देश में लोकसभा चुनाव के तीन चरणों की वोटिंग खत्म हो चुकी है. वहीं उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पार्टियों का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है. इसी बीच, मायावती ने ट्वीट कर अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी और नेशनल को-ऑर्डिनेटर  के पद से हटाये जाने की सूचना दी है. उन्हीं आकाश आनंद को, जो उनके खासे प्यारे थे और जिनको उन्होंने अपना उत्तराधिकारी ही घोषित कर दिया था. इस फैसले को लेकर विश्लेषक अलग-अलग तरह की व्याख्या दे रहे हैं. 


मायावती नहीं स्वतंत्र


पिछले 72 घंटों का जो घटनाक्रम हुआ है, उसके बाद गांवों की पट्टी से शहरी बुद्धिजीवियों तक में मत है कि मायावती स्वतंत्र नहीं हैं. कुछ हाल के घटनाक्रमों ने इस मत पर पहुंचने में मदद की है, जैसे रातों-रात जौनपुर से घनंजय सिंह की पत्‍नी श्रीकला का टिकट वापस लिया गया, बस्ती में उम्मीदवार को बदला गया और अब आकाश आनंद पर जो कार्रवाई हुई है. आकाश हालांकि पिछले एक हफ्ते से गायब ही थे, जब आकाश के भाषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और उसके बाद वे पिछले एक सप्ताह से परिदृश्य से बाहर थे. मायावती का ये फैसला बहुत बड़ा है.


उन्होंने आकाश आनंद को नेशनल को-ऑर्डिनेटर के पद से तो हटाया ही, अपने उत्तराधिकारी के रूप से भी हटाया है. इस खबर के आने के बाद दलित बुद्धिजीवियों और राजनीतिक विश्लेषकों में एक बात पर एका है कि बहनजी यानी मायावती बीजेपी के भयंकर दबाव में हैं और वे वही करेंगी जो बीजेपी चाहती है.


लोकसभा चुनाव से पहले बातें होतीं थी कि मायावती(बसपा) बीजेपी की B टीम है और बीजेपी के दबाव में मायावती हैं. हालांकि, बसपा पर पहले राउंड के टिकट बटवारे के दौरान आरोप लगा कि बसपा वोट काटने के लिए मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतार रहीं हैं.  बाद में टिकट आवंटन सूची में कई नाम ऐसे थे जो बीजेपी के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में थे जिसे देखकर मायावती के स्वतंत्र निर्णय लेने की बात सत्ता के गलियारों में हुई.


आकाश को मिली सजा!


आकाश आनंद जिस आक्रामक तरीके से आए, खबरों में छाए, युवाओं में उनका क्रेज माना जाने लगा. सियासी पंडित उनके ऊपर निगाह रखने लगे और ये माना जाने लगा था कि वे जिस तरह से अटैक कर रहे हैं, वे पूरी मजबूती से चाहते हैं कि बसपा अपने दम पर खड़ी हो. इसके लिए ही उनके भाषणों में वह तेजी दिखाई दे रही थी, हालांकि इसके बाद ही एक भाषण हुआ, एक एफआईआर हुई और उसके बाद ही आकाश आनंद जो दिल्ली गए, उसके बाद वो वापस आए ही नहीं. यहां तक कि लोगों ने भी ये सवाल पूछना शुरू किया कि आखिर आनंद हैं कहां?


इसके बाद 48 घंटे में दो बड़े फैसले हुए और उसने वापस उसी चर्चा को हवा दे दी कि भाजपा के दबाव में मायावती कोई फैसला स्वतंत्र रूप से नहीं ले पा रही हैं. दलित चिंतकों ने भी यह कहना शुरू कर दिया कि मायावती ने बहुत निराश किया है. हालांकि, अब तक दलित चिंतक औऱ बुद्धिजीवी किसी भी कीमत पर मायावती को कवर-फायर दे रहे थे.


खबर तो यह पढ़ी जा रही है कि आकाश आनंद पर लगाम दरअसल उनकी भलाई के लिए ही मायावती ने उठाया है, क्योंकि उनको अपने ऊपर पड़े दबाव की कीमत पता है. हालांकि, इन फैसलों ने, ''बीजेपी के दबाव में मायावती हैं'' ''वे स्वतंत्र निर्णय नहीं ले रहीं'' जैसी पुरानी बातों को एक बार फिर हवा देने का काम किया.  इन फैसलों के बाद ऐसे दलित चिंतक जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी मायावती के प्रति आशान्वित थे, उनको एक आयकॉन, एक प्रतीक मानते थे, साथ  ही मायावती की राजनीतिक मजबूती की बातें करते थे. ऐसे चिंतकों ने यह भी कहा कि मायावती ने निराश कर दिया.


मायावती भी आक्रामक थीं


जहां तक आक्रामकता से किनारे की बात है, तो बहन मायावती जी का पुराना रूप अगर याद किया जाए, तो वह इससे भी आक्रामक बोलती थीं. वह अक्सर ही विवादास्पद नारों और भाषणों से चर्चा में रहती थी. यहां तक कि बहुत सीधे-सीधे जातिगत नारे भी लगाती थीं. यह बात मान लेना कि मायावती को आक्रामकता पसंद नहीं आयी, ठीक नहीं होगा. हां, उनमें एक डर की मानसिकता तो है, वह जबर्दस्त है. यह मानसिकता तब से है, जब बहुचर्चित गेस्ट-हाउस कांड हुआ था. उनका सार्वजनिक तौर पर दिखना कम हो गया था, उन्होंने खुद को अपनी इमारत में कैद कर लिया था और वह रैलियों में ही जाती थीं. डर वाला जो मनोविज्ञान है, वह उन पर हावी है.


आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में जब जांच शुरू हुई और मायावती सहित उनके भाई आनंद पर भी मुकदमे चल रहे हैं, तो वह डर उन पर हावी है. मायावती जब 2012 में सत्ता से बाहर हुई थीं, उसके दो-तीन साल बाद तक उनकी आक्रामकता में कमी नहीं थीं. केंद्र में सरकार बदली, फाइलें खुलीं और मायावती उसके बाद पीछे चली गयीं. 2022 के चुनाव तक वह अप्रासंगिक हो चुकी थी. जहां तक अखिलेश यादव का सवाल है, तो मुलायम सिंह की डिप्लोमेसी ऐसी थी कि जब तक वे थे, तब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. बाद में तो नरेंद्र मोदी उनके घर शादी वगैरह में भी जाने लगे. यह संतुलन जब तक मुलायम थे तो कायम रखते थे. 


इसके अलावा एक कारण यह भी था कि यूपी में भाजपा को सबसे कड़ी टक्कर अखिलेश दे रहे हैं और उनका कद ऐसा हो गया है कि जब भी उन पर कार्रवाई होगी, तो उसे लोग विच-हंटिंग करार दे सकते हैं. 




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