जमीयत-उलेमा-ए-हिंद मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन है, जो सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. इस संगठन ने केंद्र की मोदी सरकार को एक बार फिर चेताया है कि वह समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने का विचार छोड़ दे क्योंकि इससे देश की एकता व अखंडता पर सीधा असर पड़ेगा. सवाल उठता है कि अगर देश में सबके लिए एक समान कानून बनता है तो उससे मुस्लिमों को आखिर ऐतराज क्यों है और मुस्लिम पर्सनल लॉ खत्म हो जाने से उन्हें डर किस बात का है?


जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद असद मदनी इस्लाम के बड़े स्कॉलर हैं और एक तरफ़ वे हिंदू-मुस्लिम एकता पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि उन्हें आरएसएस से कोई नफ़रत नहीं है लेकिन वहीं दूसरी ओर वे UCC के मुद्दे पर सरकार को लगातार खुली चेतावनी दे रहे हैं. दिल्ली के रामलीला मैदान में जमीयत के 34 वें अधिवेशन में तक़रीर करते हुए उन्होंने इस मसले पर सरकार के ख़िलाफ़ फिर से हुंकार भरी है. शायद इसलिए कि उन्हें ये अहसास है कि बीजेपी शासित राज्य सरकारें UCC को लागू करने की तैयारी में हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार भी इसे लेकर कानून बनाने वाली है. लिहाज़ा, शनिवार को उन्होंने इसे एक नया मोड़ दिया है.


मौलाना मदनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता सिर्फ मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह देश के विभिन्न सामाजिक समूहों, समुदायों, जातियों और सभी वर्गों से संबंधित है. उनके मुताबिक हमारा देश विविधता में एकता और सच्चा बहुलतावादी का सबसे अच्छा उदाहरण है. लेकिन हमारे बहुलवाद को अनदेखा करते हुए, जो भी कानून पारित होंगे, उनका देश की एकता,विविधता और अखंडता पर सीधा असर पड़ेगा, लेकिन मदनी ने इसका खुलासा नहीं किया कि हिंदुओं की विभिन्न जातियों व वर्गों पर इसका कैसे प्रभाव पड़ेगा. जबकि एक पहलू ये भी है कि देश के आदिवासी वर्ग के बड़े तबके में भी UCC को लेकर नाराजगी सामने आई है  क्योंकि वे अपनी सदियों पुरानी परंपरा और रीति-रिवाजों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं. इसीलिए संघ के स्वयंसेवक वनवासी इलाकों में जाकर उन्हें इस कानून के फायदे बताते हुए समझा रहे हैं. हालांकि मदनी ने यह कानून लाने की सरकार की नीयत पर शक जताते हुए साफ कहा है कि इसका मकसद राजनीति से प्रेरित है और मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करना ही है, इसलिए उन्होंने इसे लागू करने के खिलाफ सरकार को दी गई चेतावनी को फिर दोहराया है.


मदनी ने एक बुनियाद सवाल ये भी उठाया है कि इस सरकार को इस्लाम से शिकायत आखिर क्यों है? उन्होंने आरएसएस (RSS) और उसके सर संघचालक मोहन भागवत को न्योता देते हुए कहा है कि आइए, आपसी भेदभाव और दुश्मनी को भूलकर एक-दूसरे को गले लगायें और देश को दुनिया का सबसे शक्तिशाली मुल्क बनाएं. हमें सनातन धर्म के फरोग (रोशनी) से कोई शिकायत नहीं है. आपको भी इस्लाम से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए,  लेकिन हिंदुत्व की गलत परिभाषा देने का जिक्र करते हुए मदनी ने एक बड़ी बात और कही है कि इस मुल्क में बसने वाले बहुसंख्यक वर्ग यानी हिंदुओं से हमारा झगड़ा नहीं है और हम किसी के भी खिलाफ नहीं हैं. यही बात बीते दिनों में संघ प्रमुख भागवत ने भी कई बार दोहराई है कि इस्लाम से हमारा कोई झगड़ा नहीं है. इसलिए सवाल उठता है कि हिंदुओं और मुस्लिमों के दो सबसे बड़े संगठन के सर्वेसर्वा अगर ये मानते हैं कि दोनों वर्गों के बीच कोई दुश्मनी नहीं है तो फिर वे कौन-सी ताकतें हैं,जो समाज में नफ़रत का माहौल बनाने में जुटी हुई हैं?


शायद इसीलिए जमीयत ने जो प्रस्ताव पारित किए हैं, उसमें सरकार से एक बड़ी मांग ये भी की गई है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़काने वालों को विशेष रूप से दंडित करने के लिए एक अलग कानून बनाया जाना चाहिए. वैसे जमीयत ने एक बड़ा आरोप ये भी लगाया है कि वर्तमान में अदालतों ने तीन तलाक, हिजाब आदि मामलों में शरीयत के नियमों और कुरान की आयतों की मनमानी व्याख्या कर मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करने का रास्ता खोलने का काम किया है. बता दें कि पिछले साल 29 मई को भी उत्तर प्रदेश के देवबंद में भी जमीयत की ऐसी ही बड़ी कॉन्फ्रेंस हुई थी, जिसमें देश भर के तमाम प्रमुख मौलाना और इस्लाम के विद्वान शामिल हुए थे. तब भी ये प्रस्ताव पास किया गया था कि अगर भारत सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का प्रयास करती है या फिर हमें संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने को लेकर कोई भी कदम उठाया जाता है,तो इसे हमारा समाज बिल्कुल भी सहन नहीं करेगा और संविधान के दायरे में रहकर जो भी कदम संभव होंगे, वो उठाएं जाएंगे.


तब भी अरशद महमूद मदनी ने कहा था, “हमें डराना बंद कर दो, ये मुल्क हमारा भी है, बेशक हमारा मजहब अलग है, हमारा खाना-पीना अलग है, हमारा लिबास अलग है.जो लोग ये कहते हैं कि तुम पकिस्तान चले जाओ, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि हमें एक बार पाकिस्तान जाने का मौका मिला था लेकिन हमारे पूर्वजों ने यहीं पर रहने का फैसला किया और किसी को अगर नापसंद है हमारा मजहब-लिबास और तहजीब, तो वो लोग खुद कहीं और चले जाएं. हमारे पूर्वजों ने चटाई पर बैठकर उस हुकूमत की खिलाफत की जिस हुकूमत का सूरज नहीं डूबता था. ऐसे में हम अभी कैसे हार जाएंगे."


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)