बराबर काम करना था, जो एक दिन भी कार्यरत नहीं रह सका. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ.विक्रम ए साराभाई का नाम दिए गए इस लैंडर के भीतर सौर ऊर्जा से चलने वाला 27 किलोग्राम वजनी रोवर प्रज्ञान स्थित था, जिसे अपने उतरने के स्थान से 500 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर चलने के लिए बनाया गया था. विक्रम के पास बेंगलुरु के पास बयालू में आईडीएसएन के साथ-साथ ऑर्बिटर और रोवर के साथ संवाद करने की क्षमता थी. इसे चन्द्रमा की सतह से टकराने वाले चंद्रयान-1 के मून इम्पैक्ट प्रोब के विपरीत धीरे-धीरे नीचे उतरना था. यह लैंडिंग साइट के पास भूकंप के अध्ययन के लिए सेइसमोमीटर, चंद्रमा की सतह के तापीय गुणों का आकलन करने के लिए थर्मल प्रोब, घनत्व और चंद्रमा की सतह का प्लाज्मा मापने के लिए लांगमोर प्रोब, कुल इलेक्ट्रॉन सामग्री को मापने के लिए रेडियो प्रच्छादन प्रयोग जैसे स्वदेशी पेलोड अपने साथ लेकर गया था.


पहिएदार रोवर उस सतह का रासायनिक विश्लेषण करता और विश्लेषण के लिए वहीं पर मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करता और ऑर्बिटर के जरिए तमाम अनमोल और दुर्लभ आंकड़े पृथ्वी पर भेजता. लैंडर में चंद्रमा की सतह और उपसतह पर प्रयोग करने के लिए तीन उपकरण लगे थे जबकि चंद्रमा की सतह को समझने के लिए रोवर में दो उपकरण मौजूद थे. लैंडर और रोवर चंद्रमा पर लगभग 70° दक्षिण के अक्षांश पर स्थित दो क्रेटरों मजिनस सी और सिमपेलियस एन के बीच एक ऊंचे मैदान पर उतरने वाले थे. फिलहाल उनका दोबारा मिल जाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. अगर यह चंद्र अभियान शत प्रतिशत कामयाब हो जाता, तो भारत चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता.


हिंदी के महाकवि शमशेर बहादुर सिंह की एक काव्य-पंक्ति है- जो नहीं है उसका गम क्या! इसलिए लैंडर और रोवर का बिछोह भूलकर चंद्रयान-2 ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, और जो नए अनुभव दिए हैं, उनसे सबक हासिल करना चाहिए. दुनिया भर में अंतरिक्ष अभियान पहले भी असफल होते रहे हैं लेकिन वैज्ञानिक हाथ पर हाथ धर कर बैठे नहीं रहते. भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इस मिशन पर बेहतरीन काम किया और इसके पहले भी अनेक महत्वपूर्ण एवं महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों की सफलतापूर्वक नींव रखी है. देश की सरकार और जनता पूरी तरह से उनके साथ है. आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि वे चंद्रयान-2 की आंशिक सफलता के बाद एक बार फिर यही गुनगुना रहे होंगे- ‘चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो.’


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)