भारत और चीन के बीच तनातनी कोई नयी बात नहीं है. खासकर पिछले तीन-चार वर्षों से दोनों देशों के रिश्तों में काफी तनाव है. यहां तक कि हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन और भारत के रिश्तों को 'असामान्य' बताया था. चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आता और इसीलिए उससे निपटने के लिए एशिया के अन्य देशों के साथ लगातार सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है. भारत खास तौर पर अपनी नौसेना पर ध्यान दे रहा है और अपने समुद्री बेड़े में कई नई पनडुब्बियों को शामिल करने के अलावा सेना के उपकरणों को आधुनिक बना रहा है.


पूरी दुनिया के लिए अहम हिंद-प्रशांत क्षेत्र


हिंद-प्रशांत क्षेत्र केवल भारत के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए महत्वूपर्ण है. दुनिया की सारी बड़ी शक्तियों का ध्यान इसीलिए यहां पर केंद्रित भी है. दुनिया का 60 फीसदी जीडीपी यहां से निकलता है. वैश्विक व्यापार का 50 फीसदी इस इलाके से गुजरता है. भारत के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि चीन भौगोलिक सीमाओं के संदर्भ में विस्तारवादी नीति भी अपना रहा है और भारत को चुनौती भी देता है. भारत के हित दक्षिण-चीन सागर में और साउथ ईस्ट एशिया से लगे तमाम इलाकों में भी है.


भारत चाहता है कि उसके जो व्यापारिक हित हैं, रणनीतिक हित हैं और सामरिक हित हैं, उनको पूरी तरह सुरक्षित रखे. चीन इस इलाके में लगातार सैन्य जमावड़ा कर रहा है, अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है. चाहे श्रीलंका के बंदरगाह हम्बनटोटा पर चीनी कब्जा हो या कुछ दिन पहले म्यांमार वाले कोको आइलैंड पर निर्माण कार्य की सुगबुगाहट, ये तमाम चिंताएं हमारी हैं. चीन दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय नियमों को मानने से भी इनकार करता रहा है. भारत अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए पूरी तैयारी कर रहा है और अपने सैन्य बल को अपग्रेड भी कर रहा है. अंडमान निकोबार द्वीप समूह में ट्राई-सर्विसेज बेस हो या फिर वहां से लेकर बाकी सामरिक महत्व की जगहें, भारत अपनी नौसेना की तैयारी मुकम्मल कर रहा है, चाहे वह पनडुब्बी की तैनाती हो या ड्रोन की तैनाती हो.


कूटनीति और सैन्य तैयारी को साधता भारत


जो वैश्विक भू-राजनीति है और भारत जिस तरह वैश्विक ताकत बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है, उसमें डिप्लोमेसी की, कूटनीति की अपनी भूमिका होती है और सैन्य तैयारियों की अपनी भूमिका होती है. हम जानते हैं कि वैश्विक संदर्भ में आज आर्थिक और सैन्य क्षमता के आधार पर ही डिप्लोमेसी की नीतियां तय होती हैं. भारत शुरुआत से ही इस नीति को फॉलो भी करता रहा है.


आप चीन के साथ देखें तो चाहे वह पूर्वी लद्दाख का इलाका हो, वहां हमने देखा कि 2019 के बाद किस तरह की समस्याएं आईं. भारत इसके बावजूद बातचीत का सिलसिला जारी रखे हुए है, वह चीन के साथ एससीओ में भी शामिल है और जी-20, ब्रिक्स में भी भारत कूटनीति के प्रयास जारी रखे हुआ है. इसके अलावा, जो भारत, दक्षिण-चीन सागर या फिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगियों चाहे वह क्वाड के हों या फिर आसियान देश के हों, लगातार सहयोग बढ़ा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी 19 मई को जी 7 बैठक के लिए जापान भी जा रहे हैं, तो भारत सैन्य तैयारियों को भी अपग्रेड कर रहा है और डिप्लोमेसी का रास्ता भी खोले हुए हैं. भारत एक संतुलित विदेश नीति के साथ आगे बढ़ रहा है. भारत भले ही आर्थिक पैमाने पर चीन के मुकाबले अभी पीछे हो, लेकिन सैन्य मुकाबले को लेकर तो हमेशा ही कहता है कि तैयारी मुकम्मल है. 


इंडो-पैसिफिक चुनौतियों पर नौसेना का है ध्यान


इंडो-पैसिफिक रीजन में नौसेना की भूमिका बढ़ रही है और उसी अनुरूप तैयारियां भी हो रही हैं. भारतीय नौसेना अपने पनडुब्बियों के बेड़े को लगातार आधुनिक बना रही है. प्रोजेक्ट 75 के तहत फ्रांस की मदद से हमने स्कॉर्पीन पनडुब्बियां बनाई हैं, जिसमें से 5 तो भारतीय सेना का हिस्सा भी हैं. छठी पनडुब्बी भी जल्द ही भारतीय सेना का हिस्सा बन ऑपरेशनल हो जाएगी. भारतीय सेना ने पूर्णतः स्वदेशी आईएनएस विक्रांत को भी लॉन्च किया है, और वह भी कुछ दिनों में ऑपरेशनल हो जाएगा. अच्छी बात यह है कि कुछ ही समय में भारत परमाणु प्रतिरोध को मजबूत करने के लिए बैलेस्टिक मिसाइल से लैस पनडुब्बियों पर भी काम पूर्ण कर लेगा.


भारत उस प्रणाली के विकास पर जोर दे रहा है, जिससे सर्विलांस का काम बेहद आसान हो जाए. भारत विशेषकर उस तरह की पनडुब्बी प्रणाली के विकास पर जोर दे रहा है जो एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक पर आधारित हो. भारत का अपना ड्रोन कार्यक्रम जोरों पर है, जिससे नौसैनिक इलाकों में जासूसी आसान हो जाए. इसके अलावा भारत अमेरिका से भी  MQ-9 रीपर ड्रोन खरीद रहा है. कहने का मतलब यह है कि भारत भविष्य की चुनौतियों को निगाह में रखकर तैयारी कर रहा है.


भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान और आसियान के देशों के साथ मिलकर जिस तरह काम कर रहा है, उस पर भी निगाह रखने की जरूरत है, क्योंकि यह एक वैश्विक चुनौती है. भारत अलग-अलग देशों के साथ नौसैनिक अभ्यास भी कर रहा है और जिन देशों के साथ उसके हित मिले हुए हैं, उनके साथ एक मंच पर काम करना चाहता है.


कोई सेना कितनी ताकतवर है, युद्ध में कैसे डिलीवर करती है, यह उसकी सैन्य क्षमता या उपकरणों से अधिक बाकी बातों पर भी निर्भर करता है. हमने देखा है कि अमेरिका जैसा बड़ा देश वियतनाम या अफगानिस्तान में जाकर फंस गया. आने वाले वक्त में परंपरागत युद्ध की संभावना भी कम है. जहां तक भारत-चीन की बात है, तो साइबर वॉरफेयर, टैक्टिकल वॉरफेयर, इनफॉर्मेशन वॉरफेयर वगैरह ही अब आगामी सदी के युद्ध होंगे. भारत इस स्तर पर पूरी तरह तैयार दिखता है और सबसे बड़ी बात है कि भारत पूरी तैयारी स्वदेशी तरीके से कर रहा है. जहां तक भारत-चीन में आमने-सामने की पारंपरिक लड़ाई के कयास हैं, तो वह थोड़े अप्रासंगिक दिखते हैं. बाकी किसी भी तरह की लड़ाई के लिए भारत पूरी तरह से तैयार है.


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)