इजरायल और हमास में लगभग तीन महीने से जंग जारी है. इस युद्ध में गाजा पट्टी के 22 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई है. वहीं इजरायल में 1139 लोगों की मौत हो चुकी है. जंग के करीब तीन महीने बाद लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए एक विस्फोट में हमास के शीर्ष अधिकारी सालेह अल-अरौरी की मौत हो गई. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सालेह अरौरी की मौत ड्रोन हमले में हो गई. लेबनान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने यह दावा किया है कि इजरायल ने ही सालेह की हत्या की है. इसके  साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि इस घटना के जरिए लेबनान को जबरन युद्ध में खींचने की कोशिश की जा रही है. इस बीच पूरी दुनिया की नजरें अमेरिका पर टिकी हैं कि वह आगे किस तरह बरतता है और इजरायल को युद्ध रोकने को मनाता है या नहीं. 


इजरायल का लेबनान पर हमला


सालेह अल-अरौरी इजरायल पर हुए हमले में से जुड़ा एक महत्वपूर्ण शख्स था. सालेह हिज़्बुल्लाह, ईरान और हमास बीच कॉर्डिनेशन करता था. वह लेबनान में बैठकर हमास के हमलों की योजना बनाता था. वह वहीं से अपने नेताओं से तालमेल बिठाता था और योजनाओं को अंजाम देता था. अगर हम इजरायल के नजरिए से देखें तो  इजरायल के नेता बेंजामिन नेतन्याहू ने पहले ही बोला है कि जिन लोगों ने 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमले की प्लानिंग की, एक लीड रोल प्ले किया, उनको वह किसी भी कीमत पर छोड़ेंगे नहीं, चाहे वो कहीं भी छुपकर बैठे हो. ऐसे में सालेह अल-अरौरी का मारा जाना उसी पहल की एक जरुरी कड़ी है. जिसको लेकर इजरायल पिछले कुछ महीनों से लगातार लगा हुआ है. उसने बोला है कि हम हमास को नेस्तनाबूद कर देंगे. ऐसे में सालेह का मारा जाना वो भी बेरूत में, एक बहुत बड़ा मूद्दा बनाता हुआ नजर आ रहा है क्योंकि जिस तरीके से ये पूरा वाकया शुरू हुआ, वह दरअसल लेबनान की तरफ से भी इजरायल पर किए कुछ हमलों के बाद ही शुरू हुए. उनका ही जवाब इजरायल ने दिया था. अब ऐसे में हमास के डिप्टी चीफ का वहां मिलना और मारा जाना लेबनान के पूरे के पूरे रोल को भी संदिग्ध करार कर देता है और ये जो पूरा युद्ध इजरायल के खिलाफ हुआ और हमास ने क्यों जंग छेड़ी है या फिर इसका साथ ईरान, तुर्किए, या कतर या कुछ और जो वहां के वेस्ट एशिया के मुस्लिम मुल्क हैं, वो दे रहे है तो सीधे तौर पर ये सभ्यताओं का संघर्ष है.



सभ्यताओं का है संघर्ष 


इजरायल एक ऐसा देश है जो सारे मुस्लिम राष्ट्रों के बीच में रहकर भी अपने अस्तित्व के लिए, अपनी अस्मिता के लिए लड़ रहा है और कहीं न कहीं इन मुल्कों को अपने अकेले के दम पर नाकों चने चबा रहा है. इनका यह मानना था कि कहीं पर भी लोग छुपकर बैठे हैं जो इजरायल के खिलाफ काम कर रहे है, उनको किसी भी कीमत पर बाहर निकालेंगे और उन्हें नेस्तनाबूत करेंगे. ऐसे में यह हमला कहीं न कहीं आशंका जता रहा है कि क्या ये युद्ध बड़े स्तर पर या पूरे पश्चिमी एशिया को अपने कब्जे में ले लेगा. क्योंकि कई बार अमेरिका ने भी चेताया है इजरायल को कि हिज़्बुल्लाह को लेकर, लेबनान को लेकर थोड़ा सावधानी से काम करें. ऐसा न हो की एक बड़े युद्ध की आशंका बन जाएं. हालांकि इजरायल ने बार-बार बोला है कि लोग कहीं पर भी छुपे हो हम इनको छोड़ेंगे नहीं क्योंकि तुर्किए और कतर में भी इजरायल का मानना है कि हमास के कुछ नेता वहां पर भी छुप कर बैठे है.


