साल 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं. उनमें बीजेपी का एकमात्र व प्रभावशाली चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे हैं.जाहिर है कि इस साल के अंत में गुजरात व हिमाचल प्रदेश के साथ ही अगले साल होने वाले आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी मोदी के चेहरे पर ही बीजेपी सत्ता में आने के लिए पूरी ताकत लगायेगी. ये कहने कि जरुरत नहीं कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी मोदी बनाम बाकी सब की तर्ज़ पर ही लड़ा जाएगा.


इसलिये सियासी गलियारों में एक सवाल तैर रहा है कि पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा की अगुवाई में ही अगला लोकसभा चुनाव लड़ने का बीजेपी का फैसला क्या सही है? हालांकि इस सवाल का कोई तुक इसलिये भी नहीं बनता कि जहां मोदी जैसा कद्दावर नेता सामने हो. वहां ये महज औपचारिकता बनकर ही रह जाता है कि उस पार्टी का अध्यक्ष कौन है या किसे बनना चाहिये.


फिर भी लोगों का मूड जानने के लिए इस सवाल पर हाल ही में एक सर्वे कराया गया था. जिसमें अधिकांश लोगों ने अपनी यही राय दी कि बीजेपी का ये फैसला बिल्कुल सही है.लोगों की राय अपनी जगह है लेकिन अंदरखाने का सच तो ये है कि इन दो चुनावी सालों में बीजेपी अपने संगठन के चुनाव न करवाकर नेताओं का सारा फोकस सिर्फ चुनावी तैयारियों पर ही रखना चाहती है.इसलिये संगठन चुनावों को एक सुनियोजित रणनीति के तहत टाला गया है.


बीजेपी के संविधान के मुताबिक अध्यक्ष पद पर तीन साल के लिए नियुक्ति होती है. नड्डा के कार्यकाल के तीन साल अगली 20 जनवरी को पूरे होने जा रहे हैं. इसलिये बीजेपी सूत्रों का दावा है कि जेपी नड्डा को मई 2024 तक के लिए एक्सटेंशन मिल सकता है. यानी लोकसभा चुनाव तक नड्डा ही पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालेंगे.


पार्टी के संविधान के मुताबिक.  अगर राज्य इकाइयों के 50% संगठनात्मक चुनाव भी अगर पूरे हो जाते हैं तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। चूंकि.  भाजपा के संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया इसी साल अगस्त में शुरू हो जानी थी.  लेकिन उसके अभी तक शुरू न हो पाने की बड़ी वजह ही यही है कि प्रदेश के नेताओं की ऊर्जा संगठन चुनाव में खपाने से बेहतर है कि उन्हें 10 राज्यों के विधानसभा और उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से मुस्तैद कर दिया जाए. 


दूसरा कारण ये भी था कि गुजरात व हिमाचल के चुनाव से ऐन पहले अगर संगठन चुनाव कराए जाते. तो बेशक कांग्रेस की तरह से अंदरुनी गुटबाजी बाहर नहीं आती लेकिन निर्विरोध अध्यक्ष बनाने के लिए भी एक नया चेहरा तलाशना पड़ता. जिसका जनता के बीच गलत संदेश जाने का खतरा भी था.


चूंकि नड्डा का नाता हिमाचल प्रदेश से है. लिहाजा चुनाव से ऐन पहले उन्हें हटाकर किसी और को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाने का हिमाचल की जनता में नकारात्मक संदेश ही जाता और बीजेपी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता.चूंकि जातीय समीकरणों के हिसाब से भी नड्डा फिट बैठते हैं.  इसलिये मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने नड्डा को एक्सटेंशन देने का जो फैसला लिया है. उसे सियासी तौर पर सही ही माना जायेगा. हालांकि बीजेपी के संविधान के अनुसार.  पार्टी अध्यक्ष को बगैर किसी चुनाव के तीन-तीन साल के लगातार दो कार्यकाल देने का भी नियम है.


बता दें कि जे पी नड्डा जुलाई 2019 में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बने थे. इसके बाद 20 जनवरी 2020 को वह पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाए गए और उनका चुनाव भी सर्वसम्मति से हुआ था. इससे पहले पूर्व अध्यक्ष अमित शाह को भी 2019 में लोकसभा चुनाव तक विस्तार दिया गया था.


हालांकि 2024 का चुनाव जेपी नड्डा के नेतृत्व में लड़ने का फैसला बीजेपी के लिए कितना फायदेमंद साबित होता है. ये ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि पिछले दो लोकसभा चुनावों से देश की जनता मोदी के नाम पर ही वोट देती आ रही है और आगे भी यही आसार नजर आ रहे हैं. लेकिन फिर भी एबीपी न्यूज के लिए सी-वोटर ने हाल ही में एक त्वरित सर्वे किया. इस सर्वे में पूछा गया कि क्या जे पी नड्डा की अगुवाई में 2024 का चुनाव लड़ने का फैसला सही होगा? इसक जवाब में 56% लोगों ने हां में उत्तर दिया. तो वहीं 46% लोगों ने नहीं कहा.


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.