पुरानी कहावत है कि राजनीति का न तो अपना कोई चेहरा होता है और न ही चरित्र. इसीलिये सियासत के हर घाट का पानी पी चुकी पार्टियां ऐसा चेहरा मैदान में उतारती हैं,जिसे कोई मात ही न दे सके.हालांकि पिछले कई दशकों का आकलन करेंगे,तो इसका मिलाजुला परिणाम आपके सामने होगा. लेकिन आठ साल पहले हुए चुनावों ने इस परिभाषा को बदल दिया है और शायद लोगों ने एक ही चेहरे पर अपना दांव लगाने को अपनी किस्मत भी मान लिया है.


आपको याद होगा कि दो दिन पहले समंदरी राज्य गोवा में क्या हुआ है.वहां कांग्रेस के 11 में से 8 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया. कुछ वैसी ही खलबली देश में आदिवासियों के सबसे बड़े राज्य झारखंड में भी दिखाई दे रही है.वहां बीजेपी की सरकार नहीं है,बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाली गठबंधन की सरकार है,लिहाज़ा वो हर पल खतरे के साये में जी रही है कि अगली सुबह उसकी होगी भी या नही.


लेकिन झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शायद इसे वक्त रहते भांप लिया और अपनी सरकार बचाने के लिए उसी मुताबिक कुछ अभूतपूर्व फैसले ले लिये. बुधवार को हेमंत सोरेन सरकार ने दो महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए हैं. पहला ये कि राज्य की स्थानीय नीति में 1932 का खतियान का प्रावधान किया गया है और दूसरा बड़ा फैसला ये कि आरक्षण नीति में फेरबदल कर ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा बढ़ाया गया है.


बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में प्रदेश में ‘स्थानीयता' तय करने के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाने का निर्णय लिया गया है. सरकार ने इसके साथ ही राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों (OBC) को मौजूदा 14 प्रतिशत के बजाय 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है, साथ ही एसी एवं एसटी वर्ग के आरक्षण में दो-दो प्रतिशत की वृद्धि करने का फैसला किया. सरकार के फैसले पर अमल होने के साथ ही राज्य में ओबीसी, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) का कुल आरक्षण बढ़कर 77 प्रतिशत हो जाएगा.


यानी सोरेन सरकार ने जो दो अहम फैसले लिए हैं,उसके लिए वो पहले विधानसभा में दो विधेयक लायेगी. जाहिर है कि बहुमत के चलते वे आसानी से पारित हो भी जाएंगे.उसके बाद उन्हें राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जायेगा.


अब समझिये कि हेमंत सोरेन सरकार ने ये दो बड़े ऐलान करके कितना बड़ा सियासी दांव खेलने की कोशिश की है.विधानसभा से दोनों विधेयक पारित होने के बाद उसे राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा.चूंकि संविधान के दायरे में रहते हुए राज्यपाल इन्हें मंजूरी नहीं दे सकते. इसलिये कि राज्य सरकार दोनों ही विधेयकों को संविधान की नौंवी अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र से अनुरोध करने की गुहार लगाएगी. बता दें कि जब तक ये दोनों विधेयक नौंवीं अनुसूची में शामिल नहीं हो जाते, तब तक झारखंड में ये लागू हो ही नहीं सकता.


सीएम हेमंत सोरेन को शायद इतना अहसास तो होगा ही कि दिल्ली में उनसे भी कई गुना बड़े खलीफा बैठे हैं, जो इतनी आसानी से उनकी मुराद को पूरा नहीं करने वाले हैं.इसलिये सियासी गलियारों में चर्चा है कि हेमंत सोरेन ने ये दो फैसले लेकर मास्टर स्ट्रोक तो खेला है लेकिन सिक्का अपने हाथ में ही रखा हुआ है.इसलिये कि केंद्र सरकार इन दोनों विधेयकों को मंजूरी दे देती है,तो सोरेन अपनी बल्ले-बल्ले करवाएंगे और अगर ऐसा नहीं होता है,तो वे अपने लोगों के बीच शहीद की मुद्रा में आते हुए ये प्रचार करेंगे कि देखिये,आदिवासियों का असली दुश्मन कौन है.यानी, सोरेन केंद्र के पाले में जल्द ही एक ऐसी गेंद फेंकने वाले हैं,जिसे गोल-पोस्ट तक पहुंचाने में केंद्र को भी चतुराई के साथ बेहद सावधानी बरतनी होगी.



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)