केंद्र की मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेकर इस देश में विदेशी मदद से चल रहे एनजीओ की कमर तोड़ने की जो ताकत दिखाई है, उस पर विपक्ष को सवाल उठाने का हक तो है लेकिन जो सबूत सामने आये हैं, उसे वो कैसे जायज़ ठहरा सकता है. देश के विदेश मंत्री रह चुके कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी हैं,  यामिनी अय्यर. 


वे इस देश के नामी एनजीओ की अध्यक्ष हैं, जिसका नाम है-सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च जिसे पालिसी थिंक टैंक माना जाता है. यह अंग्रेजी में CPR के नाम से मशहूर है. इसे विदेशों से बेतहाशा फंड मिलता रहा है लेकिन सरकार ने पाया कि यह देश के सारे कानून की धज्जियां उड़ा रहा है और इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय से मिले नोटिसों की भी कोई परवाह नहीं है. लिहाज़ा, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस को अगले छह महीने के लिए निलंबित कर दिया है. 


इसे विदेशों से मिलने वाले धन का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं  कि वर्ल्ड बैंक,  UNICEF के अलावा बिल गेट्स व मेलिंडा फाउंडेशन के साथ ही  अमेरिका के दो संगठनों William & Flora Hewlett Foundation (USA) और  Macarthur Foundation (USA) से भी इसे पर्याप्त आर्थिक मदद मिलती रही है. 


इसमें कोई शक नहीं कि 50 बरस पहले यानी 1973 में स्थापित हुए इस एनजीओ से देश की कई नामी हस्तियां जुड़ी हुई हैं और इसीलिये इसकी गिनती देश के जाने-माने थिंक टैंक्स में अव्वल नंबर पर होती है. लेकिन अगर ये जांच एजेंसियों के रडार पर आया है, तो जाहिर है कि इसमें कुछ गड़बड़ हुई होगी जिसे एजेंसी ने पकड़ लिया है. 


हालांकि बीते साल सितंबर में इनकम टैक्स विभाग ने सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च और ऑक्सफैम के दफ्तरों पर छापेमारी की थी और उसका मकसद ये पता लगाना था कि इन संस्थानों में एफसीआरए के प्रावधानों का कितना उल्लंघन हुआ है. तब आयकर विभाग ने एफसीआरए के माध्यम से विदेशों से मिली धन की रसीद के साथ-साथ इन संगठनों के बही-खातों को भी पुरी तरह से खंगाला था.


उसी दौरान आयकर विभाग ने बेंगलुरु स्थित इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (आईपीएसएमएफ) के ठिकानों पर भी छापेमारी की थी. कथित आरोप है कि वह कई मीडिया आउटलेट्स को आर्थिक रूप से अच्छी रकम प्रदान कर रहा है. 


जांच एजेंसियों की कार्रवाई अपनी जगह है लेकिन देश के सबसे प्रतिष्ठित थिंक टैंक माने जाने वाले इस एनजीओ की वेबसाइट ये दावा करती है कि साल 1973 में बना ये एनजीओ उन मुद्दों पर गहराई से अध्धयन करता है, जो देश के लोगों को प्रभावित करते हैं. 


बेहतर नीतियां बनाने के लिए सरकारों को प्रेरित करने के मकसद से ये शोध करने के साथ ही उच्च स्तर की छात्रवृत्ति भी प्रदान करता है. जबकि यह एक गैर लाभकारी,  गैर पक्षपातपूर्ण और स्वतंत्र संस्था है. यानी इसका देश के किसी भी राजनीतिक दल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से कोई लेनादेना नहीं है. 


इस एनजीओ के दावों पर यकीन करें तो वह इंसान की जिंदगी से जुड़ा कोई ऐसा मसला नहीं छोड़ता, जिस पर उससे जुड़े लोगों ने कोई रिसर्च करके ये न बताया हो कि जमीनी हक़ीक़त क्या है. ताजा उदाहरण प्रधानमंत्री मोदी की गरीबों को आवास देने की योजना से जुड़ा है. 


बीते महीने यानी फरवरी में ही इस स्वयंसेवी संगठन ने तीन लोगों - नीहा सुसान जैकब,  अन्वेशा मलिक और अवनी कपूर को इसके लिये छात्रवृत्ति दी थी कि वे ये पता लगाएं कि प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना की असली हक़ीक़त क्या है.


मसलन, एक मकान बनाने में कितना खर्च आ रहा है और सरकार ने जो लक्ष्य रखा है, वो उस समयावधि में पूरा हो भी पा रहा है कि नही. इससे भी ज्यादा बड़ा काम ये था कि जिन लोगों के लिए वे मकान बनाये जा रहे हैं, वे उन्हीं गरीब लोगों को मिल भी रहे हैं कि नहीं. 


इस स्टडी को CPR ने अपनी वेबसाइट में भी डाला था लेकिन साथ ही ये भी डिस्क्लेमर लगा दिया कि स्कॉलर लोगों की तकलीफों को उजागर कर रहे हैं. लिहाज़ा उन्हें अपनी स्वतंत्र राय रखने का हक है लेकिन CPR इसकी कोई सामूहिक जिम्मेदारी नहीं लेता है. सियासी भाषा में इसे ऐसा पेंच कहा जाता है कि आपने सरकार के कान मरोड़ने की नुमाइश भी कर डाली औऱ साथ ही ये भी कह डाला कि इससे हमारा कोई मतलब भी नही है.


हालांकि इस एनजीओ की स्थापना तो मशहूर अर्थशास्त्री और FICCI के पूर्व महासचिव DH Pai Panandiker. ने ही की थी. लेकिन इसकी गवर्निंग बॉडी में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़, मशहूर पत्रकार-संपादक बी वी वर्गीज़ और बुद्धिजीवी प्रताप भानु मेहता शामिल हैं. 


इसके अलावा पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन और टाटा टेलीकम्युनिकेशन के पूर्व चेयरपर्सन सुबोध भार्गव भी इसके सदस्य हैं. हालांकि कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी अय्ययर 2017 से ही इस संगठन की अध्यक्ष हैं, जबकि मीनाक्षी गोपीनाथ इसकी चेयरपर्सन हैं. 


इस एनजीओ को विदेशों से ही नहीं बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों से भी अनुदान मिलता रहा है. CPR की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है की उसे इस दौरान Indian Council for Social Science Research (ICSSR)  से ही 19. 26 करोड़ रुपये का अनुदान मिला है. 


इसके अलावा जल शक्ति मंत्रालय और मेघालय व आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी उसे पर्याप्त अनुदान दिया है. सवाल ये है कि इतनी नामी हस्तियों से जुड़े संगठन को दान में मिले पैसों में हेराफेरी करने पर आखिर क्यों मजबूर होना पड़ा और इसकी असली वजह क्या है?


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)