पिछले कुछ अरसे से किसी भी मज़हब को समझने और समझाने के नए तर्क व अर्थ दिये जा रहे हैं. इसमें कितना सही है और  कितना गलत,ये तो देश की जनता ही तय करेगी. लेकिन आप पहले गौर कीजिए, देश की इन तीन हस्तियों की कलम से निकले शब्दों पर. आनंद नारायण मुल्ला देश की सुप्रीम कोर्ट के जज होने के साथ ही कविता और शायरी करने में भी माहिर थे. उन्होंने लिखा था-


"वतन का ज़र्रा ज़र्रा हम को अपनी जाँ से प्यारा है


न हम मज़हब समझते हैं न हम मिल्लत समझते हैं."


उसके बाद अगर बात करें साहिर लुधियानवी की,तो


उनके बोल थे-


"हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया


करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें"


'कारवां गुज़र गया औऱ हम गुबार देखते रहे' को सबकी जुबां पर लाने वाले मशहूर कवि गोपालदास 'नीरज' ने इस मज़हब से फैलने वाली नफ़रत को कुछ इस अंदाज़ में बयां किया था-


"जिसमें मज़हब के हर इक रोग का लिक्खा है


इलाज,वो किताब हम ने किसी रिंद के घर देखी है."


तो ये बात है उस मजहब की जहां नफरत को भी सफेद मक्खन में लपेट कर इतनी पोशीदगी से परोसा जाता है कि आपको यकीन ही नहीं होता कि आप बरसों पुराने अपने दोस्त मंसूर खान पर यक़ीन करें या फ़िर उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोचें.हनुमान चालीसा के बहाने महाराष्ट्र की सियासत से निकलकर देश के मीडिया में अचानक छा जाने वाली अमरावती की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा से हमारा कोई बैर नहीं है.लेकिन कोर्ट से सशर्त जमानत मिलने और अस्पताल से सेहतमंद होने के बाद रविवार को उन्होंने


मीडिया में जो बयानबाजी की है,उसे आप या हम किसी तराजू पर नहीं तौल सकते.क्योंकि ये अधिकार सिर्फ उस उस अदलाल का ही है,जिसने राणा दंपति को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वे जेल से रिहा होने के बाद इस मामले पर मीडिया में कोई बयानबाजी नहीं करेंगे.


नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा दोनों ही जन प्रतिनधि हैं-एक सांसद तो दूसरे चुने हुए विधायक हैं.ऐसी सूरत में आप या हम जैसे लोगोँ के मुकाबले इन दोनों की न्यायपालिका के प्रति जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि वे इतने नासमझ नहीं हैं जो कानून की भाषा या कोर्ट से मिली हिदायत को भी न समझ पाते हों. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद रविवार को पत्रकारों से बातचीत में नवनीत राणा ने कहा, ‘‘मैं उद्धव ठाकरे जी को एक निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव करने और लोगों द्वारा सीधे निर्वाचित होने की चुनौती देती हूं. मैं उनके खिलाफ लडूंगी. मैं ईमानदारी के साथ कठिन मेहनत करूंगी और चुनाव जीतूंगी तथा उन्हें (मुख्यमंत्री) को लोगों की ताकत का पता चल जाएगा.’’


इसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि ये उनका एक सियासी बयान है.लेकिन इसके बाद उन्होंने अपनी शोहरत बटोरने के लिए जो कुछ बोला है,उस पर महाराष्ट्र सरकार का ऐतराज उठाना भी लाजिमी बनता है और उस पर कोर्ट को संज्ञान लेने का अधिकार भी है.


दरअसल, नवनीत राणा का मीडिया में दिया ये बयान उनकी मुश्किलें बढ़ा सकता है और हम ये सोच भी नही सकते कि उन्होंने ये बात अनायास ही कह दी होंगी. राणा ने कहा, ‘‘मैंने क्या अपराध किया था कि मुझे 14 दिनों तक जेल में रहना पड़ा? आप मुझे 14 साल के लिए जेल में डाल सकते हो लेकिन मैं भगवान राम और हनुमान का नाम लेना बंद नहीं करूंगी. मुंबईवासी और भगवान राम निकाय चुनावों में शिवसेना को सबक सिखाएंगे."’ नवनीत राणा ने यह भी कहा कि वह मुंबई में प्रचार करेंगी और शिवसेना के ‘‘भ्रष्ट शासन’’ को खत्म करने के लिए ‘राम भक्तों’ का समर्थन करेंगी.


हमारे देश का संविधान किसी को भी उसका नाम जपने या गुणगान करने से नहीं रोकता लेकिन उसी संविधान ने एक कानून भी बना रखा है ,जो आपको या मुझे अपनी निजी स्वतंत्रता का हक भी देता है. हनुमान चालीसा का पाठ करने या कुरान की आयतें पढ़ने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन किसी की मर्जी के बगैर आप इसे किसी पर जबरदस्ती भला कैसे थोप सकते हैं.


नवनीत राणा ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्वव ठाकरे के निजी आवास 'मातोश्री' के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने की धमकी दी थी. अब जरा सोचिए कि असदुद्दीन ओवैसी जैसे कुछ मुस्लिम नेता इस जिद पर अड़ जाएं कि हम तो प्रधानमंत्री के घर के बाहर नमाज़ पढ़ेंगे. तब क्या होगा? तब दिल्ली में भी वही कानून लागू होगा, जो मुंबई में राणा दंपति पर लागू हुआ. लिहाजा, मज़हब के नाम पर या उसके जरिये फैलाई जा रही इस राजनीतिक अराजकता को अगर नहीं रोका गया, तो हमें इसके बेहद खतरनाक अंजाम भुगतने से कोई नहीं रोक सकता.



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)