राजनीति सिर्फ गुणा-भाग का खेल नहीं है बल्कि केमिस्ट्री का भी समीकरण है. देश की राजनीति के मैथमेटिक्स और केमिस्ट्री को कोई बेहतर समझता है वो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, जो पहले बोल चुके हैं कि 2024 तक प्रधानमंत्री पद के लिए कोई जगह खाली नहीं है. ये बोलना कोई साधरण बोलना नही है बल्कि इसे साबित भी कर दिया, लेकिन सवाल ये उठता है कि मंत्रिमंडल विस्तार में इस बार पीछे की क्या कहानी है? मंत्रिमंडल में 36 नये चेहरों को जगह मिली है, 7 मंत्रियों की पदोन्नति की गई है और 12 मंत्रियो की छुट्टी कर दी गई है. ऐसे दिग्गज नेताओं की छुट्टी की गई जिसके बारे में कोई भनक नहीं थी. इस विस्तार के पीछे है आने वाले राज्यों के विधान सभा और 2024 लोकसभा चुनाव के लिए मोदी का गेम प्लान. 


मंत्रिमंडल विस्तार क्यों किया गया?


मोदी मंत्रिमंडल विस्तार की बात लंबे समय से चल रही थी, लेकिन इतना बड़ा विस्तार और इतने मंत्रियों की छुट्टी कर दी जाएगी, ये मोदी के सिवाय किसी को मालूम नहीं था. दरअसल इसके पीछे कहानी ये है कि कोरोना की दूसरी लहर से देश में जितनी अफरा-तफरी हुई वो कभी नहीं हुई. अस्पताल, बेड और ऑक्सीजन के लिए लोग तरस रहे थे. विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगा रही थी कि कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने में केन्द्र सरकार पूरी तरह फेल हो गई, कमोबेश ये भाव जनता के मन में देखी जा रही है.


कोरोना के बीच हुए चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी हार गई, यूपी के पंचायत चुनाव में बीजेपी पीछे थी लेकिन जिला पंचायत चुनाव में बीजेपी आगे थी. दूसरी बात ये है कि अगले साल 5 राज्यों में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं, खासकर बीजेपी की जान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पर टिकी हुई है. तीसरी बात ये है कि एनडीए से महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल ने बीजेपी से रिश्ता तोड़ लिया है. वही बिहार में आने वाले समय में चिराग पासवान बीजेपी से नाता तोड़ सकती है. चौधी बात ये है कि कोरोना की वजह से इकोनॉमी का बुरा हाल है, रोजगार पर जबर्दस्त असर हुआ और महंगाई की मार चरम पर है. वहीं आखिरी खास बात ये है कि सहयोगी दल शिवसेना और अकाली दल के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने, मंत्रिमंडल में रहे रामविलास पासवान समेत बीजेपी के अन्य नेताओं के निधन से खाली पड़े जगहों, ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने से सरकार में शामिल होने की संभावना समेत जेडीयू और अपना दल के नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल होने की चर्चा लंबे समय से चल रही थी, लेकिन महाविस्तार के बारे में भनक नहीं थी.


मंत्रिमंडल में फेरबदल से मोदी की रणनीति?


देश में शायद ऐसा पहली बार है कि कोई प्रधानमंत्री अपनी रणनीति की भनक नहीं लगने देते हैं. कयासबाजी पर कयासबाजी लेकिन पूरी तस्वीर से मीडिया भी कोसों दूर रहती है. मोदी की रणनीति रही है कि हर चुनाव में नये मुद्दे पर चुनाव लड़ने की यानि हर चुनाव में नई लकीर खींचते हैं. उन्हें मालूम है कि राजनीति में लंबे समय तक बने रहने के लिए हर पांच साल में एक नई लकीर खींचने की जरूरत होती है. वे कभी अपने पर कुछ चिपकने नहीं देना चाहते. जैसे ही कोई आरोप चिपकने लगता है, वे आगे निकल कर नई राह पकड़ लेते हैं. मसलन राजनीतिक दल गुजरात की अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के नाम पर उन्हें घेरना चाहते थे लेकिन उन्होंने विकास और गुड गवर्नेंस का मसीहा बनने की ठानी.


आरोप लगा कि 2002 का विधान सभा चुनाव गुजरात दंगे पर लड़े तो वो 2007 के चुनाव विकास और गुड गवर्नेंस के मुद्दे पर लड़ गये जबकि 2012 का चुनाव विकास पुरुष और संभावित देश के पीएम उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीते भी. 2014 का चुनाव अच्छे दिन आने वाले हैं उनके नाम पर लड़ा गया. केन्द्र में आने के बाद पहले सबका साथ सबका विकास का नारा दिया और अपने कामों और पाकिस्तान पर सर्जिकल-एयर स्ट्राईक पर 2019 लोकसभा का चुनाव जीता और जीतने के बाद फिर नारा देते हैं सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास.


बीजेपी के लिए अब राम मंदिर, 370 और ट्रिपल तलाक का मुद्दा खत्म हो गया है. अब सवाल है कि किस मुद्दे पर अगला चुनाव लड़ेंगे. मोदी का मकसद है कि आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव जातीय समीकरण और बेहतर काम पर लड़े. एक तरह से मोदी की कोशिश रहेगी कि विकास दर को पटरी पर लाना और रोजगार के अवसर को बढ़ाना. वही सामाजिक समीकरण को साधना भी है. बीजेपी को करीब 55 फीसदी हिंदू वोट देते हैं लेकिन जितना वोट सवर्ण जाति और वैश्य वोट देते हैं उतना पिछड़ी, दलित और आदिवासी के वोटर नहीं देते हैं.


एक्सिस माई इंडिया के सर्वे की माने तो 61 फीसदी सवर्ण, 49 फीसदी आदिवासी, 41 फीसदी दलित और 58 फीसदी ओबीसी बीजेपी को वोट किया. इसीलिए मोदी ने बड़ी संख्या में दलित, ओबीसी, आदिवासी और महिलाओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया है. 2019 लोकसभा चुनाव में करीब 46 फीसदी महिलाएं और 44 फीसदी पुरुष वोटरों ने बीजेपी को वोट दिया था. यही वजह रही है कि कैबिनेट विस्तार में जाति और महिलाओं पर खास ध्यान दिया गया. मंत्रिमंडल में 27 ओबीसी, 20 आदिवासी-दलित और 11 महिला को जगह मिली है. जाति के साथ-साथ अनुभवी और पढ़े लिखे लोगों को भी जगह मिली. मोदी के कैबेनिट में 7 आईएएस, 3 एमबीए, 7 पीएचडी, 13 वकील, 6 डॉक्टर और 5 इंजीनियर हैं. मोदी ने मंत्रिमंडल में सामाजिक समीकरण और अच्छे शासन के लिए नये मंत्रियों की योग्यता और अनुभव पर जोर दिया है, लेकिन गेम प्लान सफल होगा या नहीं, ये अभी कहना बेहद मुश्किल है.



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)