अब जब इजरायल ने बेरूत में जाकर ड्रोन अटैक के माध्यम से हमला करके डिप्टी चीफ को मारा है तो कहीं न कहीं तुर्किए में छुपे हुए हमास के नेताओं की और कतर में बैठे हुए हमास के नेताओं की भी शामत आने वाली है और ईरान भी जिस तरह से कॉर्डिनेशट कर रहा था तो उनको भी पूरे के पूरे पश्चिमी एशिया के पूरे मूल्कों को सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि थोड़ी सी भी चिंगारी बड़े युद्ध में बदल सकती है.  ऐसा लगता है कि इजरायल की ताकत को देखते हुए और इजरायल को वर्तमान में सीधे तौर पर या अप्रत्यक्ष तरीके से जो साथ मिल रहा है, चाहे वो अमेरिका ही क्यों न हो, युद्ध फैलेगा नहीं. अमेरिका लगातार इजरायल को चेता तो रहा है लेकिन वो सिर्फ कागजी कार्रवाई ही है. अमेरिका अभी भी इजरायल के साथ ही है.  फिर भी अमेरिका नहीं चाहता है कि बहुत बड़ा युद्ध हो. वो चाहता है कि जो भी इजराइल को अचीव करना है वो जितनी जल्दी कर ले, उतना अच्छा होगा, युद्ध नहीं बढ़ेगा. 


 2006 के युद्ध का असर


लेबनान ने भी बोला है कि हम देख लेंगे छोड़ेंगे नहीं. लेकिन हमले तो वो भी लगातार कर ही रहा है. 2006 में इजरायल और लेबनान का युद्ध हुआ था और उसमें लेबनान को मुंह की खानी पड़ी थी. उसका असर आज भी लेबनान से खत्म नहीं हुआ है. लेबनान भी सावधानी से काम लेगा. क्योंकि आज भी वो कमजोर स्थिति में है. वहां डिप्टी चीफ पाया गया है, तो ये साफ नजर आता है कि आतंकवाद का साथ देते हुए लेबनान नजर आ रहा था. ईरान इस युद्ध में कई बार अपरिपक्व तरीके से बरतते हुए नजर आता है. क्योंकि मुख्य तौर पर ये युद्ध इजरायल और हमास के बीच का विवाद है. ये फिलिस्तीन और इजरायल के बीच का विवाद है और जो कुछ सुन्नी मुल्क है वो इस विवाद में सामने आते हुए नजर आते है. लेकिन कुछ वर्षो में इजरायल और अमेरिका की अच्छी खासी दोस्ती हैं और जिस तहर से दोनों ने ईरान के ऊपर प्रेशर बनाया हैं. ईरान को अपने हित क्या है और अहित क्या है उसकी पहचान होनी चाहिए क्योंकि वर्तमान में उन्हें देखकर ऐसा लग नहीं रहा है कि इजरायल और हमास के जंग के बीच में ईरान को क्या फायदा हो रहा है ये उसे शायद समझ नहीं आ रहा है. ये एक किस्म का राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश है, क्योंकि जंग में पड़ने से ईरान को सीधे तौर पर कोई फायदा नहीं हो रहा, लेकिन ईरान के कंधों के सहारे जितने भी सुन्नी मुल्क हैं उन्हें अपना राजनीतिक एजेंडा साधने में आसानी हो रही है. 


अमेरिका धीरे-धीरे हो रहा है कमजोर


कई सारे अंतराष्ट्रीय संबंधी मामलों के जानकार यह मानते है कि अमेरिका धीरे - धीरे अपनी साख खो रहा है. अमेरिका जिसका विश्व की राजनीति पर अपना दबदबा हुआ करता था वो सही मायने में कम हो रहा है और जिस तरीके से अमेरिका की लीडरशिप कई अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर स्टैंड नहीं ले पा रही है. चाहे वो इजरायल हमास का वर्तमान स्थिति क्यों न हो या फिर रूस और यूक्रेन का युद्ध ही क्यों न हो. कई और अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर अमेरिका का स्टैंड जो पहले दिखता था या फिर लोगों को दिशानिर्देश दिया करता था अब उसका प्रभाव कम हो चुका है. इसलिए काफी लोगों का मानना है कि अमेरिका का पावर अब खत्म हो चुका है और अमेरिका के खिलाफ बहुत से मुल्क खड़े होते हुए नजर आ रहे है. खिलाफ का मतलब है कि अमेरिका के वर्चस्व को अब अन्य देश भी चैलेंज करने लग गए है. चीन भी अमेरिका के वर्चस्व को चैलेंज करते नजर आ रहा है. साथ ही भारत भी अब एक बड़ी शक्ति बनने की तरफ बढ़ रहा है. अब हम अंतराष्ट्रीय हितों और राष्ट्रीय हीतों को मजबूती से अंतराष्ट्रीय पथ पर रख रहे है. ऐसे में अमेरिका इजराइल हमास युद्ध में, रशिया यूक्रेन युद्ध में, पश्चिमी एशिया की राजनीति में बेबस नजर आ रहा है. ये विवशता अमेरिका को और नीचे ले जा सकती है.


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