जो बात सैकड़ों बार कही जा चुकी है उसे एक बार फिर दोहरा रहा हूं. दिल्ली में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. इस बार का तो पूरा चुनाव ही यूपी पर आकर अटक गया है. यूपी में अगर बीजेपी पिछली बार के मुकाबले पचास सीटें गंवाती है और देश भर में अन्य पचास सीटें, बदले में दस बीस सीटों की ही भरपाई कर पाती है तो बीजेपी के लिए फिर से सरकार बनाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. लेकिन अगर बीजेपी यूपी में बीस तीस और देश भर में अन्य बीस तीस सीटें गंवाती है और दस बीस की भरपाई करने में सफल रहती है तो बीजेपी के लिए सत्ता में लौटना आसान हो जाएगा. ऐसे में कुल मिलाकर यूपी ही मोदी की वापसी का रास्ता तय करेगा . इस हिसाब से यूपी की पहले चरण की आठ सीटों का मिजाज देखना दिलचस्प हो जाता है .


मेरठ , बागपत , मुज्जफरनगर , कैराना , सहारनपुर , बिजनौर , गाजियाबाद और गौतमबुद्द नगर की आठ सीटों का दौरा बेहद दिलचस्प रहा . बागपत में छोटे चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी चुनाव मैदान में हैं . उनका मुकाबला मोदी सरकार में मानव संसाधन राज्य मंत्री सत्यपालसिंह से है . यहां गन्ना किसानों का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा है . माना जाता है कि यूपी के 35 लाख गन्ना किसानों का करीब 12 हजार करोड़ रुपया बकाया है . गन्ने के इस पिराई सत्र में चीनी मिलों ने किसानों से 23 हजार करोड़ का गन्ना अब तक खऱीदा है लेकिन इसके आधे का ही भुगतान हो पाया है . इसमें बागपत के गन्ना किसानों के चार सौ करोड़ रुपये बकाया हैं . मेरठ जिले के 700 करोड़ , शामली के 550 करोड़ , बिजनौर जिले के 650 करोड़ , मुज्जफरनगर जिले के 1100 करोड़ और सहारनपुर जिले के 580 करोड़ रुपये बकाया हैं . यही वजह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी को मेरठ की रैली में कहना पड़ा कि गन्ना किसानों का बकाया जल्दी ही चुका दिया जाएगा . ऐसा भी कह जा रहा है कि पहले चरण के लिए 11 अप्रैल को होने वाले चुनाव से पहले कम से कम आधा पैसा चुका देने पर योगी सरकार गंभीरता से सोच रही है.


बड़ोत के रमेश जैसे युवा किसान के तीन लाख रुपए चीनी मिल मालिकों के पास बकाया हैं. रमेश कहते हैं कि चौदह दिनों में पैसे देने का वायदा चूल्हे में चला गया है और मोदी सरकार ने भी सिवाए नारों के कुछ नहीं दिया है . रमेश गन्ना लदे ट्रेक्टर को तुलवाने के लिए जिस धर्म कांटे में गये वहां हमारा भी जाना हुआ . वहां बुग्गी यानि बैलगाड़ी में गन्ना तुलवा रहे थे आशीष . कहने लगे कि उनका भी गन्ना का बकाया है लेकिन मोदी सरकार ने पाकिस्तान को सबक सिखा कर अच्छा काम किया है . योगी सरकार के समय हाई वे बनना शुरु हुआ है और सबसे बड़ी बात है कि चोरी डकैती में कमी आई है . बड़ोत में एक शख्स ने कहा कि पहले सूरज ढलने के बाद मेरठ से बड़ोत आने में डर लगता था . खासतौर पर जेब में पैसा होने पर तो रात मेरठ में ही गुजार कर सुबह बडोत आना होता था लेकिन अब रात बेरात आने जाने में डर नहीं लगता.


बागपत से बडोत के बीच करीब दस बारह जगह रुकने और तीस चालीस लोगों से बात करने के बाद अंदाजा हो गया कि सारे मुद्दों पर जातिवाद हावी है. राजपूत खुलकर बीजेपी के साथ हैं तो दलितों में एक बड़ा तबका बहिनजी मायावती के साथ . शहर का जाट बीजेपी और गठबंधन के बीच बंटा हुआ है तो गांव के जाट चौधरियों ( अजीतसिंह ,जयंत चौधरी ) के साथ सहानुभूति जताते नजर आते हैं . वहीं मुस्लिम पूरी तरह गठबंधन के साथ नजर आता है . बागपत हो या मुज्जफरनगर या मेरठ सभी जगह मुस्लिमों के धर्मसंकट को कांग्रेस ने दूर कर दिया है . या तो अपनी कोई उमम्मीदवार उतारा नहीं या फिर गैर मुस्लिम को टिकट दे दिया . मुज्जफरनगर में मिले हाजी सलीम . कहने लगे कि इस बार एक वोट खराब नहीं करना है और फिरकापरस्त ताकतों के मुंह पर तमाचा मारना है . 2013 के दंगों के बाद जाटों और मुस्लिमों के बीच गहरी खाई बन गयी थी . लेकिन अब गांवों में खासतौर से दंगों की खटास काफी हद तक दूर हुई है . गरीब जाट और गरीब मुस्लिम दोनों ही समझ रहे हैं कि आपसी भाईचारे में ही दोनों को जीना है . खटास कम होना भी गठबंधन के पक्ष में माना जा रहा है . पिछली बार जाट बीजेपी के खेमें में चले गये थे इस बार इसमें सेंध लगाने की गुंजायश दिख रही है.


