राजनीति में रणनीति ऐसी होती है कि जो हारती बाजी को जीत में बदल देती है. पहली बार ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह सबसे सफल रणनीतिकार साबित हो रहे हैं. लोकसभा का चुनाव 2019 में है लेकिन दो साल पहले ही इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है. यही वजह है कि नरेन्द्र मोदी के घोर दुश्मन रहे नीतीश कुमार की फिर से एनडीए में वापसी हो गई है. जितनी जरूरत नीतीश कुमार को मोदी की नहीं थी उससे ज्यादा जरूरत मोदी को नीतीश कुमार की थी. अगर नीतीश महागठबंधन में बने रहते तो शायद नरेन्द्र मोदी का सपना 2019 लोकसभा चुनाव में अधूरा रह सकता था.


दरअसल, मोदी के खिलाफ कांग्रेस और लालू यादव बड़ा गठबंधन बनाने वाले थे. बिहार में आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस का गठबंधन था और उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव और मायावती को एक मंच पर लाने की तैयारी चल रही थी. अगर ऐसा हो जाता तो शायद 2019 लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी का दोबारा पीएम बनना मुश्किल हो सकता था.


जैसे इश्क और जंग में सबकुछ जायज है, लगता है उसी तरह चुनाव जीतने के लिए हर राजनीतिक दांव सही है. चुनावी दंगल में एक दूसरे को पटकनी देने के लिए नेता धोबिया पाट का भी इस्तेमाल करते हैं. जब सब दांव चूक जाए तो नेता अचूक रणनीति भी अपनाते हैं. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की रणनीति भी अचूक जैसे दिखने लगी है.


बिहार में कैसे लालू और नीतीश की जोड़ी को तोड़ा जाए इसके लिए जबर्दस्त रणनीति बनाई गई. सबको मालूम है कि नीतीश कुमार की छवि साफ है और भ्रष्ट्राचार के खिलाफ मुखर रहे हैं. कैसे नीतीश को लालू से अलग किया जाए इसके लिए चक्रव्यूह रचा गया और इस चक्रव्यूह में लालू परिवार के खिलाफ सीबीआई के छापे ने आग में घी का काम किया.


तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई ने होटल के बदले जमीन केस में केस दर्ज किया गया. ये मामला उस वक्त का है जब यूपीए सरकार के दौरान राजद सुप्रीमो लालू यादव रेलमंत्री थे. उनके रेलमंत्री रहते हुए होटल के टेंडर में फर्जीवाड़े का मामला सामने आया और उसकी एवज में लालू और उनके परिवार को फायदा पहुंचाया गया. पटना में उन्हें इसके बदले जमीन दी गई थी. सीबीआई की तरफ से दायर एफआईआर में होटल के बदले जमीन केस में लालू, राबड़ी के साथ ही तेजस्वी यादव का भी नाम है.


बीजेपी को लगने लगा कि नीतीश इस बार जाल में फंस जाएंगे. वो तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांगेंगे और तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे तो लालू यादव से अलग हो जाएंगे. वही हुआ जो बीजेपी सोच रही थी. जैसे ही नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया उसके डेढ़ मिनट के बाद ही नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट करके ये जता दिया कि वो बरसों से नीतीश की घर वापसी की राह देख रहे थे यानि राजनीति का बिछड़ा भाई फिर से मिल गया है.


2019 में क्या है मोदी का प्लान?


नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के निशाने पर सिर्फ बिहार ही नहीं है बल्कि गुजरात भी है. गुजरात में हार्दिक पटेल के आरक्षण की मांग को लेकर बीजेपी डरी और सहमी है कि कहीं पटेल वोटर इस बार के चुनाव में बिदक नहीं जाए इसीलिए समय से पहले नरेन्द्र मोदी और अमित शाह गुजरात पर जबर्दस्त काम कर रहे हैं.


पहले तो मुख्यमंत्री आनंदीबेन को हटाया कर विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया. शंकर सिंह बघेला के कांग्रेस छोड़ने से ये साफ हो गया है कि बीजेपी की स्थिति मजबूत हो गई है. माना जा रहा है कि शंकर सिंह बघेला के कांग्रेस छोड़ने के पीछे बीजेपी का ही हाथ है. अमित शाह दिन रात पूरे देश में घूम घूमकर बीजेपी की नींव मजूबत करने में लगे हुए हैं. बिहार में नीतीश को लालू से अलग करके बीजेपी ने होने वाले नुकसान की भरपाई कर चुके हैं.


अब मोदी की कोशिश ये होगी कि किसी भी हाल में मायावती और अखिलेश को एक साथ नहीं आने दें. हो सकता है कि अखिलेश और मुलायम के बीच चल रहे झगड़े का फायदा बीजेपी उठाए. इसके संकेत भी मिल रहे हैं. मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव ने रामनाथ कोविंद को वोट देने की बात की थी जबकि अखिलेश गुट ने मीरा कुमार को वोट दिया था. यूपी में कोशिश ये है कि योगी बेहतर काम करें ताकि वोटर खुद व खुद बीजेपी की तरफ रूख करे. वहीं रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश की गई वहीं वैंकेया नायडू को उपराष्ट्पति का उम्मीदवार बनाकर दक्षिण में कमल को खिलाने की कोशिश है.


अमित शाह उड़ीसा से लेकर असम, पश्चिम बंगाल में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु में बीजेपी की खास नजर है वहीं केरल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने खाता खोलकर दिखा दिया कि अब केरल भी बीजेपी के लिए अछूता नहीं है. कर्नाटक में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं वहां पर जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो गई है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और विदेश मंत्री एस एम कृष्णा बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. यूपीए के खेमे से नीतीश कुमार के बिखरने से विपक्ष की रणनीति पर धक्का लग गया है वहीं राहुल अपनी पार्टी के नेता को खुश नहीं रख पा रहे हैं तो सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में कैसे मोदी को 2019 लोकसभा चुनाव में टक्कर दे पाएंगे.


धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए धर्मेंद्र कुमार सिंह पर क्लिक करें. फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें धर्मेंद्र कुमार सिंह


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