बढ़ाना के आगे एक गांव में छोटे से गांव में सभा करते मिले बीजेपी के उम्मीदवार संजीव बालियान. दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और मोदी सरकार नें मंत्री भी रह चुके हैं . खुद को गांव का आदमी बताते हैं. कहते हैं कि उनका मोबाइल हर किसी के पास है और कोई भी उन्हें जब चाहे फोन कर सकता है लेकिन अजीतसिंह अगर जीते तो दिल्ली चले जाएंगे और पांच साल नजर नहीं आएंगे. हालांकि संजीव बालियान गठबंधन के गणित से कुछ घबराए भी नजर आए. खुद ही कहने लगे कि गठबंधन वाले कह रहे हैं कि उनकी एक जेब में पांच लाख मुस्लिम वोट हैं तो दूसरी जेब में दो लाख दलित वोट . लेकिन पांच साल का काम इन सब पर भारी पड़ेगा . इसके बाद वह काम की लिस्ट गिनाने लगते हैं. एक दिन में दर्जन भर से ज्यादा सभाएं कर रहे हैं. गांववालों का भी कहना है कि योगी सरकार के बाद हिंदु लड़कियों के साथ छेड़खानी की घटनाएं कम हुई हैं. उधर अजीत सिंह 82 साल की उम्र में गांव देहात घूम रहे हैं. दिन में चार पांच सभाएं और दर्जन भर नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं. हर जगह अजीतसिंह लोगों को मोदी के जुमलों की याद दिलाते हैं. वह किसानों की बात करते हैं. गन्ने का बकाया नहीं मिलने की बात करते हैं. बेरोजगारी का जिक्र करते हैं. सबसे बड़ी बात है कि चाहे अजीतसिंह हों या उनके बेटे जयंत चौधरी दोनों ही खुद को जाट नेता तक सीमित नहीं रखना चाहते. दोनों सभी 36 कौमों का नेता खुद को बता रहे हैं.


दिलचस्प बात है कि गठबंधन के उम्मीदवार अपने अपने इलाके में खुद ही जोर लगा रहे हैं . यहां मायावती हो या अखिलेश यादव , दोनों ( लेख छपने तक ) यहां नहीं आए थे. उधर मोदी यहां रैली कर चुके हैं, अमित शाह आ चुके हैं, मुख्यमंत्री योगी रैलियां कर चुके हैं. योगी ने सहारनपुर में शाकुंभरी देवी पीठ के दर्शन किये और हिंदुत्व को साधने का प्रयास किया. नगीना में अमित शाह ने हिंदु आंतकवाद के मुददे पर कांग्रेस को घेरा. समझौता ब्लास्ट में सभी आरोपियों के छूटने के बाद अमित शाह और मोदी कांग्रेस को हिंदु आतंकवाद से जोड़ कर ध्रुवीकरण की कोशिशों में लगे हैं. कैराना के पलायन को भी फइर से उठाया जा रहा है. कुल मिलाकर बीजेपी राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और विकास को आधार बना रही है और उसके निशाने पर युवा वोटर है. कुछ सीटों पर कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर बीजेपी को कुछ राहत भी दी है. बिजनौर में कांग्रेस ने मायावती के करीबी रहे नसीमुददीन सिद्दीकी को मैदान में उतारा है. यहां बीएसपी के गुर्जर नेता मलूक नागर गठबंधन की तरफ से चुनाव में है लेकिन कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार से चुनाव त्रिकोणात्मक हो गया है जिसका घाटा मायावती को उठाना पड़ा तो लाभ बीजेपी को ही होगा. इसी तरह सहारनपुर में कांग्रेस ने इमरान मसूद को मैदान में उतारा है और बीएसपी के हाजी फजलुर्रहमान की नींद उड़ा दी है. यहां 39 फीसद मुस्लिम है . कुल छह लाख. इसी तरह मुरादाबाद में 45 फीसद मुस्लिम है जहां कांग्रेस ने शायर इमरान प्रतापगढ़ी को चुनाव मैदान में उतारा है.


पिछले लोकसभा चुनावों में पहले चरण की सभी 8 सीटें बीजेपी ने जीती थी. कैराना में पिछले साल हुए उपचुनाव में जरुर सपा बसपा रालोद गठबंधन जीता था. इस बार माना जा रहा है कि आठ में से चार में बीजेपी मुश्किल में है और बाकी की चार सीटों पर मुकाबला कांटेदार रहने वाला है. एबीपी नील्सन के सर्वे में तो बीजेपी आठ में से छह सीटें हारती दिख रही है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)